नई दिल्ली। पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी की अपने कार्यकाल के दौरान ‘अल्पसंख्यकों में असुरक्षा’ वाले बयान पर प्रतिक्रिया आई है। पूर्व उपराष्ट्रपति ने कहा है कि उनके कार्यकाल के अंतिम सप्ताह के दौरान दो घटनाओं से कुछ वर्गों में नाराजगी पैदा हुई। उनके बयान से समझा गया कि इनके कुछ छिपे हुए अर्थ हैं। अपनी नई किताब ‘बाई मैनी ए हैप्पी एक्सीटेंडः रीकलेक्शन ऑफ ए लाइफ’ में पूर्व उप राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री मोदी और उनके बीच की कई बातचीत, मुलाकातों का भी जिक्र किया है।

क्या हुआ आखिरी सप्ताह में?

उपराष्ट्रपति और राज्य सभा के सभापति के तौर पर अंसारी का कार्यकाल 10 अगस्त 2017 को पूरा हुआ था। वह 2007 से 2017 तक इस पद पर रहे। उन्होंने अपनी नई किताब ‘बाई मैनी ए हैप्पी एक्सीटेंडः रीकलेक्शन ऑफ ए लाइफ’ में अपने राजनयिक जीवन और राज्य सभा के सभापति के रूप में अपने कई अनुभवों का उल्लेख किया है। कार्यकाल के अपने अंतिम दिन का जिक्र करते हुए पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने कहा है, ‘मुझे बाद में पता चला कि मेरे कार्यकाल के आखिरी सप्ताह में दो घटनाओं ने कुछ वर्गों में नाराजगी पैदा की ‘

ये हैं वो दो बयान

इनमें पहला मामला बेंगलुरू के नेशनल लॉ स्कूल ऑफ यूनिवर्सिटी के 25वें दीक्षांत समारोह के दौरान दिए गए बयान का है इस पर वह कहते हैं, ‘मैंने सहिष्णुता से आगे जाकर स्वीकार्यता के लिए सतत बातचीत के जरिए सद्भाव को बढ़ावा देने पर जोर दिया, क्योंकि हमारे समाज के विभिन्न वर्गों में असुरक्षा की आशंका बढ़ी है, खासकर, दलितों, मुसलमानों और ईसाइयों में। दूसरा, राज्य सभा टीवी पर दिया साक्षात्कार था जो नौ अगस्त 2017 को प्रसारित हुआ. जिसमें उप राष्ट्रपति के कार्य के सभी पहलुओं पर बातचीत की गई। इसमें ‘अनुदार राष्ट्रवाद’ और भारतीय समाज और राजनीति में मुसलमानों को लेकर धारणाओं के बारे सवाल भी शामिल थे।

कार्यकाल का अंतिम दिन

उपराष्ट्रपति ने किताब में अपने कार्यकाल और राज्य सभा के सभापति के तौर पर अपने अंतिम दिन—10 अगस्त 2017 के बारे में लिखा है, ‘दिन की कार्यवाही सुबह के सत्र का विवरण रिकॉर्ड करती है। पार्टी नेताओं और मनोनीत शख्सियतों ने तारीफ की और प्रशंसात्मक संदर्भ दिए कार्यवाही संबंधी सुधार और शोर गुल में कोई विधेयक पारित नहीं करने के नियम और निष्पक्षता का, खासकर जिक्र किया गया। पीछे की बेंच से एक वरिष्ठ सदस्य ने संस्कृत के श्लोक का उल्लेख करते हुए उन्हें शुभकामनाएं दीं और उपनिषद के शब्दों के हवाले से उनकी लंबी उम्र की कामना की।

‘विचारधारा में बांधने की कोशिश’

पूर्व उप राष्ट्रपति ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उस कार्यक्रम में शिरकत करते हुए उनके कामों का चुनिंदा तौर पर ही उल्लेख किया। राज्य सभा के सभापति के रूप में उनके काम का बहुत कम उल्लेख किया गया और जबकि राजनयिक के रूप में उनके काम की ओर इशारा करके उसकी प्रशंसा की गई। अंसारी के अनुसार इसके पीछे इस बात का प्रयास था कि उन्हें एक खास माहौल और विचारधारा में बांधने तथा जहां उनकी तैनाती की गयी वहां इस प्रकार (मतलब मुसलमानों) से चर्चा करने की बात पर बल दिया जाए। साथ ही इसके पीछे एएमयू के कुलपति और एनएमसी के अध्यक्ष के रूप में उनकी पृष्ठभूमि की बात पर भी जोर देना था। अंसारी ने मोदी के भाषण के हवाले से कहा, ‘(इन सब वर्षों में) कुछ संघर्ष हो सकता है, लेकिन अब से आपको इस दुविधा का सामना नहीं करना पड़ेगा. आपको स्वतंत्रता का अहसास होगा और आपको अपनी विचारधारा के अनुरूप काम करने, सोचने और बोलने का मौका मिलेगा।’

काम की अनदेखी की गई

अंसारी ने कहा कि उनके काम की अनदेखी की गई जबकि भारत के प्रतिनिधि के रूप में और विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र में एक महत्वपूर्ण अवधि में उनका काम साक्षी है। उन्होंने कहा कि भारत का प्रतिनिधि कहीं भी हो किसी स्तर का हो, भले ही, उच्च स्तर क्यों न हो, वह भारत के हिसाब से ही काम करता है और वह अपनी निजी धारणों से प्रभावित हुए बिना भारतीय हितों को ही बढ़ावा देता है। उन्होंने उस दिन बाद में बालयोगी सभागार में राज्य सभा के सदस्यों की तरफ से विदाई कार्यक्रम का भी जिक्र किया जहां उन्हें “स्क्रॉल ऑफ ऑनर” दिया गया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने वहां भी संबोधन किया और उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि, सार्वजनिक जीवन में अनुभव, ब्रिगेडियर मोहम्मद उसमान और 1948 में उनकी शहादत का जिक्र किया और उनके लंबे कार्यकाल के बारे में उनके संज्ञान में कुछ भी प्रतिकूल नहीं कहा. उन्होंने उम्मीद जताई कि जो ज्ञान कार्यकाल के दौरान हासिल हुआ है वह जनहित के लिए दर्ज होगा।’

जब प्रधानमंत्री ऑफिस आए

अपनी किताब में अंसारी ने उस रुख के बारे में भी लिखा है जिसमें उन्होंने राज्य सभा के सभापति के रूप में लिया था कि शोर शराबे में किसी भी विधेयक को पारित नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा कि विपक्षी नेताओं ने इस नियम की प्रशंसा की थी और इस नियम का उनके कार्यकाल में पालन किया गया। अंसारी ने कहा कि इससे दोनों सरकारों को परेशानी हुई लेकिन यूपीए सरकार ने उनके नियम का संज्ञान लिया और इसके मद्देनजर सदन में प्रबंधन किया और विपक्ष के साथ समन्वय किया। उन्होंने कहा, ‘एक दिन राज्य सभा के मेरे दफ्तर में प्रधानमंत्री मोदी आए थे। आमतौर पर ऐसा नहीं होता है कि प्रधानमंत्री बिना कार्यक्रम के मिलने आएं. मैंने उनका स्वागत किया।

अंसारी ने कहा, ‘उन्होंने (मोदी) ने कहा कि आपसे उच्च जिम्मेदारियों की अपेक्षा है लेकिन आप मेरी मदद नहीं कर रहे हैं। मैंने कहा कि राज्य सभा में और बाहर मेरा काम सार्वजनिक है। उन्होंने पूछा ‘शोरगुल में विधेयक पारित क्यों नहीं कराए जा रहे हैं?’ मैंने जवाब दिया कि सदन के नेता और उनके सहयोगी जब विपक्ष में थे तो उन्होंने इस नियम की सराहना की थी कि कोई भी विधेयक शोरगुल में पारित नहीं कराया जाएगा और मंजूरी के लिए सामान्य कार्यवाही चलेगी।’

अंसारी ने कहा, ‘इसके बाद उन्होंने (मोदी) ने कहा कि राज्यसभा टीवी सरकार के पक्ष में नहीं दिखा रहा है। मेरा जवाब था कि चैनल में मेरी कोई भूमिका नहीं है। संपादकीय सामग्री को मैं नियंत्रित नहीं करता हूं और राज्य सभा सदस्यों की एक समिति है जिसमें भाजपा का भी प्रतिनिधित्व है, वह चैनल को मार्गदर्शन देती है। चैनल के कार्यक्रम और चर्चाओं की दर्शक सराहना करते हैं.’

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