लक्ष्मी कान्त द्विवेदी
प्रयोगशाला में जीव का निर्माण दुनिया भर के वैज्ञानिकों का एक बहुत पुराना सपना रहा है और अब अमेरिकी वैज्ञानिकों ने मेढक के भ्रूण की कोशिकाओं की इंजीनियरिंग कर विश्व का पहला जीवित रोबोट या जेनोबोट बना कर इस दिशा में एक अत्यंत महत्वपूर्ण सफलता हासिल कर ली है। इसकी प्रोग्रामिंग की जा सकती है, इसलिए इसे रोबोट कहा जा सकता है और चूंकि यह परस्पर क्रिया करने वाली जीवित कोशिकाओं से बना है तथा क्षतिग्रस्त होने की स्थिति में खुद को ठीक करने में सक्षम है, अतः इसे जीव भी कहा जा सकता है।
वैज्ञानिकों की इस सफलता से भविष्य में कम्प्यूटर की मदद से ऐसे जीवों के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो गया है, जो मानव शरीर में दवाएं पहुंचाने के साथ-साथ रेडियो सक्रिय कचरा साफ करने, समुद्र में से माइक्रोप्लास्टिक की सफाई और मानव धमनियों में जमी वसा या अन्य चीजों को भी निकाल सकेंगे। दूसरी ओर अनेक विशेषज्ञों ने इसकी कड़ी आलोचना करते हुए सवाल किया है कि, यदि ये जेनोबोट कभी किसी वजह से अनियंत्रित हो गये, तो कितनी भयावह स्थिति खड़ी होगी? आलोचकों का यह भी कहना है कि, वैज्ञानिक असुविधाजनक तरीके से ईश्वर के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।
विज्ञान पत्रिका पीएनएएस में प्रकाशित इस अध्ययन में कहा गया है कि, एक मिलीमीटर आकार वाला यह कृत्रिम जीव दो प्रकार की कोशिकाओं को एक खास तरीके से जोड़ कर इस प्रकार तैयार किया गया है कि, यह अपने बल-बूते लक्ष्य की ओर बढ़ कर सौंपे गये काम को अंजाम दे सके। अध्ययन के सह-लेखक वेरमांट विश्वविद्यालय के जोशुआ बोनगार्ड ने कहा, ‘ये अनोखी जिंदा मशीनें हैं, जो न तो रोबोट हैं और न ही किसी ज्ञात प्रजाति के जीव। यह एक नयी श्रेणी की कृति है: एक जीव जिसकी प्रोग्रामिंग संभव है।’ वैसे इन जीवों में प्रजनन क्षमता नहीं होगी और इनमें मुंह, पाचन प्रणाली, अंग और स्नायु तंत्र भी नहीं होंगे। ये भ्रूण द्रव से ऊर्जा प्राप्त करेंगे और एक सप्ताह में जब उनका भोजन समाप्त हो जाएगा, तब इनकी मृत्यु हो जाएगी।
शोधकर्ताओं के मुताबिक, इन अनोखे जीवों को इस ढंग से बनाया जाएगा कि, ये बोझ भी ढो सकें जैसे-मरीज के शरीर के जिस भाग में जरूरत हो, वहां दवा पहुंचा सकें और घाव भर सकें। इन जेनोबोट को बनाने के लिए वैज्ञानिकों ने एक ऐसा जटिल एल्गोरिद्म विकसित किया, जो खुद सीख सके और नये जीवों के लिए हजारों डिजाइनें तैयार कर सके। इस एल्गोरिद्म ने कम्प्यूटर द्वारा विकसित कुछ सौ कोशिकाओं को असंख्य रूपों और आकृतियों में पुनर्गठित कर दिया, ताकि वे वैज्ञानिकों द्वारा दिये गये काम, जैसे किसी एक दिशा में वस्तुएं पहुंचाना, को पूरा कर सकें। शोधकर्ताओं ने बताया कि, इन कृत्रिम जीवों का नामकरण अफ्रीकी मेढकों की एक प्रजाति जेनोपस लेवियस पर किया गया है, जिनके भ्रूणों एवं स्टेम कोशिकाओं का इस्तेमाल इस परियोजना में किया गया था। वैज्ञानिकों ने उन्हें एकल कोशिकाओं में विभाजित किया और फिर कुछ समय के लिए एक निश्चित तापमान में छोड़ दिया। यह लगभग वैसी ही प्रक्रिया थी, जैसी पक्षी अपने अंडों को सेने के लिए करते हैं। इसके बाद उन कोशिकाओं को माइक्रोस्कोप के सामने रख कर काफी छोटी-छोटी चिमटियों और इलेक्ट्राड से काट कर आपस में जोड़ दिया। यही आपस में जुड़ी कोशिकाएं एक ऐसे जीव के रूप में विकसित हुईं, जो इसके पूर्व प्रकृति में कभी नहीं पाया गया।
शोधपत्र में कहा गया है कि, भविष्य में जेनोबोट प्रर्यावरण में मिले विषैले तत्वों का पता लगाने, समुद्र में माइक्रोप्लास्टिक को इकट्ठा करने और मरीजों की रक्तवाहिकाओं में जमी पपड़ी को खुरच कर साफ करने जैसे अनेक क्षेत्र में एक अनोखी मशीन के रूप में हमारे काम आ सकते हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि, परम्परागत रोबोटों के विपरीत जेनोबोट जैविक दृष्टि से पूरी तरह ग्राह्य हैं और सैद्धान्तिक रूप से ग्रह (शरीर) को अपनी उपस्थिति से प्रदूषित नहीं करेंगे।