वाराणसी। गुजरात के गुलाबी लहंगे में गौरा सजीं तो अड़भंगी शिव माथे पर मौर पहनकर मुस्काए। महाशिवरात्रि पर बाबा औघड़दानी गृहस्थ बन गए। टेढ़ीनीम स्थित महंत आवास पर बाबा विश्वनाथ और गौरा के विवाह की रस्म परंपरागत तरीके से निभाई गई। 357 सालों से चली आ रही विवाहोत्सव परंपरा के काशीवासी भी साक्षी बने।
गुरुवार को सुबह से ही महंत आवास पर विवाह की तैयारियां चल रही थीं। बाबा श्री काशी विश्वनाथ और माता गौरा की प्रतिमा का वर-वधू के रूप में शृंगार किया गया। दूल्हा बने बाबा की प्रतिमा के माथे पर मौर सजाया गया तो गुजराती लहंगे में माता गौरा का शृंगार हुआ।
महंत डॉ. कुलपति तिवारी ने बाबा व गौरा की विवाह परंपरा का निर्वहन करने के बाद आरती उतारी गई। इसके पूर्व ब्रह्ममुहूर्त में प्रतिमाओं का रुद्राभिषेक के बाद फलाहार भोग लगाकर राजसी शृंगार किया गया।
इस दौरान महेंद्र प्रसन्ना, डॉ. अमलेश शुक्ला, स्नेहा अवस्थी, कन्हैया दुबे केडी, संजीव रत्न मिश्र ने सांगीतिक प्रस्तुतियां दीं। रंगभरी एकादशी पर 25 मार्च को माता के गौने की रस्म निभाई जाएगी।