अयोध्या फैसले को लेकर सुरक्षा व्यवस्था चाक चौबंद

देशभर में कार्तिक पूर्णिमा का त्योहार बड़े हर्षोल्लास के साथ मानाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यह पूरा महीना भगवान विष्णु को प्रिय होता है। इस दिन गंगा स्नान करने का बड़ा महत्व है। ऐसा माना जाता है कि गंगा स्नान करने से पापों से मुक्ति मिलती है। इतना ही नहीं, स्नान के अलावा दीप-दान करना भी शुभ माना जाता है। इसे दीपदान पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।

कार्तिक पूर्णिमा के पावन अवसर पर वाराणसी में गंगा स्नान के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी । स्नान के बाद बाबा विश्वनाथ का दर्शन और जलाभिषेक के लिए भी लंबी कतार लगी। ऐसी मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से पाप कर्मों से मुक्ति मिलती है और काया निरोगी होती है।

यहां के प्रमुख घाट दशाश्वमेध, अस्सी, राजघाट, पंचगंगा आदि पर श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए विशेष इंतजाम भी किये गए हैं। वालंटियरों के अलावा एनडीआरएफ की टीमें भी नजर रख रही हैं। अयोध्या पर आए फैसले के कारण सुरक्षा व्यवस्था भी चाक चौबंद रही।

बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में कार्तिक पूर्णिमा के दिन सूर्य की पहली किरण के साथ ही सबने गंगा में डुबकी लगानी शुरू कर दी। ऐसी मान्यता है कि आज के दिन गंगा स्नान से विशेष पुण्य मिलता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा विशेष फल देने वाली होती है। आज के दिन जो भी भक्त सच्चे मन और विश्वास के साथ गंगा में डुबकी लगाते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं जरूर पूरी होती हैं। काशी में इस त्योहार का खासा महत्व है। स्कंद पुराण की मानें तो आज के दिन स्वर्ग से देवतागण धरती पर आते हैं, इसीलिए भोले नाथ की नगरी में गंगा में स्नान और पूजन करने से शिव के साथ-साथ भगवान विष्णु भी प्रसन्न होते हैं और भक्तों को मोक्ष की मिलता है।

कार्तिक पूर्णिमा का महत्व

कार्तिक पूर्णिमा का महत्व सिर्फ वैष्णव भक्तों के लिए ही नहीं शैव भक्तों और सिख धर्म के लिए भी बहुत ज्यादा है। विष्णु के भक्तों के लिए यह दिन इसलिए खास है क्योंकि भगवान विष्णु का पहला अवतार इसी दिन हुआ था। प्रथम अवतार में भगवान विष्णु मत्स्य यानी मछली के रूप में थे। भगवान को यह अवतार वेदों की रक्षा,प्रलय के अंत तक सप्तऋषियों,अनाजों एवं राजा सत्यव्रत की रक्षा के लिए लेना पड़ा था। इससे सृष्टि का निर्माण कार्य फिर से आसान हुआ।

शिव भक्तों के अनुसार इसी दिन भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक महाभयानक असुर का संहार कर दिया जिससे वह त्रिपुरारी के रूप में पूजित हुए। इससे देवगण बहुत प्रसन्न हुए और भगवान विष्णु ने शिव जी को त्रिपुरारी नाम दिया जो शिव के अनेक नामों में से एक है। इसलिए इसे ‘त्रिपुरी पूर्णिमा’ भी कहते हैं।

गुरु नानक देव का भी आज ही 550 वां प्रकाशवर्ष है। आज गुरुद्वारों मे विशेष सजावट की गयी। गुरुद्वारों मे अरदास के साथ ही श्रद्धालुओं ने लंगर चखा।

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