गेम प्लान में फंसी शिवसेना-बीजेपी और कांग्रेस
नई दिल्ली: एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने महाराष्ट्र में हारी हुई बाज़ी जीत ली है। शिवसेना, कांग्रेस और बीजेपी सभी शरद पवार के गेम प्लान में फंस चुके हैं। भले ही शरद पवार दिल्ली में कभी प्रधानमंत्री नहीं बन पाए लेकिन उन्होंने मुंबई में अपना मुख्यमंत्री बनवा दिया है। महाराष्ट्र की राजनीति में पिछले 10 घंटों में जो बदलाव हुए उससे बिलकुल साफ हो गया है कि देश का चाणक्य चाहे जो भी हो लेकिन महाराष्ट्र के चाणक्य शरद राव पवार ही हैं।
शरद पवार के चुनाव निशान घड़ी की तरह उनका दिमाग भी 24 घंटे चलता रहता है। शरद पवार बोलते कम हैं लेकिन ये उनकी आक्रामक राजनीति और 50 सालों का अनुभव है जिसने देवेंद्र फणनवीस को इस्तीफा देने पर मजबूर किया और अजित पवार को भी ये समझा दिया कि असली पावर आज भी चाचा के पास ही है। शरद पवार के पास राजनीति का ऐसा गोंद है जिससे वो बड़े से बड़े दुश्मन और विरोधी को भी जोड़ लेते हैं।
शिवसेना को कर दिया हिंदुत्व की राजनीति छोड़ने पर मजबूर
महाराष्ट्र की वर्तमान राजनीति में उद्धव ठाकरे जिस तरह शरद पवार के साथ जुड़ गए हैं, वो बाल ठाकरे और शरद पवार की दोस्ती की यादों को ताज़ा करता देता है। शरद पवार ने अपनी राजनीतिक कुशलता से पहले कांग्रेस पार्टी को महाराष्ट्र में चौथे नंबर की पार्टी बनाया और इसके बाद उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री का पद ऑफर करके शिवसेना को हिंदुत्व की राजनीति छोड़ने पर मजबूर कर दिया।
शरद पवार कभी कोई चुनाव नहीं हारे
अब शरद पवार शिवसेना को मराठा और किसानों के मुद्दे पर ले आए हैं। ये वो मुद्दे हैं जहां एनसीपी शिवसेना से बहुत आगे है। इसके अलावा शरद पवार ने बीजेपी से उसका सबसे पुराना और करीबी सहयोगी भी छीन लिया। शरद पवार अपने राजनीतिक जीवन में कभी कोई चुनाव नहीं हारे। उनकी इजाज़त के बिना एनसीपी में पत्ता भी नहीं हिलता है इसीलिए जब उनके भतीजे अजित पवार ने बगावत करके बीजेपी का दामन थाम लिया तब कुछ राजनीतिक दलों और राजनीतिक विश्लेषकों ने यहां तक कहा कि ये शरद पवार का ही खेल है।
एनसीपी के लिए कोई शाश्वत शत्रु नहीं
ये शरद पवार की सूझ-बूझ हीं है कि उन्होंने अजित पवार की बगावत के बाद भी उन्हें पार्टी से नहीं निकाला बल्कि उन पर लगातार पारिवारिक दबाव बनाया और आखिरकार अजित पवार को फड़नवीस सरकार से इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया। धुर विरोधी विचारधारा वाले इस नए गठबंधन के केंद्र में शरद पवार हैं क्योंकि उनकी पार्टी एनसीपी विचारधारा की जंजीरों में नहीं बंधी है। एनसीपी के लिए कोई शाश्वत शत्रु नहीं है।
शरद पवार जितने नरेंद्र मोदी के करीब उतने ही सोनिया गांधी के
शरद पवार जितने नरेंद्र मोदी के करीब नज़र आते हैं उतने ही सोनिया गांधी के करीब भी नज़र आते हैं। पूरे पश्चिमी महाराष्ट्र में शरद पवार का प्रभाव है। खास तौर पर महाराष्ट्र के बारामती, सांगली, सतारा, कोल्हापुर, अहमदनगर और बीड शरद पवार का गढ़ है। महाराष्ट्र की राजनीति में शरद पवार की शुरुआत एक किसान नेता के तौर पर हुई थी। शरद पवार अपने पिता गोविंद राव पवार और अपनी मां शारदा बाई पवार के 11 बच्चों में से एक थे।
पीएम मोदी भी करते हैं शरद पवार के काम की तारीफ
बारामती जिला आज देश के सबसे स्मार्ट जिलों में से एक है लेकिन इस हरे भरे बारामती में कभी एक तिनका उगाना भी बहुत मुश्किल था। 1968 में जब महाराष्ट्र के बारामती जिले में भयंकर सूखा पड़ा तो शरद पवार की उम्र सिर्फ 28 साल थी। शरद पवार ने किसानों के साथ मिलकर बारामती में तालाब खुदवाए, नहरें बनवाईं और खेती लायक जमीन तैयार करने के लिए काफी काम किया। शरद पवार के काम की तारीफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी करते हैं।
सिर्फ 37 साल की उम्र में बने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री
भारत की राजनीति में शरद पवार की पावर उस वक्त नजर आई जब वो जोड़ तोड़ के साथ 18 जुलाई 1978 को सिर्फ 37 साल की उम्र में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बन गए। उस वक्त शरद पवार इंदिरा गांधी जैसी ताकतवर नेता के खिलाफ जाकर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की गद्दी पर बैठ गए थे। 1977 में आपातकाल तो हट गया लेकिन इंदिरा गांधी के खिलाफ नाराजगी पूरे देश में थी।
महाराष्ट्र में भी कांग्रेस पार्टी के अंदर दो गुट बन गए। पहला गुट इंदिरा के विरोधियों का था। इंदिरा गांधी के विरोधी शंकरराव चव्हाण और ब्रह्मानंद रेड्डी ने ‘रेड्डी कांग्रेस’ बनाई। दूसरा गुट नाशिकराव तिरपुडे का था जो कांग्रेस (आई) के साथ थे। दोनों गुटों ने अलग अलग चुनाव लड़ा। किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला आखिरकार दोनों गुटों ने मिलकर सरकार बना ली।
इंदिरा विरोधी गुट के वसंत दादा पाटिल मार्च 1978 में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बन गए लेकिन 1978 के जुलाई महीने में जब महाराष्ट्र विधानसभा का मॉनसून सत्र चल रहा था, शरद पवार ने 40 विधायकों के साथ अलग होकर वंसतदादा की सरकार से बाहर निकलने का फैसला ने लिया। पवार के इस फैसले से तत्कालीन सरकार अल्पमत में आ गई। मुख्यमंत्री वसंतदादा पाटिल ने इस्तीफा दे दिया।
इंदिरा सरकार ने की शरद पवार की सरकार को बर्खास्त
इस तरह जोड़ तोड़ के बाद शरद पवार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बन गए। 1980 में जब इंदिरा सरकार की वापसी हुई तो शरद पवार की सरकार केंद्र के द्वारा बर्खास्त कर दी गई लेकिन तब तक शरद पवार अपना लोहा भारत की राजनीति में मनवा चुके थे। 1991 में जब कांग्रेस पार्टी ने लोकसभा चुनाव जीता तो शरद पवार प्रधानमंत्री की कुर्सी के सबसे करीब थे लेकिन प्रधानमंत्री का पद नरसिम्हा राव को मिला और शरद पवार को रक्षा मंत्री के पद से संतोष करना पड़ा।
शरद पवार ने अपनी किताब On My Terms: From the Grassroots to the Corridors of Power में लिखा है कि गांधी परिवार नहीं चाहता था कि कोई प्रभावशाली नेता प्रधानमंत्री बने और गांधी परिवार का असर कम हो जाए इसीलिए मुझे प्रधानमंत्री के पद से दूर कर दिया गया। 14 मार्च 1998 को जब सोनिया गांधी कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष बनीं और लोकसभा चुनाव से पहले उन्हें प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर पेश किया गया तब शरद पवार ने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया।
लोग शरद पवार की दुश्मनी से अच्छी शरद पवार की दोस्ती समझते हैं
10 जून 1999 में शरद पवार ने नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी की स्थापना की। इस राजनीतिक दल को अब 20 साल हो चुके हैं और इस बार महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में एनसीपी की सीटें कांग्रेस पार्टी से भी ज्यादा हैं। राजनीति में ये बहुत आश्चर्य की बात है कि विदेशी मूल के मुद्दे पर कांग्रेस पार्टी से अलग होने के बावजूद सोनिया गांधी शरद पवार की तारीफों के पुल बांधती हैं। शरद पवार भारत की राजनीति के वो मराठा सरदार हैं जिनको हर कोई अपने साथ जोड़ना चाहता है। लोग शरद पवार की दुश्मनी से अच्छी शरद पवार की दोस्ती को समझते हैं।