आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम में केमिकल फैक्ट्री में जहरीली गैस के रिसाव से करीब एक दर्जन लोगों की मौत हो गई और सैकड़ों बीमार हुए हैं। सबको इस बात की आशंका है कि प्रभावितों को आने वाले समय में इसके गंभीर नतीजे भुगतने पड सकते हैं। लेकिन एम्स (aiims )दिल्ली के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया का मानना है कि विशाखापत्तनम में एक रसायन फैक्टरी से लीक(leak ) हुए ‘स्टाइरीन’ गैस के स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक प्रभाव की आशंका कम है। इसके अलावा, इस गैस(gas ) से होने वाली बीमारी भी हर मामले में घातक नहीं होगी।
गुलेरिया ने कहा कि जहां तक उपचार की बात है, इस रसायन (स्टाइरीन गैस) के प्रभाव को खत्म करने के लिये कोई ‘एंटीडॉट’ (anti dot) या निश्चित दवाई नहीं है। हालांकि, इलाज से फायदा होता रहा है। डॉ गुलेरिया ने कहा कि काफी संख्या में लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है। उनमें से ज्यादातर लोगों की हालत स्थिर है और उम्मीद है कि उनके स्वास्थ्य में अच्छा सुधार होगा।
डॉ. गुलेरिया ने कहा, ‘यह गैस बहुत लंबे समय तक नहीं रहती है। लोगों के स्वास्थ्य पर इसके दीर्घकालिक प्रभाव की आशंका कम है क्योंकि इस टोक्सिन ( toxin)को शरीर शीघ्रता से बाहर निकाल देता है।’
उन्होंने कहा, ‘यह ‘क्रोनिक’ (cronic) एक्सपोजर की जगह ‘एक्यूट’ (acute) एक्सपोजर है। लेकिन हमें इस पर नजर रखनी होगी। फिलहाल, डेटा किसी दीर्घकालिक प्रभाव की ओर संकेत नहीं कर रहे हैं।’ एम्स निदेशक ने कहा कि जो लोग गैस रिसाव मुख्य केंद्र के करीब थे, उन पर इसके गंभीर प्रभाव पड़ने की आशंका अधिक है। उन्होंने कहा कि आस-पास के इलाकों में घर-घर जाकर यह पता लगाने की कोशिश शुरू की गई है कि कहीं किसी व्यक्ति को गैस रिसाव के चलते स्वास्थ्य संबंधी कोई परेशानी तो नहीं है।
गुलेरिया ने कहा कि स्टाइरीन के सांस के जरिये शरीर में प्रवेश करने और इसके अंतरग्रहण से त्वचा और आंखों पर प्रभाव पड़ता है। इस यौगिक के शरीर में प्रवेश करने से सिर दर्द, उल्टी और थकान महसूस होती है। लोगों को चलने-फिरने में दिक्कत होने लगती है और कभी-कभी वे गिर भी सकते हैं। इससे अधिक प्रभावित होने पर व्यक्ति कोमा(coma ) तक में जा सकता है और उसकी हृदय गति बढ़ सकती है।
एम्स निदेशक ने कहा कि इसका त्वचा पर खुजली होने और कुछ हद तक चकत्ते पड़ने जैसे हल्के प्रभाव भी देखने को मिलते हैं। उन्होंने कहा कि पहली चीज तो यह करनी होगी कि प्रभावित इलाकों से लोगों को हटाया जाए, जैसा कि तत्परता से किया गया। डॉ गुलेरिया ने कहा कि आंखों को पानी से धोना जरूरी है। त्वचा को पोंछने के लिये टिशू या तौलिये का इस्तेमाल किया जा सकता है। उन्होंने कहा, ‘सांस लेने में परेशानी का सामना करने वाले लोगों की निगरानी करनी होगी क्योंकि यह यौगिक फेफड़ा और मस्तिष्क को प्रभावित कर सकता है।’
उन्होंने कहा, ‘उपचार की मुख्य रणनीति यह होनी चाहिए कि सांस लेने में परेशानी महसूस करने वाले लोगों की निगरानी की जाए। इनमें से कुछ रोगियों को वेंटिलेटर पर रखने की जरुरत पड़ेगी। कई लोगों को ऑक्सीजन की दरकार होगी और उनकी ऑक्सीजन जरुरत, श्वसन दर, सीएनएस डिप्रेशन (चक्कर आदि बेहोशी की हालत, जिसमें तंत्रिका तंत्र काम करना बंद कर देता है और हालत बिगड़ने पर मरीज कोमा में जा सकता है) आदि के संदर्भ में निगरानी की जा सकती है।’