अंकारा। आर्मेनिया और अजरबैजान की जंग तुर्की के चलते आने वाले दिनों में और भी ज्यादा भयावह हो सकती है। इस जंग के एक बार फिर से विश्व युद्ध बनने का खतरा पैदा हो गया है। अब तक इस जंग में अप्रत्यक्ष रूप से शामिल तुर्की ने ऐलान कर दिया है कि वो अजरबैजान के समर्थन में अपनी सेना भेज सकता है।
तुर्की ने कहा है कि यदि अजरबैजान की ओर से अनुरोध आया, तो वह अपनी सेना को भेजने के लिए तैयार है। तुर्की के प्रत्यक्ष रूप से इस युद्ध में शामिल होने का मतलब होगा बड़ी तबाही। क्योंकि इस स्थिति में रूस के भी जंग में कूदने की संभावना बढ़ जाएगी। रूस आर्मेनिया के पक्ष में है।
तुर्की के उपराष्ट्रपति फौत ओकताय ने कहा है कि यदि अजरबैजान की ओर से सेना भेजने का अनुरोध आता है, तो हम सैन्य सहायता देने से पीछे नहीं हटेंगे
हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि अभी तक इस तरह का कोई अनुरोध नहीं आया है। तुर्की ने यह आरोप भी लगाया है कि अर्मेनिया बाकू की जमीन पर कब्जा कर रहा है।
CNN से बातचीत में तुर्की के उपराष्ट्रपति ने अमेरिका, फ्रांस और रूस के नेतृत्व वाले गुट की आलोचना की और कहा कि यह समूह नहीं चाहता है कि नागोर्नो-काराबाख का विवाद खत्म हो। उन्होंने आगे कहा कि यह समूह अर्मेनिया की राजनीतिक और सैन्य रूप से मदद कर रहा है। ऐसी स्थिति में यदि अजरबैजान अनुरोध करता है, तो हम अपनी सेना भेजने के लिए तैयार हैं।
रूस और अमेरिका सहित कई देश अर्मेनिया और अजरबैजान के बीच शांति स्थापित करने की कोशिशों में लगे हैं। रूस की पहल पर दोनों देशों में संघर्ष विराम पर सहमति भी बनी थी, लेकिन यह सहमति ज्यादा देर तक कायम नहीं रह सकी।
पूर्व सोवियत संघ का हिस्सा रह चुके अर्मेनिया और अजरबैजान के बीच युद्ध की बड़ी वजह है नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र। इस क्षेत्र के पहाड़ी इलाके को अजरबैजान अपना बताता है, जबकि यहां अर्मेनिया का कब्जा है। 1994 में खत्म हुई लड़ाई के बाद से इस इलाके पर अर्मेनिया का कब्जा है। 2016 में भी दोनों देशों के बीच इसी इलाके को लेकर खूनी युद्ध हुआ था, जिसमें 200 लोग मारे गए थे। अब एक बार फिर से दोनों देश आमने-सामने हैं।