भक्तों का पैसा भक्तों के कल्याण में खर्च करने का यही सही समय है

पदम पति शर्मा

कोरोना वायरस का संकट वैश्विक है और दुनिया के 196 देश इसकी चपेट में आ चुके हैं । इस दानशी गति से फैलने वाले वायरस को दुनिया को बांटने वाला चीन तो अब इस परभेंट नियंत्रण पा लेने का दावा कर रहा है।लेकिन इटली, स्पेन, ब्रिटेन, जर्मनी , फ्रांस,ईरान और अमेरिका में इस वायरस का संक्रमण खतरनाक स्थिति में पहुच गया है। चीन हालांकि इस वायरस से मरने वालों की असली संख्या छिपा रहा है। लेकिन यदि उसका चार हजार से कम मृतक संख्या का दावा सच मान लिया जाय तो इटली मै यह संख्या दुगनी हो चुकी है।

उक्त सभी राष्ट्र हर दृष्टि से सर्व सुविधा सम्पन्न हैं । उनकी चिकित्सा व्यवस्था भी आला दर्जे की है। लेकिन 135 करोड की विशाल जनसंख्या वाला भारत उनकी तुलना में कहीं नहीं ठहरता।कोरोना इस देश में अभी तबाही वाले स्तर पर तो नहीं पहुंचा है मगर इससे ज्यादा दूर भी नहीं है। वह दूसरे से तीसरी स्टेज के बीच में है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं कमान अपने हाथ में ले ली है । गत 22 मार्ग का जनता कर्फ्यू इस महान दृष्टा की दूर की सोच का ही परिचायक था और इसने देश को एकजुट किया, इसमे तनिक भी संदेह नहीं । लेकिन यह तो जंग की पहली पायदान थी। सरकार की अग्नि परीक्षा तो आरंभ हुई है 25 मार्च से 21 दिनों तक पूरे देश में लाकडाउन यानी संपूर्ण बंदी से।

कार्गो को छोड कर समस्या परिवहन तक बंद हैं । एक तरह से देश में कर्फ्यू जैसी स्थिति है। इस वायरस को महामारी से रोकने का सबसे कारगर उपाय भी खुद को घरों में बंद करना और फासला बना कर रखना ही है। संकल्प, संयम और अनुशासन हर नागरिक का धर्म है। मोदी जी दो बार देश के नाम संबोधन में चेता चुके हैं कि यदि हम नहीं संभले तो देश 21 बरस पीछे चला जाएगा।

देश की अर्थव्यवस्था की रफ्तार पहले से ही काफी सुस्त थी। इस वायरस के चलते हुई देशव्यापी बंदी से तो हमारी माली हालत की कमर ही दूर जानी है। विशेषज्ञों के अनुमान के मुताबिक लाकडाउन से लगभग नौ लाख करोड का नुकसान होने जा रहा है। सरकार आठ लाख करोड कर्जा लेने जा रही है।

इस विषम स्थिति में वित्तीय संकट से उबरने का कर्ज के अलावा एक रास्ता और भी है और वो हैं देश के देवस्थानो के पास भक्तों की ओर से दान में मिली अकूत संपत्ति । आज देशबंदी के दौरान सरकार को कम से कम देश की अधिकांश आबादी का पेट भरना है। इसके लिए उसको तिरुपति, पद्मनाभ, सबरीमाला, शिरडी, सिद्धि विनायक, वैष्णो देवी जैसे सैकडों धार्मिक स्थल है और इनकी आमदनी का कोई ठिकाना नहीं । सरकार को इनकी संपत्ति को नियंत्रण में लेकर इसका उपयोग जन कल्याण में करने का समय आ गया है। यही नहीं ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती, निजामुद्दीन, मखदूम शाह जैसे जितने भी दरगाह और मजार हैं उनका भी सरकार अधिग्रहण क्ले और जरूरत पडे तो अध्यादेश लाये । आखिर चढावे का होता क्या है ? इस आपात स्थिति मे धर्मादे का पैसा धर्मादे में ही खर्च होना चाहिए। भक्तों का दिया दान भक्तों के ही कल्याण में खर्च होने का क्या यह सही समय नहीं है ?

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