अनिता चौधरी

असम में पिछले चार दशक तक प्रतिबंधित यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) और बाद में अलग हुए उल्फा (स्वाधीन) धड़े का आतंक कायम रहा। वर्तमान में उल्फा (स्व) का अस्तित्व खात्मे के कगार पर पहुंच गया है। संगठन का स्वयंभू मुख्य सेनाध्यक्ष परेश बरुवा इन दिनों बेहद कमजोर हो चुका है। इसका कारण यह है कि सभी प्रमुख कैडर शांति की राह पर चलते हुए , परेश बरुवा का साथ छोड़ रहे हैं। ऐसे में सरकार ये उम्मीद कर रही है कि देर-सबेर परेश बरुवा भी मुख्यधारा में लौटने के लिए मजबूर होगा।

परेश बरुवा गुट के प्रमुख कैडर दृष्टि राजखोवा ने भी किया था आत्मसमर्पण

हाल के दिनों में उल्फा (स्व) परेश बरुवा गुट के प्रमुख कैडर दृष्टि राजखोवा ने सेना के सामने आत्मसमर्पण किया था जिसके पीछे की कहानी में परेश बरुआ की बेचारगी नजर आ रही है। हालांकि अपना प्रभुत्व बताने के लिए परेश बरुवा ने मीडिया के जरिए यह बताने की कोशिश की कि दृष्टि राजखोवा ने उनके कहने पर ही आत्मसमर्पण किया है। तीन दशक से राज्य में आतंक का पर्याय बने मनोज राभा उर्फ दृष्टि राजखोवा को पकड़ने के लिए सेना और पुलिस लगातार अपने खुफिया विभाग के साथ मिलकर काम कर रही थी लेकिन वह हर बार सेना और पुलिस को चकमा देकर आसानी से बच निकलता था। दृष्टि राजखोवा ने मेघालय में मुठभेड़ के दौरान मेघालय पुलिस के सामने अपने चार अन्य कैडरों के साथ हथियार डाला था। स्थानीय प्रशासन परेश बरुआ के सभी स्थितियों से अच्छी तरह अवगत है | इंतज़ार बस उसके आत्मसमर्पण का कर रही है जिसके साथ ही असम से उल्फा काल का पूरी तरह से खत्म हो जायेगा

दृष्टि राजखोवा के आत्मसमर्पण के बाद परेश बरुआ गुट काफी कमजोर

दृष्टि राजखोवा के आत्मसमर्पण किए जाने के बाद परेश बरुआ गुट काफी कमजोर हो चुका है। तीन दशकों से दृष्टि राजखोवा का निचले असम में व्यापक प्रभाव था। विभिन्न आतंकी घटनाओं को अंजाम देना और धन संग्रह के अलावा संगठन को निचले असम में मजबूती प्रदान करने का जिम्मा दृष्टि के जिम्मे था। उल्फा (स्व) में सेनाध्यक्ष परेश बरुआ के बाद दृष्टि राजखोवा का प्रभाव था। सेना, असम और मेघालय पुलिस के लगातार प्रयासों के बाद भी दृष्टि राजखोवा की गिरफ्तारी या आत्मसमर्पण संभव नहीं हो पा रहा था। दृष्टि राजखोवा को मुख्यधारा में लाने में सबसे अहम भूमिका असम पुलिस के आला अधिकारी हीरेन चंद्र नाथ की रही है।

पुलिस अधिकारी हीरेन चंद्र नाथ के प्रयास से उल्फा (स्व) का खूंखार कैडर दृष्टि लौटा मुख्यधारा में

सूत्रों के अनुसार एक साल पहले असम पुलिस के विशेष शाखा के मुखिया का पदभार संभालने वाले हीरेन चंद्र नाथ गुवाहाटी में सबसे ज्यादा समय तक पुलिस अधीक्षक के पद पर रहे और गुवाहाटी पुलिस कमिश्नर के रूप में काम कर चुके हैं। अपने अनुभव का फायदा हीरेन चंद्र नाथ ने उस समय उठाया जब उन्हें असम पुलिस की विशेष शाखा का दायित्व मिला। हीरेन चंद्र नाथ ने दृष्टि राजखोवा उर्फ मनोज राभा को मुख्यधारा में लाने या गिरफ्तारी करने के लिए विशेष रणनीति और माइंड गेम खेलना शुरू किया। हीरेन नाथ के प्रयासों के बाद दृष्टि राजखोवा पुलिस के जाल में फंस गया जिसके बाद आखिरकार दृष्टि राजखोवा ने आत्मसमर्पण किया। इसमें भारतीय सेना, असम, मेघालय पुलिस, इंटेलिजेंस ब्यूरो, यूनिफाइड कमांड और असम पुलिस के डीजीपी भास्कर ज्योति महंत की भूमिका भी अहम रही।

दृष्टि राजखोवा ने भारत-बांग्लादेश सीमा के पास जमा कर रखा हथियारों का जखीरा

दृष्टि राजखोवा का समर्पण होने के बाद मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल के साथ केंद्रीय गृह मंत्रालय ने आईपीएस अधिकारी हीरेन चंद्र नाथ की प्रशंसा की। जानकारों की माने तो दृष्टि राजखोवा ने भारत-बांग्लादेश सीमा के पास भारी मात्रा में हथियार छिपाकर रखे हैं। अगर यह हथियार बरामद कर लिए गए तो उल्फा (स्व) की कमर पूरी तरह से टूट जाएगी। उल्फा (स्व) के खूंखार उग्रवादी दृष्टि राजखोवा के समर्पण के बाद परेश बरुवा के सामने उल्फा (स्व) को फिर से शक्तिशाली बनाना एक बड़ी चुनौती है, इसलिए उम्मीद है कि देर-सबेर परेश बरुवा भी मुख्यधारा में लौटने के लिए मजबूर होगा।

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