उत्तर प्रदेश के हाथरस में सामूहिक दुष्कर्म पीड़िता सहित यौन शोषण मामलों में पीड़िताओं की पहचान उजागर होने पर उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को इसे गंभीरता से लिया है। न्यायालय ने दिल्ली सरकार, फेसबुक, यूट्यूब व अन्य सोशल मीडिया और वेबसाइडों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने यह आदेश एक जनहित याचिका पर दिया है। याचिका में यौन उत्पीड़न मामलों में पीड़ताओं के पहचान उजागर होने पर रोक लगाने और पीड़िता की पहचान उजागर करने वालों के खिलाफ समुचित कार्रवाई की मांग की गई है। मामले की सुनवाई करते हुए पीठ ने कहा कि पीड़िता की पहचान उजागर होना न सिर्फ गंभीर मसला है बल्कि चिंताजनक भी है। पीठ ने सरकार, सोशल मीडिया जैसे फेसबुक, यूट्यूब और ट्विटर के अलावा कई अखबारों को भी नोटिस जारी किया है। सभी पक्षकारों को यह बताने के लिए कहा गया है कि क्यों न उनके खिलाफ समुचित कार्रवाई की जाए। मामले की अगली सुनवाई 5 फरवरी से पहले जवाब देने को कहा है।
पीठ ने अधिवक्ता मनन नरूला की ओर से दाखिल जनहित याचिका पर यह आदेश दिया है। याचिका में कहा गया है कि जिस प्रकार से यौन उत्पीड़न की पीड़िताओं की पहचान उजागर की जा रही है, यह पूरी तरह से भारतीय दंड संहिता की धारा 228ए का उल्लंघन है। अधिवक्ता नरूला ने इनके खिलाफ उचित कानूनी कार्रवाई करने की मांग की है। याचिका में कहा गया है कि हाथरस दुष्कर्म मामले में इन सभी समाचार पत्रों व सोशल मीडिया पीड़िता की पहचान बड़े स्तर पर उजागर की गई है।
याचिकाकर्ता ने पीठ को बताया कि यौन उत्पीड़न के पीड़िता की पहचान सार्वजनिक करने वालों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए थी, लेकिन दिल्ली सरकार किसी तरह का कार्रवाई करने में विफल रही है। नरूला ने पीठ को कठुआ दुष्कर्म मामले में पीड़िता का नाम उजागर करने पर कई समाचार पत्रों के खिलाफ उच्च न्यायालय द्वारा स्वत: संज्ञान लेकर कार्रवाई करने का भी हवाला दिया। दिल्ली सरकार की ओर से स्थाई अधिवक्ता राहुल मेहरा ने भी पीठ से कहा कि दुष्कर्म पीड़िता की पहचान सार्वजनिक करना बेहद गंभीर है। हालांकि उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता को पीड़िता का नाम सार्वजनिक करने वालों के खिलाफ अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 156 (3) के तहत निचली अदालत में अर्जी दाखिल कर मुकदमा दर्ज करने की मांग करना चाहिए।