लखनऊ: बहुजन समाज पार्टी (BSP) अभी हाल में हुए विधानसभा उपचुनाव में जीरो पर आउट होने के बाद फूंक-फूंक कदम रखना चाह रही है। इसी को ध्यान में रखकर BSP के 11 सीटों पर संभावित स्नातक और शिक्षक विधान परिषद चुनाव लड़ने पर सस्पेंस बरकार है। पार्टी का एक धड़ा चुनाव लड़ने की सलाह दे रहा है तो दूसरा धड़ा इस चुनाव से तौबा कर सीधे वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में तैयारी के साथ आने की बात कर रहा है। इस पर निर्णय मायावती को लेना है, मगर वह अभी इस मामले पर चुप हैं।
मायावती ने फिलहाल पार्टी की मजबूती के लिए ‘विभीषणों’ की छंटनी का काम तेज कर दिया है। वहीं, पार्टी के मूल वोटबैंक में सेंध लगते देख उन्होंने अब मुस्लिम वोटबैंक पर निगाहें लगा रखी हैं। इस तरह बीएसपी संगठन में बदलाव की बयार तेज हो गई है। बसपा के समक्ष वर्तमान में जनाधार बचाने की बड़ी चुनौती है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष मुनकाद अली ने बताया कि स्नातक और शिक्षक विधान परिषद सदस्य चुनाव पर अभी कोई निर्णय नहीं हुआ है, हालांकि इसे लेकर कुछ लोग तैयारी कर रहे हैं।
लोकसभा चुनाव में बसपा ने सपा के साथ गठबंधन कर 10 सीटें जीतीं, लेकिन इसके कुछ ही माह बाद प्रदेश की 11 सीटों पर हुए उपचुनाव में बसपा को एक भी सीट नहीं मिली। अपने कब्जे वाली अंबेडकर नगर सीट हारने के बाद बसपा ने संगठन के ‘विभीषणों’ को चिन्हित कर उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाना शुरू किया है। इधर बीच महज एक पखवाड़े में बसपा प्रमुख मायावती ने पार्टी के करीब एक दर्जन कद्दावर नेताओं को बाहर का रास्ता दिखा दिया है। इसमें पूर्व मंत्री नारायण सिंह सुमन, पूर्व विधायक योगेश शर्मा, काली चरण सोनकर, सुनील कुमार चित्तौड़ सहित कई जिलाध्यक्ष शामिल हैं।
साथ ही, दलितों की राजनीति करने वाली नई नवेली भीम अर्मी सेना के करीबी नेताओं पर बसपा की खास नजर है। चर्चा यह भी है कि बसपा का पार्टी में सफाई अभियान अभी जारी रहेगा। वर्ष 2022 के आम चुनाव में पूरे दमखम के साथ उतरने की तैयारी कर रही बसपा हाल में होने वाले विधान परिषद चुनाव को लेकर मगर पसोपेश में है। वहीं भारतीय जनता पार्टी भी बीएसपी के कोर दलित वोटबैंक में लगातार सेंध लगाने का काम कर रही है। इसके लिए वह सरकारी योजनाओं का सहारा ले रही है। इसमें भाजपा काफी सफल होती भी दिख रही है।
ऐसे में बसपा अब अपने वोटबैंक की भरपाई के लिए मुस्लिमों पर डोरे डालने में जुट गई है। यही वजह है कि पार्टी को उपचुनाव में सफलता न मिलने पर भी प्रदेश अध्यक्ष मुनकाद अली को हटाया नहीं गया। मगर लोकसभा में पार्टी नेता की जिम्मेदारी निभा रहे श्याम सिंह यादव को हटाकर उन्हें संगठन में कार्य करने की सलाह दी गई है। वहीं सांसद दानिश अली को संसद में पार्टी का नेता मनोनीत किया गया है। इस तरह बसपा की निगाहें मुस्लिम मतों पर हैं।
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक रतनमणि लाल का कहना है, “बसपा अपनी ताकत का अंदाजा लगाने के लिए स्नातक चुनाव में उतरेगी। उन्होंने कहा कि इस समय बसपा में न पहले वाला कैडर बचा है और न ही विश्वास पात्र नेता हैं, इसीलिए एकराय बनाने में देर हो रही है और इस चुनाव को लेकर सस्पेंस बरकार है। पार्टी मजबूत होती तो अब तक फैसला हो जाता।”