महामारी के बीच भी दिल्ली के सीमाओं पर हज़ारों की संख्या में किसान अभी भी कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर बैठे हुए हैं। लेकिन इन्हीं किसान संगठनों में से एक भारतीय किसान यूनियन (किसान सरकार) ने अपील की है कि किसानों को कोरोना संकट तक अपने आंदोलन को टाल देना चाहिए।

हालांकि, इस मांग को राकेश टिकैत ने खारिज किया है। राकेश टिकैत ने ट्वीट किया कि तीनों कृषि के काले कानून वापस होने के बाद व एमएसपी पर कानून बनने के बाद ही खत्म होगा किसान आंदोलन।

कोरोना वायरस के चलते आईपीएल से लेकर श्रद्धालुओं की यात्रा तक रद्द

गौरतलब है कि, कोरोना की दूसरी लहर ने बहुत से लोगों की आंखें खोल दीं। हाल ही में कई राज्यों में हुए चुनाव के लिए चुनाव आयोग को फटकार लगाई गई, क्योंकि वोटिंग शेड्यूल लंबा रखा गया था, जिससे कोरोना को फैलने में मदद मिली। कुंभ मेले की भी आलोचना हुई, क्योंकि इसमें बड़ी संख्या में लोग एक दूसरे के संपर्क में आए। इस साल आईपीएल बीच में ही रद्द कर दिया गया है और उम्मीद है कि टोक्यो ओलिंपिक्स को भी टाल दिया जाएगा। उत्तराखंड सरकार ने हर साल बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री जाने वाले श्रद्धालुओं पर रोक लगा दी है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी में पंचायत चुनाव कराए जाने के लिए सरकार को फटकार लगाई है। इतना सब हुआ है, लेकिन ना तो सत्ताधारी पार्टी ने ना ही विपक्ष ने दिल्ली के आस-पास के इलाकों में हो रहे किसानों के विरोध प्रदर्शन को रोकने की बात कही है, क्योंकि कोरोना वायरस फैलाने के लिए वह भी जिम्मेदार हैं।

किसानों के प्रदर्शन के खिलाफ ना तो सत्ताधारी पार्टी बोल रही है, ना ही विपक्ष

नेशन टुडे योगी आदित्यनाथ और मनोहर लाल खट्टर जैसे भाजपा के मंत्रियों का पक्ष नहीं ले रहा है, लेकिन उनकी इस बात से सहमत है कि दिल्ली के आस-पास हो रहे किसानों के प्रदर्शन से कोरोना संक्रमण फैल रहा है और मौतें भी हो रही हैं। विरोधी पार्टियां तो राजनीति बचाने के लिए विरोध नहीं करेंगी, लेकिन जो लोग मानवाधिकार की बातें करते हैं, उन्हें तो किसान आंदोलन के खिलाफ बोलना ही चाहिए। पंजाब के किसान नए किसान कानून से इसलिए डरे हुए हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि इसके बाद अनाज एमएसपी पर सरकार नहीं खरीदेगी। वहीं सरकार ने एमएसपी पर कोई असर नहीं पड़ने की बात तो कही है, लेकिन इसका किसानों के विरोध प्रदर्शन पर कोई असर नहीं पड़ रहा है।

पंजाब का हर किसान करोड़पति

एक एग्रिकल्चरल एक्सपर्ट अशोक गुलाटी ने कहा है कि एमएसपी से सिर्फ 6 फीसदी किसानों को ही फायदा होता है, जिनमें अधिकतर उत्तर-पश्चिम के किसान हैं। गुलाटी के अनुसार पंजाब के किसानों को हर साल 8,275 करोड़ रुपये की बिजली सब्सिडी और करीब 5000 करोड़ रुपये की फर्टिलाइजर सब्सिडी मिलती है। यानी औसतन वहां के हर किसान को करीब 1.22 लाख रुपये सालाना की सब्सिडी मिलती है। इसके अलावा उन्हें पीएम किसान ग्रांट और क्रेडिट कार्ड के फायदे मिलते हैं। उनकी तगड़ी कमाई की वजह से पंजाब में जमीन की कीमतें 50 लाख रुपये से 1 करोड़ रुपये प्रति एकड़ तक हैं। पंजाब में इसी वजह से कंपनियां निवेश नहीं करती हैं, क्योंकि वहां पर जमीनों की कीमत काफी अधिक है। एक मामूली किसान के पास 1 हेक्टेयर या उससे भी कम जमीन होती है, लेकिन पंजाब में 1 हेक्टेयर जमीन की कीमत भी 1.25-2.5 करोड़ रुपये तक होती है। यानी किसान प्रदर्शन कर रहे लोग दरअसल करोड़पति हैं, जिन्हें हर साल 1.2 लाख रुपये से भी अधिक की सब्सिडी मिलती है।

पराली जलाकर खुलेआम तोड़ रहे कानून

पराली जलाने से धुआं उठता है, जिससे बहुत नुकसान होता है। दिल्ली और आस-पास के इलाकों में स्मॉग फैलने से करीब 5 करोड़ लोगों को सांस लेने में दिक्कत होती है। यहां तक कि स्कूल भी बंद हो जाते हैं। करीब 22 लाख बच्चों और वयस्कों के फेफड़ों पर बुरा असर पड़ता है। पराली जलाने से जमीन की नाइट्रोजन और कार्बन से जुड़े तत्व भी खत्म हो जाते हैं। जमीन के लिए फायदेमंद बहुत सारे जीवाणु भी नष्ट हो जाते हैं। इससे जमीन की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है, जिससे उर्वरक और रसायन का इस्तेमाल काफी बढ़ जाता है। पराली जलाना गैर-कानूनी है, लेकिन पंजाब और हरियाणा के किसान खुलेआम कानून तोड़ रहे हैं। पॉलिटीशियन उनकी गिरफ्तारी की बात इसलिए नहीं कर सकते, क्योंकि इससे उनके वोट बैंक पर असर पड़ सकता है।

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