पढिये भी और देखिए भी : उन्हें इन्तजार है मुक्तिदाताओं के आने का

बाल्टिस्तान -गिलगित

धारा 370 और 35A संसद ने बहुमत से समाप्त करते हुए उसे इतिहास के नाबदान में फेंक दिया। इससे पाकिस्तान बौखलाहट में आकर पागलपन का शिकार हो चुका है। प्रधानमंत्री इमरान खान और उसका आका सेना प्रमुख बाजवा भारत पर परमाणु हमले तक की धमकी देने से भी गुरेज नहीं कर रहे हैं। लेकिन हमारे देश में क्या हो रहा है ? जनता जनार्दन खुश तो है मगर इसका इजहार-ए-आम क्यों नहीं कर रही है ? यह नाचीज अपने पत्रकार मित्र पुष्पेन्द्र कुलश्रेष्ठ की, जो सिर पर कफन बाँध कर राष्ट्रवाद की अलख जगाने शहर-शहर छान रहे हैं,  इस अपील से पूर्णतः सहमत है कि पांच अगस्त को देश को मिली दूसरी आजादी का जश्न मनाने लोगों को सड़कों पर निकलते हुए टेलीविजन के सामने आकर सरकार का यह नेक काम करने के लिए आभार प्रदर्शन करना चाहिए।  ताकि भारतीयों की प्रतिक्रिया से दुनिया भी परिचित हो सके।

गिलगित

एक पुराना पाप तो चलिए 70 बरस बाद खतम हो गया। लेकिन संविधान में अभी और भी कई ऐसी धारा हैं जिनको समाप्त या संशोधित किया जाना चाहिए। उनमें एक है धारा 333 जिसके बारे में बहुतेरो को जानकारी नहीं है कि यह वास्तव में है क्या और किसके लिए है ? दरअसल लोकसभा में 545 में 543 सीट के लिए चुनाव होते हैं, बची दो सीट एन्गलो इण्डियन्स के लिए छोड़ दी जाती है ? हम क्रश्चियन्स या इसाई समुदाय को तो जानते हैं मगर एन्गलो इण्डियन्स के बारे में कम ही जानते हैं। कहा जाता है न कि अंग्रेज चले गये, पर औलाद छोड़ गये। जिन अंग्रेजो ने भारतीय महिलाओं से शादी की थी,  ये उन्हीं के वंशज ही हैं। मुट्ठी भर ही होंगे मगर उनके लिए ये दो सीट सुरक्षित रखी जाती है।

70 बरस से हर रात 10 रोटी उनके लिए अलग से बनाती आ रही है गिलगित -बाल्टिस्तान की महिलाए

क्या हम इसमें से एक सीट उस राष्ट्रवादी शिया मुस्लिम समुदाय के लिए नहीं रख सकते जो लेह-लद्दाख के बीच एक नगर कारगिल मे रहते हैं, जहाँ शिया जमात की आबादी 98  प्रतिशत है और जिनकी जड़ें पाक अधिकृत कश्मीर के गिलगित-बाल्टिस्तान के साथ जुड़ी हुई हैं।यहाँ भी इनकी जनसंख्या 97 प्रतिशत है और हालात ये हैं कि बंटवारे के बाद परिवार बुछुड़ गये। एक भाई कारगिल मे तो दूसरा उस पार रह गया। बाप- बेटे तक जुदा हो गये थे।

गिलगित का बाजार

गिलगित-बाल्टिस्तान को अपनी आजादी और भारत के साथ जुड़ने का शिद्दत से इन्तजार है। हमें नहीं बताया गया कभी कि पाक के कब्जे वाले इस इलाके के परिवारों की महिलाएं पिछले सत्तर साल से हर रात अलग से दस चपाती बनाती हैं । जानते हैं किसके लिए ? आपको यह सुन कर आश्चर्यजनित प्रसन्नता होगी कि ये रोटी वे भारतीय सेना के लिए बनाती हैं। उन्हें यकीन है कि एक दिन मुक्तिदाता फौज आएगी यहाँ और उनको पाकिस्तान से आजादी दिलाएगी। हम उन्हें ये चपातियां खिलाएंगे। बाजारों मे वहां जगह जगह हिन्दी में लिखा है कि यह साफ पानी की टंकी है। शहर का रास्ता बताने के लिए तीर बने हुए हैं।

गिलगित का गरी बाजार

हालाँकि वो दिन बहुत दूर नहीं है। 370 के बाद अब पीओके की ही बारी है। मोदी है तो कुछ भी मुमकिन है। लेकिन उस क्षेत्र को भारतीय सेना में मिलाने के पहले तक हम उनके साथ एकजुटता दिखाने के मकसद से एक सीट तो लोकसभा मे उनके लिए सुरक्षित रख ही सकते हैं । प्रधानमंत्री मोदी जी, गृहमंत्री अमित शाह जी सुन रहे हैं न ?

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