अनिता चौधरी
राजनीतिक संपादक
दिल्ली: शनिवार को दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट में पुलिस और वकीलों के बीच हुई झड़प के मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने जांच की जिम्मेदारी दिल्ली हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज एसपी गर्ग को दी है। कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को एसपी गर्ग की अध्यक्षता में 6 हफ्ते के भीतर न्यायिक जांच पूरा कराने का आदेश दिया है। साथ ही दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर को निर्देश दिया है कि वह तीस हजारी कोर्ट में पुलिस और वकीलों के बीच कल हुई झड़प के मामले में स्पेशल कमिश्नर संजय सिंह और अडिशनल डीसीपी हरिंदर सिंह का तत्काल तबादला करे।
इस मामले में सुनवाई के दौरान तीस हजारी कोर्ट में हिंसा मामले में दिल्ली पुलिस ने हाई कोर्ट में बताया था कि दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच मामले की जांच कर रही है। आंतरिक जांच भी जारी है। वकील को लॉकअप में ले जाने के आरोप में एक सब इंस्पेक्टर को सस्पेंड कर दिया गया है। दिल्ली हाई कोर्ट ने इसके बाद दिल्ली पुलिस को निर्देश दिया कि घायल वकीलों का बयान जल्द से जल्द दर्ज किये जाए और उंसके बिना पर तुरंत प्रभाव से एफआईआर दर्ज किया जाए।
इसके अलावा कोर्ट ने घायल वकीलों को क्रमशः 50 हजार, 25 हजार और 10 हजार रुपये की अनुदान राशि देने का भी निर्देश दिया है। हालांकि की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने ये भी कहा है कि दोनों पक्षों को सुलह समझौते के साथ मामले को खत्म करना चाहिए और सुचारू रूप से कार्यप्रणाली को व्यवस्थित करने चाहिए। लेकिन इन सब के बीच तीस हजारी कोर्ट के अधिवक्ताओं ने ये कहा है कि अगर उचित करवाई नहीं हुई तो सोमवार को वो काम काज ठप्प रखेंगे।
इस पूरी घटना को लेकर कुछ वीडियो भी सामने आए हैं। जिसमें इस पूरी घटना में झड़प किस वजह से शुरू हुई और पुलिस को उस वकील को क्यों लॉक अप में डालना पड़ा ये बात तो सामने नहीं आ रही लेकिन सीसीटीवी फुटेज में देखा जा सकता है कि पहले बड़ी संख्या में तीस हजारी कोर्ट पुलिस लॉक अप में पहुँचते हैं और वहां वो उस वक़्त मौजूद पुलिस कर्मियों की बुरी पिटाई कर रहे हैं।
वीडियो फुटेज में मार पीट के दौरान कुछ पुलिसकर्मी घायल भी नज़र आ रहे हैं। एक और वीडियो में कुछ वकील जिसमें एक महिला वकील भी दिखाई दे रही मोटर साईकल को जला भी रही है। उसके बाद एक वीडियो ये भी आया है कि कुछ संख्या बल के साथ पुलिस कर्मी भी वकीलों को दौड़ा-दौड़ा कर पीट रहे हैं। झड़प तेज हो जाती है, पुलिसकर्मी भी कुछ वहां को नुकसान पहुँचाते नज़र आ रहे है।
इस झड़प में कुछ वकील भी घायल हो जाते हैं। वकीलों का आरोप है कि पुलिस ने गोलियां भी चलाई है जिसमें दो वकील बुरी तरह से घायल हैं और उनमें से एक कि हालात गंभीर है। हालांकि पुलिस ने दिल्ली हाई कोर्ट में गोली चलाई जाने की बात से इनकार किया है।
वकीलों और पुलिस के बीच हुई झड़प के मामले में चार प्राथिमिकी दर्ज की गयी है। चारों एफआईआर उत्तरी दिल्ली के के सब्जी मंडी थाना इलाके दर्ज हुआ है। एक एफआईआर जिला जज ने भी दर्ज कराई है। जिला जज द्वारा कराई गई प्राथमिकी में कहा गया है कि शनिवार को दोपहर बाद पुलिस और वकीलों में झगड़ा हुआ। दोनों ही पक्षों द्वारा माहौल बिगाड़े जाने के चलते अदालत की गरिमा को ठेस पहुंची। अदालत परिसर में घटना के समय मौजूद सैकड़ों विचाराधिन कैदियों और अन्य तमाम बेकसूरों को बेवजह परेशान होना पड़ा। पूरे घटनाक्रम की जांच की मांग जिला जज द्वारा दर्ज कराई गई प्राथमिकी के आधार पर की गई है।
दूसरी प्राथमिकी एक घायल वकील के बयान पर दर्ज की गई है और तीसरी प्राथमिकी तीसहजारी अदालत में कैदियों की सुरक्षा में तैनात और हमले में घायल दिल्ली पुलिस की तीसरी वाहनी के एक कर्मचारी द्वारा दर्ज कराई गई। चौथी व अंतिम प्राथमिकी तीसहजारी अदालत की ही एक महिला वकील द्वारा दर्ज कराई गई है। महिला वकील ने खुद पर हमला किए जाने और अज्ञात लोगों द्वारा छेड़छाड़ किए जाने का आरोप लगाया है। मामले की जांच कर रही दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच की एसआईटी ने चारों प्राथमिकी और झगड़े में घायल हुए लोगों की मेडिकल रिपोर्ट्स भी कब्जे में ले लिया है। गोली से घायल वकील के मामले में एसआईटी सीएफएसएल की जांच रिपोर्ट का इंतजार कर रही है।
तीस हजारी कोर्ट में हुए पूरे झड़प के प्रकरण को देखें तो अभी तक घटना की जड़ सामने नहीं आया है। आखिर ऐसी क्या बात हुई की पुलिस को किसी वकील को लॉकअप में डालना पड़ा। ये खाकी को अपनी वर्दी के गुरुर में कई गयी आततायी थी या वकील ने भी कुछ कानून तोड़ने की गलती की थी। अगर वर्दी के घमंड में की गई ये कार्यवाही थी तो समाज के लिए ये भयावह स्थिति है। मगर वकील अगर इस बात के घमंड में पुलिस की पिटाई किये कि कानून को अंततः अदालत की दर पे ही आना है और ऐसे में खाकी की ये जुर्रत नहीं कि काले कोर्ट पर आम आदमी की तरह कारवाही करें। तो स्थिति और भी भयावह है क्योंकि इस सच से हम इनकार नहीं कर सकते कि हर क़ानून को लागू होने के लिए या वो किसी व्यक्ति पर ठीक तरीके से लागू हुआ या नहीं इसकी सर्टिफिकेट के लिए उसे अदालत के दरवाजे पर ही माथा टेकना पड़ता है। और उस दरवाजे पर एक मुद्दई की सुनवाई कैसे हो सकती हैं जहां दूसरे पक्ष का मुद्दई और मुंसिफ एक ही परिवार का हो। पुलिस जॉच के दौरान केस को प्रभावित कर सकती है इस डर से पुलिस के दो अधिकारियों का तबादला तो कर दिया गया एक को ससपेंड भी कर दिया गया और माननीय कोर्ट ने जो किया उनका फैसला पूरे देश के लिए सर आंखों पर। मगर सवाल ये उठता है कि वीडियो में काले कोर्ट वाले वकील जिस तरह से कानून व्यवस्था को हाथ में लिए ऑन ड्यूटी वर्दी पहने पुलिस कर्मी पर अभद्र भाषा का इस्तेमाल करते हुए उनके साथ मार पीट कर रहे हैं उन पर अभी तक कोई कार्रवाई क्यों नही हुई। क्या इस देश के कानून के नियमों से काला कोर्ट अछूता है। नियमों के उल्लंघन पर क्या उनके ऊपर इस देश का कोई कानून लागू नहीं होता। खाकी वर्दी और काले कोर्ट के बीच की लड़ाई का ये कोई पहला मामला नहीं है। अगर याद करें तो किरण बेदी ने भी कानून व्यवस्था संभालने के लिए एक बार वकीलों पर डंडे चलाये थे और बाद में मॉफी मांगनी पड़ी थी। सवाल ये भी है कि कार्रवाई को लेकर अगर इसी तरह का दबाव रहा तो आखिर पुलिस लॉ एंड आर्डर को पूरी तरह से कैसे लागू कर पाएगी।