अनिता चौधरी

दिल्ली से पंजाब को कनेक्ट करने वाले राष्‍ट्रीय राजमार्गों पर किसानों के ट्रैक्टर, ट्रॉली इस तरह से लगा दिए गए हैं कि उसकी वजह से आस-पास की सड़कों तक पर जाम की स्थिति बार-बार बन रही है। किसान आंदोलन की आग को हवा आखिर पंजाब से ही क्यों मिल रही है? अगर आप भी इस सवाल में उलझे हुए हैं तो कृष‍ि विशेषज्ञों की राय जानना जरूरी बन जाता है। विशेषज्ञों की मानें तो चंद व्‍यापारी इस आंदोलन के जरिए किसानों को दिग्भ्रमित कर रहे हैं।

आत्मनिर्भर भारत कार्यक्रम के दौरान जब किसान आंदोलन पर चर्चा हुई तो कृषि क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों ने इसे विस्तार से बताया। कृषि विभाग के पूर्व अतिरिक्त सचिव आलोक सिन्हा ने कहा कि पंजाब में आढ़तियों को एमएसपी की वजह से बहुत बड़ी आमदनी होती है। करीब 5 हजार करोड़ रुपए का भुगतान केंद्र सरकार आढ़तियों और राज्य सरकारों को करती है। इसीलिए आढ़तियों को यह डर है कि अगर एमएसपी प्रकिया बंद हो गई, तो उनकी आमदनी बंद हो जाएगी। जबकि सच तो यह है कि एमएसपी की प्रक्रिया कभी नहीं बंद होगी।

उन्‍होंने आगे कहा कि आढ़तियों और पंजाब सरकार को डर इस बात का भी है कि जिस दिन ये 10 प्रतिशत किसान एमएसपी पर अपनी उपज बेचने के बजाये सीधे बड़े व्यापारियों को बेचने लगे, तो उनकी आमदनी बंद हो जाएगी। आढ़तियों को और सरकार को इस पांच हजार करोड़ रुपए के नुकसान का डर सता रहा है। 21वीं के इस दौर में कहा जाता है कि आर्थिक वृद्धि तभी होगी, जब प्रतिस्‍पर्धा बढ़ेगी। तो इस प्रतिस्‍पर्धा से किसानों को बाहर क्यों रखा जाये। आज किसान पहले से कहीं ज्यादा सशक्त है और स्ववतंत्र हैं अपनी फसलों को बेचने के मामले में।

किसानों के बीच भ्रम क्यों फैलाया जा रहा है

एमएसपी को लेकर जो भ्रम फैलाये जा रहे हैं, उस पर सीसीआई एग्रीकल्चर काउंसिल के चेयरमैन सलिल सिंघल ने कहा, “इसकी एक साधारण गणित है। वो समझ लीजिए तो सारे भ्रम दूर हो जाएंगे। जब कोई उपज बेची जाती है, तब उसमें 4 प्रतिशत मंडी टैक्स होता है, 2.5 प्रतिशत मर्चेंट टैक्स होता है। अगर प्राइवेट सेक्टर की बड़ी कंपनियां किसानों से सीधे अनाज खरीदती हैं तो यह पैसा अब सीधे किसानों की जेब में जाएगा। ध्‍यान रहे ये मर्चेंट यानी आढ़तिया सरकारी आढ़तिया नहीं हैं, ये व्‍यापारी हैं, जो बीच का कमीशन लेते हैं। अब जो लोग यह कहते हैं कि प्राइवेट सेक्टर की बड़ी कंपनियां किसानों का शोषण करेंगी वो वही हैं, जो इन चंद आढ़तियों के लिए इकोनॉमी को मजबूत नहीं होने देना चाहते हैं। मैं उनकी बात से इत्‍तेफाक नहीं रखता। सदियों से आढ़त का व्‍यापार कर रहे पांच-छह सौ परिवारों के लिए किसानों की आय को क्यों कम किया जाये।”

मंडियों में किस तरह होता है पैसे का खेल

किसान आंदोलन के नाम पर , बड़े किसान , मंडी दलाल और व्यापारियों के इस खेल को सलिल सिंघल ने समझते हुए विस्तार से बताया –

देश की किसी भी मंडी में चले जाइये, वहां जब किसान अपना अनाज लेकर पहुंचते हैं, तो उन्‍हें सौदा करने की अनुमति केवल कुछ गिने-चुने आढ़तियों से होती है। ज़रा सोचिए जब सरकार अधिकारिक रूप से किसी भी आढ़तिये को तैनात नहीं कर सकती है, तो केवल गिने चुने आढ़तिये ही मंडी में क्यों होते हैं। यहां पैसे का खेल लाज़मी है।

दूसरा जब किसान अपना अनाज सामने रखता है, तब दो-चार आढ़तिये खड़े हो जाते हैं। एक कहता है तुम्‍हारे अनाज में नमी है, इसलिए एमएसपी से 10 प्रतिशत कम दूंगा, दूसरा कहता है अनाज में कंकड़ ज्यादा हैं, 12 प्रतिशत कम दूंगा, अनाज की क्‍वालिटी नहीं अच्‍छी है, मैं बाज़ार में बेच नहीं पाउंगा, इसलिए एमएसपी से 15 प्रतिशत कम दूंगा… इस तरह से हर रोज किसानों को एमएसपी से 10 से 20 प्रतिशत और कभी-कभी उससे भी अधिक कम में अपना अनाज मजबूरी में बेचना पड़ता है। क्योंकि अगर वापस ले जाएगा, तो खराब हो सकता है।

आढ़त का व्यापार करने वाले व्‍यापारी केवल अनाज की खरीद नहीं करते हैं, बल्कि किसानों को बीच, यूरिया, व जरूरी उपकरण आदि मुहैया कराने का काम भी करते हैं, वो भी उधार पर ब्याज के साथ। इस बिजनेस में आढ़तिये 5 से 10 प्रतिशत तक ब्याज लेते हैं। मजबूर गरीब किसान इनके चंगुल में फंसा रहता है।

अब आप सोचिए कि हजारों करोड़ों रुपए इन पांच-छह सौ परिवारों की जेब में जाने चाहिए, या किसान को मिलने चाहिए।

पंजाब में ही क्यों मचा है बवाल

आखिर पंजाब के किसान ही क्यों कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं। यूपी, राजस्थान, व अन्‍य प्रदेशों के किसान क्यों नहीं कर रहे हैं। इसका उत्तर साफ है। विरोध केवल वही कर रहे हैं, जिन्‍हें एमएसपी के खत्‍म होने का भय है और यही लोग किसानों को दिग्भ्रमित कर रहे हैं। सीसीआई एग्रीकल्चर काउंसिल के चेयरमैन ने बताया कि पंजाब में 70 प्रशित गेहूं की खरीद एमएसपी पर होती है, उत्तर प्रदेश में मात्र 10 प्रतिशत, राजस्थान में 16 प्रतिशत होती है। धान की बात करें तो पंजाब में 92 प्रत‍िशत चावल एमएसपी पर बिकता है, जबकि पूरे भारत आ औसत 44 प्रतिशत है।

उन्‍होंने कहा, “अब आप मूल्‍यों को भी देख लीजिए, हाल ही में पंजाब में चावल 1888 प्रति क्‍विंटल की दर से बिका, जबकि छत्तीसगढ़ और तमिलनाडु में 1525 रुपए में बिका। ऐसा क्यों? सच तो यह है कि पंजाब में आढ़तियों की दबंगई ज्‍यादा है।”

मोदी सरकार ने पिछले छह वर्षों में किसानों के लिए क्या किया है?

इस सवाल पर सलिल सिंघल ने कहा कि मोदी सरकार ने आते ही कृषि में सुधारों पर फोकस करना शुरू कर दिया। सबसे पहले ग्रामीण क्षेत्रों को सड़कों से जोड़ने का काम किया गया। आज हर एक गांव सड़क से कनेक्ट है। छोटे-छोटे वेयरहाउस बनाने पर जोर दिया, ताकि अनाज खराब नहीं हो। सरकार ने फसल बीमा योजना लागू की, जिससे किसानों के ज़हन से वो डर खत्म हुआ, कि अगर फसल खराब हो गई, तो गृहस्थी कैसे चलेगी। भले ही फसल बीमा में अभी भी अव्‍यवस्था है, लेकिन सरकार उसे दूर करने के प्रयास में जुटी हुई है।

सरकार ने बायोटेक्नोलॉजी समेत कई अन्‍य तकनीकियों की सहायता से अनाज की उपज को बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं। मौसम, स्‍वाइल, आदि की जानकारी एडवांस में देने से किसानों को लाभ पहुंच रहा हे। सरकार भारतीय कृषि मंत्र को बदलने की कोशिशें कर रही है। यह मंत्र अधिक उपज से अधिक पैसा कमाने का है, न कि कम उपज पर ज्यादा पैसा कमाने का। इसका प्रभाव जमीन पर दिखने लगा है। एक समय था, जब भारत में मैक डॉनल्‍ड की यूनिट्स न्‍यूज़ीलैंड से आलू इम्‍पोर्ट करती थीं, आज भारत में ही किसानों से खरीद रहा है। महाराष्‍ट्र में अंगूर की उपज बहुत तेज़ी से बढ़ी। आज महाराष्‍ट्र के डेढ़ लाख टन ताज़ा अंगूर पूरी दुनिया में एक्‍सपोर्ट हुए। महाराष्‍ट्र में संतरे पर पेप्‍सीको ने पैसा लगाया है। ये कंपनियां ही हैं जो किसानों को आत्मनिर्भर बना सकती हैं, आढ़त का काम करने वाले व्‍यापारी नहीं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here