नई दिल्ली. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर नये कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आन्दोलन में लग कम रह गए हैं। बहुत से किसान अपने गांवों की ओर लौट रहे हैं। एक महीने पहले की संख्या से मुकाबला करें तो अब आधी ही संख्या आंदोलन स्थलों पर बची हुई है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या यह आंदोलन अब धीमा पड़ रहा है? हालांकि इसके जवाब में किसान नेताओं का कहना कि यह पहले से पता है कि लंबी लड़ाई होगी। सीमाओं पर कम भीड़ होना उनकी नई रणनीति का हिस्सा है।
आंदोलन के लिए समर्थन जुटाने के लिए राज्यों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। किसान नेता राकेश टिकैत ने देशभर में महापंचायतों की योजना बनाई है। वह अगले 10 दिनों में हरियाणा, महाराष्ट्र और राजस्थान में इस तरह की बैठकों में भाग ले सकते हैं।
बीते साल नवंबर से ही सरकार और किसानों के बीच गतिरोध जारी है। कोई भी पक्ष पीछे हटने को तैयार नहीं है। किसानों ने तीन कानूनों को 18 महीने तक सस्पेंड करने सरकार के प्रस्ताव को स्वीकार करने से इनकार कर दिया है जबकि बातचीत जारी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा है कि यह प्रस्ताव अब भी बरकरार है।
विरोध करने वाले किसान राकेश ने कहा, ‘अगर 10 लाख लोग यहां इकट्ठा होते हैं तो क्या सरकार इन कानूनों को वापस लेगी? हम पूरे देश में विरोध करेंगे. सभी जिलों में हमारे लोग फैल रहे हैं. बैठकें हो रही हैं।’
NDTV की एक रिपोर्ट के अनुसार, गाजीपुर प्रोटेस्ट कमेटी के प्रवक्ता जगतार सिंह बाजवा ने कहा, ‘सबसे पहले, आंदोलन सरकार की ज़िद को ध्यान में रखते हुए सीमाओं पर केंद्रीकृत किया गया था।’ उन्होंने कहा, ‘किसान नेता अपनी रणनीति में बदलाव कर रहे हैं। ताकि विरोध हर गांव के हर घर तक पहुंच सके. हम विभिन्न स्थानों पर महापंचायत कर रहे हैं।”
किसान नेताओं का यह भी दावा है कि किसान को कम समय के भीतर सीमाओं पर पहुंचने के लिए हमेशा उपलब्ध है। बाजवा ने कहा, ‘जब भी गाजीपुर की सीमा पर हमें संख्या बल की जरूरत होगी एक दिन के भीतर 1 लाख लोग आ सकते हैं।