*डॉक्टर रजनीकांत दत्ता,
पूर्व विधायक, शहर दक्षिणी,
वाराणसी ( यूपी )

23 जनवरी और 30 जनवरी के बीच के आठ दिनों में प्रतिवर्ष आने वाली कुछ तारीखें हमारे हर्ष और शोक के साथ-साथ गौरव और अपमान की भी कारण हैं। हम उन्हें कभी नहीं भूल सकते। इनमें 23 जनवरी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती है और 26 जनवरी सदा की भांति गौरवमय गणतंत्र दिवस है। हालांकि इस बार हमें 26 जनवरी को भी काले और अपमानित दिवस के रूप में मनाने के लिए विवश होना पड़ा। 30 जनवरी गांधी जी की पुण्य तिथि है, जब उनकी हत्या की गयी थी। यह हमारे लिए शोक दिवस है।

मोहन दास करमचंद गांधी केवल भारत के ही युगपुरुष नहीं, बल्कि विश्व की सर्वकालिक महान आत्माओं में से एक हैं, जिन्होंने देश की स्वतंत्रता और पीड़ित मानवता के हक़ की लड़ाई लड़ने के लिए सविनय अवज्ञा आंदोलन, सत्याग्रह, अहिंसा जैसे अमोघ मंत्र दिये। उनके सिद्धान्तों, जीवनशैली और प्रभावशाली नेतृत्व का मूल्यांकन इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में किया गया है। लेकिन यदि हम गांधी जी की हत्या से संबंधित उस HERCULIAN ICEBERG MYSTERY का पर्दाफाश नहीं करते, तो यह श्रद्धांजलि अधूरी है।

देश आजाद हो चुका था। कांग्रेस के अनेक सत्तालोलुप वरिष्ठ नेता गांधी जी को सबसे बड़ा दुश्मन मानते थे,
क्योंकि उनका कहना था कि, कांग्रेस भारत की आज़ादी के लिए एक आंदोलन है और जो आज़ादी मिलने के साथ अपना लक्ष्य पूरा कर चुकी है। इसलिए इसे राजनीतिक पार्टी का स्वरूप देने के पहले भंग कर देना चाहिए। नहीं तो वह उसके गौरवमयी इतिहास को कलंकित और अपमानित कर सकती है। हरिजन’ के 15 फरवरी, 1948 के अंक में ‘गांधी जी की अंतिम इच्छा और वसीयतनामा’ शीर्षक से प्रकाशित एक मसौदे में उन्होंने लिखा था, ‘‘भारत को…सामाजिक, नैतिक और आर्थिक आजादी हासिल करना अभी बाकी है। भारत में लोकतंत्र के लक्ष्य की ओर बढ़ते समय सैनिक सत्ता पर जनसत्ता के आधिपत्य के लिए संघर्ष होना अनिवार्य है। हमें कांग्रेस को राजनीतिक दलों और साम्प्रदायिक संस्थाओं की अस्वस्थ स्पर्धा से दूर रखना है। ऐसे ही कारणों से अ.भा. कांग्रेस कमेटी मौजूदा संस्था को भंग करने और नीचे लिखे नियमों के अनुसार “लोक सेवक संघ” के रूप में उसे विकसित करने का निश्चय करती है।” गौरतलब है कि, गांधी जी ने ये मसौदा 29 जनवरी, 1948 की रात तैयार किया था, जिसके अगले ही दिन उनकी हत्या कर दी गयी। शायद यही वह भय था, जिसने सत्तारूढ़ कांग्रेसी नेताओं को गांधी जी के विरुद्ध उस चक्रव्यूह की रचना करने को प्रेरित किया, जिसने कालांतर में बापू को अकालमृत्यु का EASILY ACCESSIBLE SOFT TARGET बना दिया और कट्टरपंथी BRAIN-WASHED नाथूराम गोडसे को जाने-अनजाने उनके EXECUTER के रूप में IMPLANT कर दिया।

यहां हमें नहीं भूलना चाहिए कि, 30 जनवरी को बापू की हत्या के दस दिन पहले 20 जनवरी को मदनलाल पाहवा नामक एक पंजाबी शरणार्थी ने उन पर बम फेंका था, जो उन्हें न लग कर सामने दीवार से टकरा गया था, जिससे वह दीवार ढह गयी थी। इस घटना के बाद तत्‍कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल ने एहतियात के तौर पर बिड़ला हाउस पर एक हेड कांस्‍टेबल और चार कांस्‍टेबलों की तैनाती के आदेश दिये थे। गांधी जी की प्रार्थना के वक्‍त बिड़ला भवन में सादे कपड़ों में पुलिस तैनात रहती थी, जो हर संदिग्‍ध व्यक्ति पर नजर रखती थी। लेकिन गांधी जी की हत्या के तुरंत बाद ही वहां पहुंचे प्रख्यात पत्रकार कुलदीप नैयर ने लिखा है कि, उन्हें वहां कोई सुरक्षा कर्मी नजर नहीं आया।
बाद में नेहरू सरकार की ओर से बताया गया कि, पुलिस ने सोचा कि, एहतियात के तौर पर यदि प्रार्थना सभा में हिस्‍सा लेने के लिए आने वाले लोगों की तलाशी लेकर उन्‍हें बिड़ला भवन के परिसर में घुसने की इजाजत दी जाये तो बेहतर रहेगा। लेकिन गांधी जी को पुलिस का यह विचार पसन्द नहीं आया। पुलिस के डीआईजी स्तर के एक अफसर ने भी गांधी जी से इस बारे में बात की और कहा कि उनकी जान को खतरा हो सकता है, लेकिन गांधी जी नहीं माने। यह बात समझ से परे है कि, गांधी जी की इच्छा के विपरीत देश का विभाजन स्वीकार करने वाले जवाहर लाल नेहरू बापू की सुरक्षा के मुद्दे पर उनकी इच्छा का हवाला क्यों देते रहे। सबसे बड़ी बात तो यह थी कि, बापू का हत्यारा नाथूराम गोडसे बेरोकटोक बिड़ला भवन में घुस कर गांधी जी के करीब पहुंच गया, जबकि वह कोई अनजान नाम नहीं था। वह इससे पहले भी बापू की हत्या की तीन बार (मई 1934 और सितम्बर 1944 में) कोशिश कर चुका था, लेकिन असफल होने पर अपने दोस्त  नारायण आप्टे के साथ वापस मुम्बई चला गया था। शुरू में वह महात्मा गांधी का पक्का अनुयायी था। गांधीजी ने जब नागरिक अवज्ञा आंदोलन छेड़ा, तो उसने न सिर्फ आंदोलन का समर्थन किया, बल्कि बढ़-चढ़कर उसमें हिस्सा भी लिया था। बाद में वह गांधीजी के खिलाफ हो गया। उसके दिमाग में यह बात बैठ गयी थी कि, गांधी जी ने अपनी ‘आमरण अनशन’ नीति से हिंदू हितों का बार-बार गला घोंटा है। इतना ही नहीं, गोलियां लगने के बाद बाद गांधी जी को प्रार्थना सभा स्थल से अस्पताल ले जाने के बजाय बिड़ला भवन में ही उनके रिहायशी कमरे में लाकर लिटा दिया गया। इस संबंध में 1984 में ‘हत्यारिन राजनीति’ शीर्षक से लिखित एक कविता में उठाया गया यह सवाल कि, “साजिश का पहले-पहल शिकार सुभाष हुए, जिनको विमान दुर्घटना में था मरवाया; फिर मत-विभेद के कारण गांधी का शरीर, गोलियां दागकर किसने छलनी करवाया?” आज भी अनुत्तरित है।

कहते हैं कि, इतिहास अपने को दोहराता है। वर्ष 1998 में विदेशी मूल की महिला सोनिया गांधी CONGRESS की अध्यक्ष चुनी गयीं। उनके एकछत्र शासन काल में विपक्षी दलों के गठबंधन के साथ UPA की सरकार बनी, जिसे 2014 में जनता की अदालत ने बर्खास्त कर दिया। उसी कुंठा से पीड़ित कांग्रेस और उसके सहयोगी दल जब दोबारा सत्ता प्राप्त करने की मुहिम में सफल नहीं हो पाये, तो उन्होंने FOUL-PLAY को अपनी POLITICAL POLICY बना लिया। इसी नीति के तहत उन्होंने अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए देश के विरुद्ध दुश्मन देशों का AGENT और SLEEPER CELL तक बनने में भी कोई गुरेज नहीं किया।

इसी नीति तहत उसने हर कल्याणकारी सरकारी योजनाओं के विरुद्ध जनता में भ्रामक प्रचार कर, खरीदे हुए गुंडों द्वारा देश में हिंसक आंदोलन फैला कर, हर दृष्टि से न केवल देश को कमजोर करने की, बल्कि विदेशों में भी उसकी साख को धूल-धूसरित करने में कोई कसर नहीं उठा रखी। उदाहरण के तौर पर गत वर्ष जब अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प राजधानी दिल्ली में उपस्थित थे, तो CAA के विरोध में नयी दिल्ली में शाहीन बाग जैसे धरने को अंजाम दिया गया और उनकी PRESENCE में अल्पसंख्यक वर्ग द्वारा हिंसक उपद्रव और आगजनी करा कर दुनिया की नज़रों में भारत को अपमानित करने का कृत्य किया गया।

यही नहीं, 26 जनवरी 2021 को जो कुछ हुआ, उसकी कालिमा को भी हम भूल नहीं सकते। हम सभी ने देखा है कि, किस तरह इन्हीं कांग्रेसियों ने वामपंथी दलों के साथ साठगांठ कर किसानों को कृषि सुधार कानूनों के खिलाफ मिथ्या आशंकाओं से BRAINWASHED कर लालकिले पर राष्ट्रीय ध्वज को अपमानित किया और एकतरफा हिंसक गुंडागर्दी से देश के संविधान की धज्जियां ही नहीं उड़ायीं, बल्कि उसकी आन-बान-शान और विश्व में उसकी साख को भी धूल-धूसरित किया।

ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो पाये और देशद्रोही ताकतें अपने देशविरोधी मंसूबों में कामयाब न हो पायें, मैं सरकार से अनुरोध करूंगा कि, भारतीय संविधान में वैधानिक तरीक़े से ऐसी धाराओं के समावेश किया जाए, जिसमें इन देशद्रोहियों की चल-अचल संपत्ति की कुर्की के साथ-साथ उन्हें आजीवन कारावास या मृत्युदंड देने का भी प्रावधान हो और FAST-TRACK COURTS को एक निश्चित समयसीमा में FINAL JUDGEMENT देना MANDATORY कर दिया जाए।

इन्हीं शब्दों के साथ मैं पूज्य बापू के चरणों मे भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। मेरा भारत महान था और भाई नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार के नेतृत्व में महान है और महान रहेगा। बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला।

वंदे मातरम।
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