नई दिल्ली । कोविड-19 वैश्विक महामारी के वैश्विक प्रकोप से पहले, व्यावसायिक घराने, आमजन और राष्ट्र के साथ ही राज्य आधुनिक तकनीक को एक विकासवादी घटना के रूप में मान कर चल रहे थे । निजी फर्म और संगठन सभी प्रकार के नवीनतम आविष्कारों के लिए न सिर्फ उत्साहित थे बल्कि शुरुआत से ही ऐसी प्रौद्योगिकी का फायदा उठाने की उन्होंने कोशिश भी की। हालांकि सार्वजनिक क्षेत्र और सरकारी संस्थान नई तकनीकों को पूरी तरह से अपनाने और उनमें तेजी लाने के लिए परंपरागत रूप से अधिक सतर्क एवं शंकालु रहे।
अचानक से कोरोना के प्रकोप और अनिवार्य शटडाउन ने राज्य, प्रशासन और व्यावसायिक समूहों को प्रौद्योगिकी के अधिकतम उपयोग पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर कर दिया । यह एक ऐसी असाधारण स्थिति है जिसने सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक क्षेत्रों सहित मानव और प्रकृति को भी जबर्दस्त प्रभावित किया है।
व्यक्तिगत दूरी की मजबूरी को आभासी नजदीकी में बदलने का काम आधुनिक तकनीकी कर रही है। नई डिजिटल क्षमताओं का पता लगाया जा रहा है तथा दुनिया भर में डिजिटलीकरण के लिए संभावित क्षेत्रों को लक्षित किए जाने की योजना भी बन रही है । यहां तक कि महामारी के दौरान, कोविड संक्रमण के विस्तार को रोकने के लिए तेजी से डिजिटलीकरण हुआ। ‘ट्रैक’ और ‘ट्रेस’ विधि के माध्यम से दुनिया ने कोविड विषाणु के संक्रमण को नियंत्रित भी किया । यह एक सर्वविदित तथ्य है कि कैसे शोधकर्ताओं ने इस वायरस का अध्ययन करने और वैक्सीन की खोज में तेजी लाने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) का इस्तेमाल किया और लगातार कर भी रहें हैं। विगत वर्षों में आधुनिक तकनीकि के माध्यम से ई-स्वास्थ्य, ई-भुगतान, ई-कॉमर्स, ई-गवर्नेंस और कैशलेस अर्थव्यवस्था, जैसे शब्द दुनिया भर में आम जान मानस के दिलो दिमाग में छा गए हैं । 5-जी, आर्टिफिशियल-इंटेलिजेंस (एआई), क्रिप्टो-करेंसी और ब्लॉकचेन जैसी अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी दुनिया भर में बहस और चर्चा का विषय बने हुए हैं ।
जिस तरह से ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ आज की दुनिया की नई जीवन पद्धति या यूँ कहें नियो-नार्मल है, डिजिटलीकरण ने धीरे-धीरे इस अंतराल को पाटने में अहम भूमिका अदा की है। शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य, व्यापार, संचार और मनोरंजन तक में भारी निवेश और प्रौद्योगिकी को प्राथमिकता देने में तेजी आई है। अतः, यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि कोविड महामारी ने संचार और आधारभूत संरचानात्मक विकास में उत्प्रेरक का काम किया है । इसकी बानगी इस बात से भी तय की जा सकती है कि कैसे आज व्यवसायिक संगठन और सरकारें वैश्विक स्तर पर अपनी नीति योजनाओं के मूल में डिजिटल रणनीतियों को प्राथमिकता दे रहे हैं।
हालांकि, सदी की शुरुआत से ही भारत प्रौद्योगिकी और उसके बुनियादी ढांचे के निर्माण पर जोर दे रहा है। आधार योजना से व्यक्तिगत डेटा का डिजिटलीकरण और ‘जनधन योजना’ के माध्यम से लोगों को बैंकिंग प्रणाली से जोड़ने का अभियान चलाया जा चुका है। ‘कैश-लेस’ इकोनॉमी के नारे, ‘भीम’ ऐप तथा यूपीआई जैसे अन्य आधुनिक उपकरण ने ऑनलाइन लेन-देन को गति दी है ।यह तर्क भी दिया जा रहा है कि जीएसटी, स्मार्ट सिटी, डिजिटल इंडिया, और ‘आरोग्य सेतु’ जैसी पहलें देश के डिजिटल अभियान में मील का पत्थर साबित होंगी।
महामारी के दौरान किसानों, कर्मचारियों, मजदूरों तथा बीपीएल (गरीबी रेखा से नीचे) परिवारों को जिस तरह से ऑनलाइन वेतन/पैसे हस्तांतरण हुए हैं, वह भारत की उभरती डिजिटल क्षमता को दिखाती है। महामारी के दौरान हमने पाया कि परिष्कृत ड्रोन की मदद से सर्वेक्षण, निगरानी और सार्वजनिक घोषणा की गयी जिससे कोविड विभीषिका को नियंत्रित करने में मदद मिली। लम्बे लॉक डाउन और की वजह से मनोरंजन उद्योग क्षेत्र में ओटीटी और नेटफ्लिक्स जैसे नए प्लेटफॉर्म अस्तित्व में आ चुके हैं। इसी तरह से शिक्षा जगत में, ऑनलाइन कक्षाएं, सम्मेलन और वेबिनार बड़े पैमाने पर आयोजित किए जा रहें। यहाँ उल्लेखनीय बात यह है कि ये सब परिवर्तन बहुत तेजी से हुए है जिसे महामारी के पहले आम जनमानस ने सोचा ही नही था ।
विस्तार से देखें तो पता चलता है, भारत ‘दीक्षा’ को बड़े पैमाने पर बढ़ावा दे रहा है, जो देश भर में स्कूली शिक्षा और प्रशिक्षण के लिए दुनिया का सबसे अधिक वित्त पोषित शिक्षण ऐप है। हाल ही में आयी ‘नई शिक्षा नीति’ -2021′ जहाँ एक तरफ आवश्यक डिजिटल बुनियादी ढांचे के विकास पर जोर दे रही है वहीँ दूसरी तरफ स्कूल-स्तर से ही डिजिटल साक्षरता की सिफारिश करती है।
‘स्वंय’ (SWAYAM), भारत सरकार द्वारा राष्ट्रव्यापी शिक्षा में गुणवत्ता, समानता और पहुंच लिए एक अन्य कार्यक्रम है। देश के सबसे वंचित वर्ग की मदद करना इस मंच का मूल उद्देश्य है। इस कार्यक्रम के माध्यम से उन लोगों के बीच डिजिटल अंतर को पाटने का विचार है जो देश में नई डिजिटल क्रांति में शामिल हो नहीं कर सके।
कोविड-19 महामारी के बीच, (2020 ) केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने ऑनलाइन शिक्षा प्रदान करने के लिए डिजिटल शिक्षा पर ‘प्रज्ञाता’ (पीआरएजीवाईएटीए) दिशा-निर्देश जारी किए हैं । इन निर्देशों में ऑनलाइन और डिजिटल शिक्षा के आठ चरण हैं जो उदाहरणों के साथ चरणबद्ध तरीके से डिजिटल शिक्षा की योजना और कार्यान्वयन का मार्गदर्शन करते हैं।
2016 में, विदेश मंत्रालय और कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय ने मिलकर ‘प्रवासी कौशल विकास योजना’ (पीकेवीवाई) को लागू करने के लिए एक समझौते को औपचारिक रूप दिया। इस योजना का मुख्या लक्ष्या यह है कि विदेशों में नौकरी चाहने वाले भारतीयों को कौशल प्रशिक्षण दिया जाए जिससे वह अपना रोजगार और जीवन-यापन आसानी से कर सकें। इसके अलावा, केंद्रीकृत लोक शिकायत निवारण और निगरानी प्रणाली, (CPGRAMS,) चौबीस घंटे किसी भी स्थान से ऑनलाइन शिकायत दर्ज करने की सुविधा प्रदान करता है। इस योजना का उद्देश्य भारत में किसी भी सरकारी संगठन के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने, उसकी त्वरित और आवश्यक कार्रवाई हेतु ऑनलाइन मंच प्रदान करना है।
हाल ही में, भारत सरकार कृषि के डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में है जो एग्रीस्टैक के लिए एक रूपरेखा तैयार करेगा। इसका लक्ष्य न सिर्फ प्रभावी योजना बनाने और किसानों की आय बढ़ाने में सरकार की मदद करना है अपितु कृषि क्षेत्र की दक्षता में भी अभूतपूर्व सुधार करना है ।
भारत सरकार ने 30 मार्च, 2020 को कोविड-19′ के लिए राष्ट्रीय डैशबोर्ड लॉन्च किया। राज्य और सभी जिला पोर्टल को केंद्रीयकृत सार्वजनिक शिकायत निवारण और निगरानी प्रणाली के साथ एकीकरण किया गया। महामारी की विभीषिका में ये तकनीकि उन लोगों के लिए लाभकारी रही है जो दूर दराज के क्षेत्रों में अलग थलग पड़ गए थे।
राशन कार्ड/उचित मूल्य की दुकाने/एलपीजी सब्सिडी के डिजिटलीकरण के साथ-साथ, नरेगा के तहत श्रम भुगतान बड़े पैमाने पर हो रहा है। ‘डिजिटल एम्स’ जैसी महत्त्वपूर्ण स्कीम लॉन्च की गयी थी जो कोविड संकट के दौरान रोगी को अनुकूल अस्पतालों की सुविधा प्रदान कराने में अग्रणी रही है।
ई-गवर्नेंस के क्षेत्र में भारत सरकार देश की लोक सेवा प्रणाली में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने के लिए कदम उठा रही है। उदाहरण के लिए उमंग ऐप, ई-पेंशन, इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक, डिजिटल लैंड, ई-एचआरएमएस, ई-खरीद, जीआरआईपी, प्रिया सॉफ्ट आदि को सुव्यवस्थित किया गया है, जहां देश के नागरिक सीधे सरकारी योजनाओं से लाभान्वित होंगे।
दुनिया में कहीं भी इंटरनेट कनेक्टिविटी के बिना डिजिटलीकरण असंभव है। भारत इंटरनेट उपभोगता के रूप में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में उभर रहा है। ऐसा अनुमान भी लगाया जा रहा है कि सन 2025 तक 700 मिलियन से अधिक ब्रॉडबैंड सब्सक्रिप्शन भारत में हो जायेंगे। इस क्षमता को ध्यान में रखते हुए पिछले वर्ष (2020), भारत सरकार ने 2300 किलोमीटर पानी के भीतर ऑप्टिकल फाइबर केबल लॉन्च किया।
वैश्विक महामारी की इस असाधारण स्थिति ने नई चुनौतियों और अवसरों को जन्म दिया है । कोविड-19 के बाद का युग तत्कालीन समय से एकदम भिन्न होने वाला है। एक दिन यह वैश्विक संकट समाप्त हो जाएगा। जीवन पटरी पर पुनः आ जायेगा परन्तु कोविड से लड़ने के लिए विशाल निवेशित बुनियादी ढांचे का क्या होगा? निश्चित रूप से भविष्य में दुनिया इस बुनियादी ढांचे का उपयोग मानव कल्याण के लिए करेगी।
नई चुनौतियाँ भी उभर कर सामने आ रहीं हैं। डिजटलीकरण और ऑनलाइन निर्भरता वैश्विक समुदाय के लिए दो-धारी तलवार की तरह हैं। पेगासस स्पाइवेयर के हालिया मुद्दे ने उन चिंताओं को उठाया है जहां राष्ट्रीय और व्यक्तिगत सुरक्षा दांव पर है। व्यक्तिगत-गोपनीयता, डिजिटल धोखाधड़ी और मानव-केंद्रित मूल्यों के साथ-साथ उपभोक्ता एवं प्रकृति की सुरक्षा से संबंधित मुद्दे विश्व स्तर पर उभर कर सामने आ रहे हैं। देश भर में डिजटलीकरण और नए बुनियादी ढांचे का निर्माण बड़ा और महंगा काम है। कहीं ऐसा न हो कि तकनीकि के दम पर हाई-टेक-आधुनिक-देश-शहर-क्षेत्र और लोग, विकासशील समाजों, जनों और क्षेत्रों पर हावी हो जाएँ?
डॉ सुरभि पांडे (असिस्टेंट प्रोफेसर)
डॉ चंद्र सेन (रिसर्च ऑफिसर)
भारतीय लोक प्रशासन संस्थान
नई-दिल्ली