देश की राजधानी दिल्ली में तेजी से फैल रहे कोरोनावायरस ने आम जनता के साथ-साथ सरकार की भी टेंशन बढ़ा दी है। राजधानी में बढ़ रहे कोरोनावायरस के मामलों को देखते हुए दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार लगातार पाबंदियां बढ़ा रही है। दिल्ली में बेकाबू हो चुके कोरोना पर लगाम कसने की कोशिश में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने राजधानी में एक हफ्ते के लॉकडाउन का ऐलान कर दिया है। दिल्ली में सोमवार रात 10 बजे से अगले सोमवार सुबह तक लॉकडाउन लागू रहेगा। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल द्वारा किए गए लॉकडाउन के ऐलान के बाद से ही जरूरत के सामानों के साथ-साथ शराब की दुकानों पर भी लोगों की भारी भीड़ देखने को मिल रही है।

लॉकडाउन के ऐलान के बाद ठेकों पर उमड़ी भीड़

दिल्ली में एक हफ्ते के लॉकडाउन की खबरें सुनते ही शराब के शौकीन ठेकों पर टूट पड़े हैं। दिल्ली के तमाम इलाकों में स्थित शराब की दुकानों पर लोगों की लंबी-लंबी लाइनें लग गई हैं। लॉकडाउन के ऐलान के बाद पुरुष तो पुरुष, महिलाएं भी लाइन में लगकर शराब खरीद रही हैं। बताते चलें कि बीते साल लॉकडाउन के बीच दिल्ली में शराब की दुकानें खुलने के बाद भी ठेकों पर इसी तरह की भीड़ देखने को मिली थी। जिसके बाद राजधानी में कोरोना के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी दर्ज की गई थी। बता दें कि शराब ही राज्य सरकारों की कमाई का सबसे बड़ा जरिया है। गौरतलब है कि दिल्ली सरकार ने अभी हाल ही में शराब पीने की न्यूनतम कानूनी उम्र को 25 से घटाकर 21 साल कर दिया है।

क्या है शराब की टैक्स व्यवस्था ?

भारत में यूं तो जीएसटी सिस्टम के जरिए टैक्स की वसूली होती है। हालांकि, पेट्रोल और डीजल की तरह ही शराब को भी जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है। सभी राज्यों में शराब पर अलग-अलग टैक्स वसूला जाता है क्योंकि देश के अलग-अलग राज्यों की सरकार शराब पर अपने हिसाब से टैक्स वसूलती हैं। बता दें कि शराब बनाने और बेचने दोनों पर टैक्स लगाया जाता है। सरकारें एक्साइज ड्यूटी के नाम पर इसकी वसूली करती है।

शराब के लिए कई राज्यों ने वैट की व्यवस्था भी की है। शराब पर केवल एक्साइज ड्यूटी ही नहीं बल्कि स्पेशल सेस, ट्रांसपोर्ट फीस, लेबल और रजिस्ट्रेशन जैसे तमाम चार्ज भी लगाए जाते हैं। सभी राज्यों ने शराब पर अपने-अपने हिसाब से वसूली की व्यवस्थाएं बनाई हैं। यही वजह है कि एक ब्रैंड की शराब अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग कीमतों पर मिलती हैं।

शराब पर किस हिसाब से निर्धारित होता है टैक्स ?

शराब पर लगाए जाने वाले टैक्स की व्यवस्था को समझना बहुत आसान नहीं है। दरअसल, सभी राज्य अपने-अपने हिसाब से शराब पर टैक्स वसूलती हैं। इसके अलावा शराब पर लगने वाला टैक्स अल्कोहल से बने अलग-अलग प्रोडक्ट पर भी बदल जाता है। अल्कोहल युक्त प्रोडक्ट जैसे बीयर, व्हिस्की, रम, स्कॉच, देशी शराब आदि पर अलग-अलग तरह से टैक्स लगाया जाता है। इतना ही नहीं, भारत में निर्मित, विदेश में निर्मित, भारत में बनी विदेशी शराब, देशी शराब जैसे तमाम प्रोडक्ट्स पर भी अलग-अलग टैक्स लगाया जाता है।

उदाहरण के तौर पर हम राजस्थान की बात कर सकते हैं। राजस्थान में यदि आप 900 रुपये से कम कीमत की ‘भारत में बनी विदेशी शराब’ पर 35 फीसदी टैक्स लगाया जाता है। यदि आप यही शराब 900 रुपये से ज्यादा कीमत की खरीदते हैं तो इस पर 45 फीसदी टैक्स वसूला जाता है।

सरकारी खजाने में कितना जाता है पैसा?

शराब की खरीद पर 35 से 50 फीसदी तक टैक्स वसूला जाता है. मान लीजिए, यदि आप 1000 रुपये की शराब खरीदते हैं तो उसमें से 350 से 500 रुपये तक दुकानदार या शराब बनाने वाली कंपनी को नहीं बल्कि सरकार के खजाने में जाते हैं। शराब पर लगने वाले इतने भारी भरकम टैक्स की वजह से ही राज्यों की अरबों रुपये की कमाई होती है।

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