काठमांडू । नेपाल के बड़े अखबार काठमांडू पोस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पुष्प कमल दहल खेमे के नेताओं का दावा है कि केपी शर्मा ओली ने रास्ते अलग करने का ऐलान कर दिया है। 11 दिनों बाद शनिवार को ओली के साथ बैठक के बाद दहल ने रविवार को अपने आवास खुमाल्टर में सेक्रिटेरीअट के 9 में से 5 सदस्यों के साथ बैठक की। पार्टी के प्रवक्ता और सेक्रिटेरीअट सदस्य काजी श्रेष्ठ ने कहा, ”दहल ने सदस्यों को बताया कि ओली ने उनसे कहा है कि वह सेक्रिटेरीअट की बैठक नहीं बुलाएंगे और पार्टी कमिटी के फैसलों में नहीं बंधेंगे। दहल के मुताबिक ओली ने कहा है कि यदि समस्याएं हैं तो बेहतर है कि रास्ते अलग कर लिए जाएं।” 

श्रेष्ठ के अलावा गृह मंत्री राम बहादुर थापा, पार्टी वॉइस चेयर बामदेव गौतम और वरिष्ठ नेता झाला नाथ खनल और माधव कुमार नेपाल खुमाल्टर बैठक में मौजूद थे। सचिवालय के दूसरे सदस्य ओली, ईश्वर पोखरियल और विष्णु पौडेल हैं। आज ही पौडेल ने ट्विटर पर पोस्ट लिखकर संकेत दिया कि पार्टी बड़े संकट से गुजर रही है। 

पौडेल ने लिखा, ”इस समय, नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के एकजुट और एकीकृत अस्तित्व के सामने संकट खड़ा हो गया है। मैं सभी नेताओं, काडर्स और कॉमरेड सदस्यों से अपील करूंगा कि आंतरिक कलह को सुलझाने के लिए योगदान दें।” इसके बाद ही दहल के हवाले से यह रिपोर्ट भी आ गई कि ओली ने मतभेदों को सुलझाने की बजाय रास्ते अलग कर लेने की बात कही है। 

पोस्ट की रिपोर्ट में कहा गया है, सत्ताधारी पार्टी के कई नेता कहते हैं कि आज पार्टी जिस मोड़ पर खड़ी है वह एक दिन होना ही था, क्योंकि दो पार्टियों के मिलन के बाद से ही समस्याएं पैदा होने लगी थीं। नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी का जन्म ओली के सीपीएन-यूएमएल और दहल की पार्टी सीपीएल (माओवादी) के विलय से हुआ था। चूंकि, दोनों पार्टियों की विचारधारा अलग थी, इसलिए शुरुआत से ही यह आशंका थी कि यह एका अधिक दिनों तक कायम नहीं रह सकेगा। 

विलय के करीब डेढ़ साल बाद पार्टी के मतभेद खुलकर सामने आ गए। 11 सितंबर को युद्धविराम पर पहुंचने से पहले दहल और उनके समर्थक नेपाल, खनल और गौतम ने ओली को लगभग इस्तीफे के लिए घेर लिया था। स्टैंडिंग कमिटी के 31 सदस्यों ने प्रधानमंत्री और पार्टी अध्यक्ष के पद से उनका इस्तीफा मांग लिया था। इसके बाद चीन के दखल से दोनों नेता बातचीत की मेज पर आ गए थे। चीन ने कम्युनिस्ट पार्टी के संकट को दूर करने के लिए अपनी राजदूत को यहां की घरेलू राजनीति में खुलेआम हस्तक्षेप करने को कहा था।

हालांकि, हाल ही में चीजें फिर तेजी से बदली और दोनों नेताओं के बीच एक बार फिर मतभेद उभर गए। ओली की ओर से कुछ राजदूतों और मंत्रियों की नियुक्ति के बाद विवाद बढ़ गया। दहल खेमा यह भी मानता है कि कर्नाली प्रांत के मुख्यमंत्री महेंद्र बहादुर शाही के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के पीछे भी ओली का हाथ है। शनिवार को दहल ने कहा कि अविश्वास प्रस्ताव, भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ प्रमुख से ओली की मुलाकात, कैबिनेट में बदलाव और कोविड-19 महामारी के मुद्दे पर सेक्रिटेरीअट की बैठक में चर्चा होगी। हालांकि, ओली ने इससे इनकार किया। 

सेक्रिटेरीअट के एक सदस्य ने कहा, ”ओली ने कहा कि वह गंभीर ऐक्शन लेंगे यदि दहल बैठक करते हैं और कोई फैसला लेते हैं। बेहतर होगा सर्वसम्मति से रास्ते अलग कर लिए जाएं।” स्टैंडिंग कमिटी के एक सदस्य के मुताबिक, दहल ने नेताओं से कहा है कि ओली को अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना चाहिए। चूंकि, अभी संसद का सत्र नहीं चल रहा है, विशेष सत्र बुलाने के लिए एक चौथाई सदस्यों को राष्ट्रपति से इसकी मांग करनी होगी। 

पार्टी के एक नेता ने काठमांडू पोस्ट को बताया, ”दहल ने अपने करीबी स्टैंडिंग कमिटी के सदस्यों को जल्द काठमांडू पहुंचने को कहा है।” 44 सदस्यों वाली स्टैंडिंग कमिटी में ओली अल्पमत में हैं। उनके साथ करीब 14 सदस्य हैं, जबकि दहल के पास 17 और नेपाल के साथ 13 सदस्य हैं। 

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