वीरेंद्र सिंह सेंगर

अलविदा राजीव! कोरोनाकाल बहुत क्रूर होता जा रहा है।उसने हमारे प्रिय मित्र राजीव कटारा को छीन लिया।दो दिन से आशंका बनी हुईथी।वे दिल्ली के बतरा अस्पताल में वेंटीलेटर पर थे।दीवाली से ही कोरोना की चपेट में आ गये थे।उन्होंने क ई दिनों तक जीवन संघर्ष किया।वे सितंबर महीने तक हिंदुस्तान टाइम्स की पत्रिका कादम्बिनी का संपादन कर रहे थे।मुझसे तो पांच सात साल छोटे थे।जिंदादिल और सकारात्मकता से ओतप्रोत रहते थे।मितभाषी थे।उनकी मुस्कान में जादू सा था।सब एक क्षण में अतीत हो गया।कितना निष्ठुर होता है मौत का साया। राजीव!तुम्हारे संग इतनी लंबी पारी रही है कि क्या क्या याद करूं!

आज तड़के राजीव के बेटे डाः पुष्कल का फोन आया।जानकारी दी कि पापा नहीं रहे।आधी रात तक संपर्क में था।खबर थी कि कुछ सुधार के संकेत हैं।उम्मीद होने लगी थी।लेकिन सब मिथ्या।राजीव की पत्नी सविता का फोन देर रात भी आया था।आज साढ़े पांच बजे सुबह फोन आया तो यह कहने के लिए कि बाडी जल्दी रिलीज करवा दीजिए। मैं कैसे कहता कि बाडी तो मिट्टी भर है।अब उसके के लिए क्या।अस्पताल में एक उच्चस्तरीय संपर्क से बात की।जवाब मिला।प्रोटोकॉल के बाद ही बाडी मिल पाएगी।मैंने कहा जल्दी कर लो। जवाब मिला मिला,वो सरकारी प्रशासन के हाथ में है।झुंझलाहट के सिवाय और क्या कर सकता था? चौथी दुनिया अखबार में पहली मुलाकात हुई थी।फिर तो पत्रकारिता यात्रा के तमाम दौर आए।व्यक्तिगत रिश्ते इतनी अतंरग थे कि दूसरी बातें गौण हो गयी थीं।राजीव गंभीर लेखन में माहिर थे।वे पढ़ते बहुत थे।एकडमिक मानसिकता वाले थे।दिल्ली के एक नामी कालेज में सहायक प्रोफेसर का नियुक्त पत्र भी उन्हें मिल चुका था।लेकिन फिर सब उल्टा पुल्टा कैसे हुआ ?!इसकी भी अपनी एक राम कहानी रही है।लेकिन अब क्या? राजीव ने आज तक टीवी चैनल में भी शुरुआती दौर में काम किया था।स्पोर्ट्स पर भी राजीव बेहतरीन पकड़ रखते थे। कादम्बिनी को अचानक बंद करने के प्रबंधन के फैसले से राजीव अपने लिए कम ,टीम के सहयोगियों के लिए ज्यादा चिंतित थे।

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