इस प्रकार बारम्बार पछता कर कौशिक स्वाध्याय से विरत हो उठा। वह उसी अवस्था के जड़वत पश्चाताप के भाव से घिरा हुआ कई दिवस बैठा ही रह गया। कुछ दिनों बाद चैतन्य होने पर कौशिक ने तीव्र भूख की अनुभूति की। वह उठा, स्वयं को स्वच्छ कर स्नान आदि से निवृत्त हो तेज भूख के कारण तत्काल ही समीप के गाँव में भिक्षा हेतु चल पड़ा। वह अनमने मन से एक घर के द्वार पर पहुंचा और भूख से क्षीण स्वर में बोला, “भिक्षा देना माई।” भीतर से एक स्त्री ने कहा, “ठहरो बाबा! अभी लाती हूँ।”वह स्त्री अपने घर के जूठे बर्तन साफ़ कर रही थी। जैसे ही वह इस कार्य से निवृत्त हुयी, उस के पति घर आ गए। वे अपने खेतों में श्रम कर के लौटे थे अतः वह भी बहुत भूखे थे। पति को आया देख स्त्री को बहार खड़े कौशिक कुमार की स्मृति न रही। वह पति को भोजन देने में जुट गयी। पति को भोजन इत्यादि दे कर खली होते ही उस स्त्री को द्वार पर खड़े कौशिक की याद आयी। वह तत्काल भिक्षा ले कर बड़े संकोच से बहार आयी। कौशिक कई दिन का भूखा था ही, इतनी देर तक प्रतीक्षा करने से अत्यंत क्षुब्ध भी हो गया था। स्त्री को देखते ही अपने स्वर को यथासंभव संयत करते हुए बोला, “देवि! जब तुम्हें देर ही करनी थी तो ‘ठहरो बाबा!’ कह कर मुझे रोका क्यों? मुझे जाने क्यों नहीं दिया?”कौशिक को अत्यंत क्षुब्ध देख उस स्त्री ने शांति से कहा, “सन्यासी बाबा! क्षमा करो; मेरे सब से महान देवता मेरे पति हैं। वे भूखे-प्यासे, थके-माँदे अभी खेत से आये थे; उन्हें छोड़ कर कैसे आती? उनकी ही सेवा टहल में देर हो गयी।”कौशिक ने किंचित झुंझलाहट से कहा, “क्या कहा? तपस्वी से भी बड़े तुम्हारे गृहस्थ पति हैं? तपस्वी को भूखा प्रतीक्षारत कर यदि तुमने क्रुद्ध कर दिया तो क्या तुम्हारे गृहस्थ पति तुम्हारी रक्षा कर सकेंगे?”स्त्री ने उत्तर दिया, “तपस्वी बाबा! मैं किसी का अपमान नहीं करती। परन्तु इस गृह के पालक मेरे पति हैं। अतः उनकी सेवा ही मेरा कर्तव्य है। अतिथि और संन्यासी का यथोचित सत्कार मेरा धर्म है। धर्म और कर्तव्य में से कर्तव्य की ही महत्ता के संस्कार मुझे प्राप्त हुए हैं। अपने संस्कारों के अनुरूप ही मैं अपने कर्तव्य एवं धर्म का विधि पूर्वक पालन करती हूँ। अपने संस्कारों पर दृढ होने से ही मैं रक्षित हूँ। अन्यथा आप के इस अपार क्षोभ से मैं भी उस बगुली की भांति भस्म न हो जाती?”कौशिक यह सुन कर आश्चर्य चकित हो गया। उसे तत्क्षण ही यह अनुभूति हुयी कि यह स्त्री अवश्य…