डॉक्टर रजनीकांत दत्ता,
पूर्व विधायक, शहर दक्षिणी
वाराणसी ( यूपी )

मेरे हमवतन, हमप्याला, हमनिवाला भारतवासियों, आज हम जिस दौर से गुज़र रहे हैं, वह महाभारत के धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र का लगभग वास्तविक प्रतिविम्ब है। एक तरफ राष्ट्रवादी ताकतें हैं, तो दूसरी तरफ देशद्रोही URBAN NAXALITIES, लोकतांत्रिक प्रणाली के साथ बलात्कार करने वाले नेता और दुश्मन देशों से हवाला के जरिये मिले धन से पोषित वे NGO जो देशभक्ति का लबादा ओढे़ दुश्मन देशों के एजेंट या SLEEPER CELLS की तरह काम करते हैं। इसके अलावा कुछ तथाकथित राजनीतिक पार्टियां भी हैं, जो इन देशद्रोही तत्वों को संरक्षण एवं पोषण प्रदान कर जाति-धर्म की राजनीति कर सत्ता हथियाने की जुगत में लगी रहती हैं।

कहते हैं, COMING EVENTS CAST THIER SHADOWS BEFORE. यानी कि, पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं।
1000 वर्षों की ग़ुलामी, धर्म के नाम पर देश का विभाजन,1962 में चीन के हाथों अपमानजनक पराजय, संविधान के साथ धारा 370 और 35(A) के रूप में राष्ट्रविरोधी छेड़- छाड़ और देश के अभिन्न अंग कश्मीर में 2 निशान, 2 प्रधान (प्रधानमंत्री और सदर-ए-रियासत) और 2 विधान, इसके स्पष्ट प्रमाण हैं। यही नहीं पूर्व प्रधानमंत्री VP SINGH के कार्यकाल के दौरान तत्कालीन गृहमंत्री मुफ़्ती मुहम्मद सईद और केंद्रीय गृह सचिव के इशारे पर कश्मीर में गज़वा-ए-हिंद का नारा लगाकर बाकायदा ऐलान कराया गया कि, कश्मीरी पंडितों निज़ाम-ए-मुस्तफा के तहत या तो इस्लाम स्वीकार कर लो या अपनी बहू-बेटियों को हमारे हवाले कर कश्मीर छोड़कर चले जाओ, नहीं तो कल सुबह तुम्हारी गर्दन ही धड़ से अलग नहीं कर दी जाएगी, बल्कि तुम्हारी स्त्रियों का तुम्हारे सामने ही बलात्कार होगा और तुम्हारे अबोध बच्चों को नेजे में भोंककर परचम की तरह लहराया जाएगा—-

हमने अपने ही देश में कश्मीरियों को शरणार्थी बनते देखा, जो आज भी हैं।
सीमा पार से इन्हीं देशद्रोहियों के संरक्षण में पलने वाला आतंकवाद, शाहीनबाग़ और न जाने क्या-क्या।
फिर भी हम सबका साथ और सबके विकास की बात करते हैं और इन देशद्रोहियों को सांप की तरह दूध पिलाकर भाईचारा, गंगा-जमुनी तहजीब, आरक्षण और माइनॉरिटी कमीशन की बात करते हैं।

हम अशफ़ाक़ उल्ला और उन भगत सिंह को भूल जाते हैं, जिन्होंने लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लेने के लिए उनपर आक्रमण का आदेश देने वाले सांडर्स का सीना गोलियों से छलनी कर दिया था। बहरी व्यवस्था और बहरे देशवासियों को जगाने के लिए असेंबली में बम फोड़ा और इंकलाब जिंदाबाद का नारा दिया। यही नहीं, भारत के महान सपूत उधम सिंह ने इंग्लैंड में घुस कर जालियांवाला बाग नरसंहार के दोषी जनरल डायर को मौत के घाट उतार दिया। क्या उनका खून-खून था, हमारा खून पानी हो गया? क्या हम छद्म धर्मनिरपेक्षता और एकतरफा सहिष्णुता के नाम पर फिर देश को ग़ुलाम बनने देंगे।

कहते हैं कि, छेड़ने पर कुत्ता भौंकता और काटता है। जानवर भी हुरपेटता है। तो क्या हम उनसे भी बदतर मुर्दा कौमों की जमात हैं? राष्ट्र और राष्ट्रीयता के प्रति हमारा कोई कर्तव्य नहीं है? ज़रूर है! जिस जंग में इंसानियत दांव पर लगी हो, उसमें तटस्थता के लिए कोई गुंजाइश भी नहीं बचती।

लेकिन अब यह चंद्रशेखर आज़ाद और सरदार भगत सिंह के जमाने का गुलाम भारत नहीं है। आज हम एक स्वतंत्र और लोकतांत्रिक राष्ट्र हैं। हमें देशभक्त हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई आदि सभी फिरके के लोगों को साथ लेकर एक ऐसा संगठन बनाना होगा, जिसके सर पे कफन बांधे हुए सदस्य इस बात की कसम खाएं कि, बस अब और नहीं। जो भी देश के साथ गद्दारी करेगा और अगर उसके खिलाफ पुख्ता सबूत हैं, तो वे उसे कानून के हवाले कर अदालतों से सजा दिलवाने के लिए जान लड़ा देंगे, जमीन-आसमान एक कर देंगे। भले ही ऐसा करने में उन्हें चन्द्रशेखर आजाद, सरदार भगत सिंह, उधम सिंह सरीखे बलिदानी वीर सपूतों की तरह क्यों न अपनी जान ही कुर्बान करनी पड़े। यही नहीं वे ऐसे तत्वों के खिलाफ कड़ी, त्वरित और कारगर कार्रवाई करने के लिए सरकार पर भी दबाव बनायेंगे, ताकि वह इस दिशा में उपयुक्त कानून बनाये और फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन करे। ऐसे राष्ट्रविरोधी तत्वों के साथ गैंगरेप के दोषियों जैसा ही व्यवहार किया जाना न्यायसंगत है।

और अंत में मैं आपसे यही कहना चाहूँगा कि, ज़िंदा कौमे इंतज़ार नहीं करतीं।

देशहित में सबकुछ कुर्बान करने वाले,
राष्ट्रभक्तों के लिए नज़ीर बन जाते हैं।

वंदे मातरम।
इंकलाब जिंदाबाद।
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳

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