अनिता चौधरी
राजनीतिक संपादक
आज़ादी के बाद से ही भारत में मानवाधिकार के हनन पर हंगामा अक्सर मुस्लिम समुदाय के लिए होता है । नेहरू से लेकर राजीव गांधी सभी ने देश की नीतियों को मुस्लिम हित में ध्यान रख कर बनाया । मगर विकास के रेशियो को अगर देखें तो भारत का मुसलमान अपनी रूढ़िवादिता और इस्लामिक मानसिकता की वजह से पारिवारिक और सामाजिक विकास का वो हिस्सा नहीं बन पाया जिस रफ्तार से हिन्दू ने अपने आयाम कायम किये । हालांकि भारत में अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक के आधार पर कभी पढ़ाई और नियुक्ति में भेद भाव नही किया गया । मगर सच ये भी है कि भारत के मुसलमानों की शिकायतें कभी खत्म नही हुई । रूढ़िवादी सोच लिए अपनी नाकामयाबी के लिए हमेशा सरकारों को ही जिम्मेदार ठहराते रहे । दरअसल भारत के मुसलमान उस लाडले बच्चे की तरह हैं जिनकी हर जायज़-नाज़ायज़ मांग शुरू होने से पहले पूरी होती रही हैं और फिर अगली मांग जिसका भले समाज और राष्ट्रहित से सरोकार नहीं ही मगर उस मांग को लेकर वो बच्चा रोता रहा है ।
अभी हाल ही में नागरिकता संशोधन कानून पर सदन में बहस के दौरान देश के गृहमंत्री अमित शाह ने सदन में युगांडा के हिन्दुओं पर हुए जुल्मों का उल्लेख करते हुते उन्हें काँग्रेज़ सरकार के दौरान नागरिकता देने का ज़िक्र किया । आइए यूगांडा के हिंदुओं की भी भारतीय नागरिकता की सच्चाई और उनके दर्द को जानते हैं ।
युगांडा 85 प्रतिशत ईसाई तो 14 प्रतिशत मुस्लिम जनसंख्या वाला देश है। पूर्व में यह देश भी ब्रिटेन का गुलाम था। इसी वजह से विश्व युद्ध के बाद बहुत सारे भारतवासी युगांडा काम-काज को लेकर बस गये थे । इन भारतीयों में से आधे गुजरात से थे तो आधे शेष भारत से थे।
युगांडा में बसे भारतीयों ने अपने मेहनत का पसीना बहाया । काम काज के हर रास्ते तलाशे और वहाँ के समृद्धशाली वर्ग के रूप में अपनी पहचान बनाई। उद्योग -धंधे से लेकर राजनीति तक में भारतीयों का सिक्का चल पड़ा। लेकिन युगांडा में भी तख्ता पलट हुआ ईदी अमीन नामक एक मुस्लिम सैन्य अधिकारी ने 1971 में तख्ता पलटकर मिल्टन ओबेटो को हटा दिया और स्वयं युगांडा का प्रमुख बन गया।
अपने शासन के एक साल बाद ही 1972 इसने गैर मुस्लिम भारतीयों को बाहर निकल जाने का फरमान सुनाया।इस फरमान के बाद भी जब भारतिय हिंदुओं ने युगांडा नही छोड़ा तो उसने अपने इस्लामिक सैनिकों को लूट-मार करने की खुली छुट दे दी।
युगांडा के सेंट्रल और उत्तरी जोन में मुसलमान ज्यादा रहते हैं और इसी जोन में भारतवंशी भी ज्यादा रहते थे। ईदी अमीन की खुली छुट के कारण सेना के साथ-साथ मुसलमानों ने भी हिंदूओ को मारना-पीटना शुरु कर दिया।जिसके कारण अपने कठिन परिश्रम से अर्जित पीढ़ियों की समूची कमाई छोड़कर हिंदूओं को वहां से भागना पड़ा। सेना और मुस्लिम जनता ने मिलकर हिंदूओं की संपत्ति पर कब्जा कर लिया।
बड़ी तादात में हिंदूओ का कत्लेआम हुआ । फिर तकरीबन 60000 लोग वहां से भागने में सफल रहें।
अगर उस वक़्त की भारत की काँग्रेस सरकार चुप्पी साधे बैठी रही ।
तब यूगांडा में फंसे इन भारतीय को वहां से सुरक्षित निकालने में RSS ने बहुत ही महत्वपुर्ण भूमिका निभाई थी। इंदिरा गांधी तब देश की प्रधानमंत्री थी ၊ युगांडा के हिंदूओं पर अत्याचार को देखकर RSS के उस वक़्त के सर संघचालक बालासाहेब देवरस ने इंदिरा गांधी से कठोर कदम उठाने की गुजारिश की ,यहां तक कह की अगर आप कुछ नहीं कर सकती तो संयुक्त राष्ट्र में शिकायत कीजिये और उनकी मदद से फंसे हुए भारतीय को वहां से निकलने में मदद कीजिये । किंतु इन्दिरा गांधी टस से मस नहीं हुई । तब संघ ने युगांडा के पड़ोसी देश केन्या के हिंदू संगठनों को तार भेजकर भारतयों की सहायता करने की अपील की।
संघ ने केन्या की मदद से युगांडा में फंसे भारतयों को ब्रिटेन और फिजी भेजने में भी मदद की । ये ऑन रिकॉर्ड है कि संघ के इस कार्य पर अमेरिका, ब्रिटेन और आस्ट्रेलिया के दुतावासों ने भारतीय स्वयंसेवक संघ की काफी प्रशंसा की थी।
“उन 60000 हिंदू भारतीय में 29000 ने ब्रिटेन में शरण ली तो 4500 फीजी गयें ,5000 ने कनाडा में,1200 लोगों ने केन्या में शरण ली तो 11000 लोग लौटकर भारत आएं।”
शुरू में इंदिरा गांधी युगांडा से आए 11000 हिंदूओं पर मौन साधी रही लेकिन जब अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी ने सदन में इस मुद्दे पर शोर मचाना शुरू किया तब विश्व उपेक्षा से बचने के लिए इंदिरा गांधी को इन्हे नागरिकता देनी पडी।
उधर 29000 हिंदूओं ने जो ब्रिटेन में शरण ली थी इसके कारण वहाँ के समाचारपत्रों ने इसके लिए सरकार की कड़ी आलोचना करना शुरु कर दिया।
ब्रिटेन के अखबारों की आलोचना इतनी कड़वी थी कि मजबूरन वहां के विदेश मंत्री को यह कहना पड़ा कि हम इनको ब्रिटेन में नही रखने जा रहे हैं हम इन सभी को भारत भेजेगें। इस मुद्दे पर ब्रिटेन के अधिकारियों और भारत के अधिकारियों के बीच बातचीत शुरू हुई।भारत टस से मस नही हुआ उसके बाद ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने इंदिरा गांधी से खुद बात की किंतु इंदिरा गांधी ने 29000 भारतीयों को लेने से इंकार कर दिया। बाद में यूएनओ ने हस्तक्षेप किया कि यह अभी प्रताडऩा से पीड़ित हैं इसलिए इनको तत्काल ब्रिटेन में ही रहने दिया जाए।बाद में उनके अच्छे ब्यवहार के कारण सभी 29000 को ब्रिटेन की नागरिकता दे दी गई ।
लेकिन वहीं दूसरी तरफ सन् 1971 में इंदिरा की कांग्रेस सरकार ने बंगलादेश से आए मुस्लिम घुसपैठियों के लिए नागरिकता बिल में संशोधन किया और सभी बंगलादेशी मुस्लिमों को भारत की नागरिकता देकर उन्हें सारी सुविधाएं दी ၊ दरअसल काँग्रेज़ की धर्मनिरपेक्षता सिर्फ एक खास समुदाय के लिये वोट बैक की राजनीति के मद्देनजर है । दरअसल काँग्रेस हमेशा से तुष्टिकरण की राजनीति करती रही है । जिसकी वजह से देश का सौहार्द बिगड़ता रहा है । बात जब जब हिन्दू की हुई मुस्लिम तबका नाराज़ हुआ और काँग्रेज़ ने अपनी राजनीति की करारी रोटी सेकी । एक बार फिर जब बात हिन्दू की हो रही है तो देश का बिगड़ैल बच्चा अपनी जिद पे अड़ा है ।मुस्लिम तबका नाराज़ है और काँग्रेस और बाकी विपक्षी पार्टियां इस इस नाराजगी में तीली लगा कर आग भड़का रही है और अपनी राजनीतिक रोटी सेक रही है ।