भारत में कोरोनावायरस का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है। देशभर में रोजाना कोरोना के लाखों नए मामले सामने आ रहे हैं और हजारों लोग अपनी जान गंवा रहे हैं। भारत में विकराल रूप धारण कर चुके कोरोना वायरस के डबल म्यूटेंट वैरिएंट ने आम जनता के साथ-साथ सरकार की भी नींद उड़ा दी है। भारत में पाया गया कोरोना का डबल म्यूटेंट वैरिएंट आरटी-पीसीआर टेस्ट में आसानी से डिटेक्ट नहीं हो रहा है और यही वजह है कि लोग कोरोना की जांच के लिए बिना कुछ सोचे-समझे सीटी स्कैन कराने पहुंच जा रहे हैं।

सीटी स्कैन रेडिएशन से बढ़ता है कैंसर का खतरा

कोरोना की इस दूसरी लहर में सीटी स्कैन कराने वाले लोगों की तादाद में अचानक तेजी से बढ़ोतरी हुई है। इस बढ़ोतरी को देखते हुए दिल्ली एम्स के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया ने चिंता जाहिर की है। रणदीप गुलेरिया ने कोरोना के हालातों पर सोमवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की और सीटी स्कैन कराने वाले लोगों को अलर्ट किया। डॉ. गुलेरिया ने बताया कि कोविड शुरू होने के तुरंत बाद सीटी स्कैन कराना कोई खास फायदेमंद नहीं है। कोरोना से संक्रमित होने के बाद चेस्ट में पैच आ जाते हैं, जो इलाज के साथ-साथ खत्म भी होते जाते हैं। उन्होंने बताया कि सीटी स्कैन मशीन से निकलने वाले रेडिएशन काफी नुकसानदायक होते हैं, जो 300 एक्सरे के रेडिएशन के बराबर होते हैं। यही वजह है कि सीटी स्कैन रेडिएशन कैंसर का खतरा बढ़ा देता है।

सीटी स्कैन से पहले डॉक्टर की सलाह पर कराएं एक्सरे

डॉ. गुलेरिया ने कहा कि लोगों को डॉक्टरों की सलाह पर पहले छाती का एक्सरे कराना चाहिए और जब डॉक्टर सीटी स्कैन करने की सलाह दें, तभी सीटी स्कैन कराना चाहिए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कोरोना काल में लोग खुद ही डॉक्टर बन जा रहे हैं और अपनी मर्जी से सीटी स्कैन कराने पहुंच जा रहे हैं। उन्होंने इस स्थिति पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि कई लोग ऐसे भी हैं जो हर तीन महीने में एक बार सीटी स्कैन करा रहे हैं, जो बहुत खतरनाक है। एम्स डायरेक्टर ने कहा कि लोगों को खून की जांच भी कराने से पहले डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए। जिन मरीजों को कोरोना के हल्के लक्षण हैं, वे साधारण दवाइयों से भी ठीक हो जाते हैं, उन्हें स्टाइरॉइड की जरूरत नहीं पड़ती।

क्या कहती है हार्वर्ड मेडिकल स्कूल की रिपोर्ट

हार्वर्ड मेडिकल स्कूल की एक रिपोर्ट में भी सीटी स्कैन से होने वाले नुकसान का जिक्र किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सीटी स्कैन कराते हुए मशीन से निकलने वाले रेडिएशन कैंसर का खतरा उत्पन्न करते हैं। रिपोर्ट में हालांकि, ये भी कहा गया है कि बुजुर्ग लोगों में ये खतरा काफी कम होता है। हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. दुष्यंत वी. साहनी के अनुसार 65 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में इसका खतरा कम होता है और उनके शरीर में कैंसर उत्पन्न होने में 20 वर्ष या इससे अधिक समय लग जाता है।

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