ज्ञान का उजियारा फैलाने का दायित्व संभालते ही शिक्षक का जीवन शिक्षा को समर्पित हो जाता है। समर्पण का यही भाव उन्हें पूज्य बनाता है। इन्हीं में कुछ ऐसे भी हैं जिनके लिए उम्र भी बाधा नहीं बनीं। वह पद से सेवानिवृत्त जरूर हुए, लेकिन कर्म को ही प्रधान रखा। इनका मानना है कि शिक्षा सतत सीखने की प्रक्रिया है और यही जीवन है।

2011 में राष्ट्रपति सम्मान से सम्मानित गुरुबचन कौर दुर्गाचरण बालिका इंटर कॉलेज के प्रधानाचार्य पद से सेवानिवृत्ति के आठ साल बाद भी शिक्षा का उजियारा छात्रों के जीवन में भर रही हैं। उनके समर्पण भाव के कारण वर्ष 2013 में लखनऊ में मलाला अवार्ड और काशी विद्यापीठ में राज्यपाल ने उन्हें पंजाबी भाषा के लिए उल्लेखनीय कार्य पर सम्मानित कर चुके हैं।

यूपी की पहली महिला रेफरी रहीं सिगरा निवासी गुरवचन कौर को बीमारी की वजह से सेवानिवृत्ति से दो साल पहले ही वीआरएस लेना पड़ा। जब वह ठीक हुईं तो फिर छात्राओं के बीच पहुंच गईं और पढ़ाना शुरू कर दिया।

साभार : अमर उजाला

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