रतन सिंह
विराट कोहली इन दिनों कीर्तिमानों की अपनी माला में नित नए मोती पिरोते रहें हैं। लेकिन मंगलवार को न्यूज़ीलैंड दौरे में उनकी माला में एक कांच का मोती भी आ जुड़ा, जब 0-3 से टीम इंडिया का सफाया हो गया।
यह अनचाहा रेकॉर्ड गले पड़ा तो पता चला कि अपने कई पूर्ववर्तियों को उल्टा फांद गये हैं। कैसे ? वह ऐसे कि 31साल बाद भारत को किसी सीरीज में सफाए का सामना करना पड़ा। 1989 में विंडीज़ के हाथों 0-5 की पिटाई हुई थी। उस वक़्त के बाद कई कप्तान आये गए, लेकिन भारत की एकदिनी में ऐसी दुर्गति कभी नहीं हुई। लेकिन क्रिकेट में खास यह चलन है कि कभी न होने वाली बात इसमे होती है। यह तब जब भारत से मजबूत टीम कोई नहीं। और फिर कीवी गेंदबाज़ी में धार नही। असल में भारत टारगेट का पीछा कर जीतने में सहज महसूस करने जा आदी हो गया है। यही आदत उसकी कमजोरी बन गई है। यह देखा गया है कि टॉस हारते ही टीम की बॉडी लैंग्वेज कमजोर सी हो जाती है, यह कंफर्ट जोन से बाहर खींच लिए जाने जैसा होता है। नतीजा यह होता है कि भारत अच्छा स्कोर खड़ा कर भी हार जाता है। हमारे कप्तान भी टॉस जीतकर तुरंत गेंदबाज़ी का रेडीमेड फैसला सुना देते हैं। एक बड़ी टीम की ये पहचान नहीं हो सकती । गेंदबाज़ी बेहतरीन है तो उसका दृढ़ प्रदर्शन भी हो। ये भारतीयों के लिए श्रेष्ठ दौर है क्योंकि दूसरी टीमें संक्रमण काल से गुजर रहीं हैं। विश्व क्रिकेट में ऐसा मौका बार-बार नही मिलता जब सामने वाली टीमें मुक़ाबले के पहले आधा बल खो देतीं हों । भारत को ये स्थापित करना होगा कि किसी भी दशा में जीत का दावेदार वही है और रहेगा।