पूरी दुनिया में जब कोविड-19 महामारी की वजह से लॉकडाउन लगा तो तमाम देशों में हरे भरे पेड़ों, सड़कों पर घूमते जंगली जानवरों और प्रदूषण रहित स्थानों की तमाम तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुईं। दरअसल लॉकडाउन की वजह से कार्बन उत्सर्जन में भारी कमी देखी गई। अगर वैश्विक रिपोर्ट की मानें तो इस साल पूरी दुनिया में कार्बन डाईऑक्साइड के उत्सर्जन में करीब 7 प्रतिशत की कमी आयी है। खास बात यह है कि भारत कार्बन डाईऑक्साइड की कमी लाने में विश्‍व औसत से आगे रहा। यहां पर 9 प्रतिशत की कमी दर्ज किये जाने का अनुमान है।

पेरिस समझौते की पांचवीं वर्षगांठ के ठीक एक दिन पहले जारी हुई ग्लोबल कार्बन बजट 2020 रिपोर्ट के अनुसार लॉकडाउन के दौरान कार्बन डाइऑक्साईड उत्सर्जन मे कमी की वजह से वैश्विक फॉसिल CO2 उत्सर्जन 34 बिलियन टन तक आ गया। 2020 के उत्सर्जन में कमी अमेरिका (-12%), EU27 (-11%) और भारत (- 9%) जैसे देशों में चीन से अधिक स्पष्ट दिखाई देती है जहां कोविड-19 सबसे पहले फैला और लॉकडाउन भी सीमित रहा। साथ ही वैश्विक CO2 उत्सर्जन में साल 2020 में 2.4 बिलियन टन(- 7%) की रिकॉर्ड कमी आई है।

ग्लोबल कार्बन बजट 2020 में बताया गया यह तथ्य द यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंग्लिया (यूएई) और द यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सेटर,एक रसेल ग्रुप विश्वविद्यालय द्वारा ‘अर्थ सिस्टम साइंस जनरल’ में आज प्रकाशित हुआ है।

भारत में उत्‍सर्जन में 9 प्रतिशत की कमी

रिपोर्ट के अनुसार भारत में जहां फॉसिल CO2 उत्सर्जन में लगभग 9% की कमी होने का अनुमान है। 2019 के अंत में आर्थिक उथल-पुथल और सशक्त हाइड्रोपावर उत्पादन के कारण उत्सर्जन पहले से ही सामान्य से कम था और कोविड-19 ने इसको और प्रभावी बना दिया। 2019 में CO2 उत्सर्जन में चीन पहले, यूएसए दूसरे और भारत विश्व स्तर पर तीसरे स्थान पर है। शेष विश्व के लिए कोविड-19 प्रतिबंधों के प्रभाव के चलते CO2उत्सर्जन में 7% की कमी आई।

वैश्विक रूप से 2020 में अप्रैल महीने की शुरुआत में खासतौर से यूरोप और यूएसए में उत्सर्जन में गिरावट चरम पर थी क्योंकि लॉकडाउन संबंधी कदम कड़े थे।

1 से 2 गीगा टन कार्बन डाईऑक्साइड की कटौती की आवश्‍यकता

ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करने के लिए ग्रीन हाउस गैसों के कम से कम उत्सर्जन के उद्देश्य से हुए संयुक्त राष्ट्र पेरिस जलवायु समझौते की कल होने वाली पांचवी वर्षगांठ से पहले इस वर्ष की ग्लोबल कार्बन बजट रिलीज आ गई है। जलवायु परिवर्तन को अपने लक्ष्यों के अनुरूप सीमित करने के लिए प्रत्येक वर्ष 2020 और 2030 के बीच औसतन लगभग 1 से 2 Gt CO2 की कटौती की आवश्यकता होती है। वार्षिक कार्बन अपडेट करने वाली अंतरराष्ट्रीय टीम के अनुसार ऐतिहासिक समझौते के 5 साल बाद वैश्विक CO2 उत्सर्जन में वृद्धि की दर में कमी आई है।इसका कारण जलवायु नीति का प्रसार माना जा सकता है। 2020 से पहले की तुलना में 24 देशों में उनकी अर्थव्यवस्था में बढ़त के बावजूद फॉसिल CO2 उत्सर्जन में महत्वपूर्ण कमी आई।

हालांकि शोधकर्ताओं ने आगाह करते हुए कहा कि 2021 और उसके बाद भी उत्सर्जन कितना बढ़ेगा यह कहना अभी जल्दबाजी होगी क्योंकि वैश्विक फॉसिल उत्सर्जन का दीर्घकालिक रुझान कोविड-19 महामारी के चलते वैश्विक अर्थव्यवस्था को मजबूत करने संबंधी कार्यों से प्रभावित होगा।

नई दिल्ली स्थित पर्यावरण संस्‍था क्लाइमेट ट्रेंड्स के अनुसार एक्सेटर विश्वविद्यालय के प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर पियरे फ्राइडलिंगस्टीन ने इस संबंध में एक वक्तव्य दिया है। उनके अनुसार वैश्विक उत्सर्जन इस साल इतना अधिक नहीं था पर अभी भी लगभग 39 बिलियन टन CO2 की मात्रा मौजूद है। कार्बन डाइऑक्साईड को नियंत्रित करने के लिए वनों की कटाई, और जंगलों में लगने वाली आग को रोकना बहुत जरूरी है। अमेज़न के जंगलों में पेड़ निरंतर काटे जा रहे हैं, जो चिंता का विषय है।

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