देश अभी कोरोना के 2 मुखी वायरस का तांडव देख ही रहा है कि इसके एक और भाई ने भी जन्म ले लिया है। हेल्थ एक्सपर्ट की मानें तो इसकी अपनी शक्ति तो है ही साथ ही यह अपने पूर्ववर्ती 2 भाइयों की शक्ति को भी समेटे हुए है। स्पष्ट है कि यह अपने पूर्ववर्ती भाइयों से अधिक शक्तिशाली और विनाशकारी है। इसके फैलने की गति बहुत ही तेज है साथ ही इस पर कोई भी ब्रह्मास्त्र ( टीका) भी शायद ही काम करे।

हम बात कर रहे हैं कोरोना के ट्रिपल म्यूटेंट वैरिएंट की। बताया जा रहा है कि बंगाल , दिल्ली और महाराष्ट्र में इसके केस मिले हैं। वैसे दुनिया भर के करीब 15 देशों में इसे देखा गया है। पूरा विश्व इसको लेकर चिंतित हैं। यूनाइटेड किंगडम ने इसकी ताकत को देखते हुए भारत से आने वाली फ्लाइट पर रोक लगा दी है। कई दूसरे देश जैसे कनाडा भी ऐसा करने जा रहा है। भारत में करीब 10 लैब में इस पर रिसर्च चल रही है। इस बीच सबसे बड़ी बात यह उभर कर आ रही है कि फंड के अभाव और कोरोना मामलों की कम सैंपलिंग के चलते हमारे देश में जीन सीक्वेंसिंग का काम जिस तर्ज पर होना चाहिए था वो नहीं हो सका। माना जा रहा है कि यही कारण रहा कि हम देश में सेकंड वेव का मुकाबला ठीक से नहीं कर सके।

एक पर्सेंट सैंपल की ही हो रही जीनोम सीक्वेंसिंग

दरअसल किसी भी युद्ध में आक्रमणकारी से मुकाबला करने के लिए हमारे पास लड़ाई के लिए जरूरी हथियार गोला-बारूद तो होना ही चाहिए साथ में दूसरे मोर्चे पर उच्चस्तरीय खुफिया एजेंसी भी होनी चाहिए जो दुश्मन के अगले कदम के बारे में और आक्रमणकारी के स्ट्रेटजी का भी पता लगाता रहे। कोरोना से मुकाबले में हम केवल गोला-बारुद ( आक्सिजन-रेमडिसिविर-टेस्टिंग) में ही फेल्योर नहीं रहे बल्कि कोरोना के अगले कदम ( जीन सीक्वेंसिंग) की जानकारी हासिल करने में असफल साबित हुए हैं। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार कोरोना के डबल म्यूटेंट का पता महाराष्ट्र में अक्टूबर में ही चल गया था, पर कम सैंपलिंग और फंड की कमी के चलते जिस स्तर पर जीन सीक्वेंसिंग होनी चाहिए थी उस स्तर पर नहीं हो सकी। जनवरी महीने में सेंट्रल गवर्नमेंट ने इंडियन कौंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के साथ मिलकर इंडियन SARSCoV2 जेनॉमिक्स कंजोर्टियम (INSACOG)की स्थापना की जो जीनोम सीक्वेंसिंग का काम कर रही है। INSACOG का नेटवर्क 10 प्रयोगशालाओँ मुख्यतः कल्यानी,भुवनेश्वर, पुणे, हैदराबाद, बेंगलुरू और दिल्ली में हो रही है। पर अभी भी सीक्वेंसिंग का काम केवल 1 पर्सेट सैंपल पर ही आधारित है जो कि अपर्याप्त बताया जा रहा है। एक टीवी चैनल के साथ इंटरव्यू में मैकगिल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मधुकर के अनुसार वर्तमान में जो कोरोना का विस्फोट हुआ है उसके पीछे जीनोम सीक्वेंसिंग में ढिलाही के चलते डबल म्यूटेशन का पता लगाने में देरी को कारण माना जा सकता है।

ट्रिपल म्यूटेंट वैरिएंट को समझने के पहले हमें डबल म्यूटेंट वायरस के बारे में जानना होगा। यह डबल म्यूटेंट भी देसी राक्षस है जिसे वैज्ञानिकों ने B.1.617 का नाम दिया है। माना जा रहा है कई शहरों जैसे लखनऊ में जिस तेजी से कोरोना फैला और उसके पीछे कोरोना का यही रूप था। कोरोना रूपी इस दूसरे राक्षस में मौजूद E484Q और L452R म्यूटेशन्स, इसे ज्यादा खतरनाक बनाते हैं। इसके बारे में कहा जार रहा है कि शरीर के किसी भी सुरक्षा कवच ( एंटीबॉडीज ) को पार कर शरीर में हमला करने में सक्षम है। डबल म्यूटेंट की चुनौतियां सरकार के लिए कम नहीं हुईं थीं कि देश के सामने 3 मुंह वाले रावण ( ट्रिपल म्यूटेंट वैरिएंट) का खतरा आ गया। वैज्ञानिकों ने इसे B.1.618 नाम दिया है। तीन स्ट्रेन मिलकर बने इस नए राक्षस में E484K जैसे अलग जेनेटिक वेरिएंट्स पाए गए हैं, जिसके चलते यह उन लोगों के शरीर में भी एंटीबॉडीज को पार कर प्रवेश करने में सक्षम है जो पहले कोविड-19 से ठीक हो चुके हैं।

तीन मुखी रावण ( ट्रिपल म्यूटेशन वेरिएंट) के खतरे

इस तीन मुखी रावण ( ट्रिपल म्यूटेशन वेरिएंट) से पैदा हुए खतरे और संक्रमण के जोखिमों का अभी पता नहीं लगाया जा सका है। हालांकि कोरोनावायरस के बढ़ते मामलों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह कोरोना रूपी अपने पुराने भाइयों से काफी स्ट्रांग और अधिक घातक है। बताया जा रहा है कि ट्रिपल म्यूटेंट वैरिएंट पर वर्तमान में दुनिया भर में लग रहे टीके भी बेअसर साबित होंगे। हालांकि अभी ऐसे अनुमान ही व्यक्त किए गए हैं। एनडीटीवी के साथ इंटरव्यू में मैकगिल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ. मधुकर ने बताया कि यह ट्रांसमिसिबल वेरिएंट है। यह बड़ी संख्या में काफी तेजी से लोगों को बीमार बना रहा है।

अब तक दुनिया में सामने आ चुके कोरोना के 4 नए वैरिएंट

पहला म्यूटेंट वायरस, B.1.1.7 था जिसे यूके वैरिएंट के रूप में दुनिया में पहचान मिली है। यह वायरस इंग्लैंड के दक्षिण-पूर्व के एक सैंपल में पाया गया था। एक्सपर्ट के अनुसार ये वैरिएंट पुराने की तुलना में 40-70% अधिक संक्रामक था और इससे मृत्यु का खतरा 60% तक बढ़ा। इसके बाद ब्राजील में एक दूसरे वैरिएंट E484K का पता चला। येअपने पिछले भाई की तुलना में और अधिक खतरनाक बन गया। दक्षिण अफ्रीकी वैरिएंट B.1.351 यूके सहित कम से कम 20 देशों में पहुंच गया. E484K से संबंध रखने वाला ये म्यूटेशन एंटीबॉडीज को धोखा देने का शातिर खिलाड़ी है। इसे N501 नामक दूसरे भाई की शक्तियां और घातक बनाती हैं।

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