अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद से ही यह खतरा बना हुआ है कि इसकी कट्टरता और जिहाद की आंच मध्य एशिया के दूसरे देशों तक न पहुंचे। तालिबान की आड़ में सबसे ज्यादा चाल पाकिस्तान और तुर्की चल सकते हैं, जिनका मकसद ही इस्लामिक कट्टरता फैलाना है। हालांकि, इस चाल को बेकाम करने के लिए अब भारत और रूस ने हाथ मिलाया है। एनएसए अजित डोभाल और रूसी समकक्ष निकोलय पत्रुशेव के बीच हुई मुलाकात के दौरान मध्य एशियाई देशों की सुरक्षा को लेकर भी काफी देर तक चर्चा हुई है।

मामले के जानकारों ने बताया कि इस बात के ठोस संकेत मिले हैं कि तुर्की और पाकिस्तान मध्य एशिया के इन देशों में एनजीओ के जरिए अपनी पैठ बनाने में जुटे हुए हैं। इन एनजीओ को इस्लामिकरण के प्रयासों को पूरान करने में तुर्की की तरफ से तकनीकी सहयोग भी मिल रहा है। मध्य एशियाई देशों में इस्लाम माना जाता है लेकिन यह तालिबान जितना कट्टर नहीं है।

ऐसा माना जा रहा है कि पाकिस्तान और तुर्की के इशारों पर अब कट्टरवादी इस्लाम के प्रसार के मिशन को पूरा करने के लिए तालिबान शासित अफगानिस्तान का सहारा लिया जाएगा। अल-कायदा का सहयोगी इस्लामिक मूवमेंट ऑफ उजबेकिस्तान (IMU) का अफगानिस्तान में सक्रिय काडर है और यह उज्बेकिस्तान के फरघाना वैली में काफी प्रभावी संगठन भी माना जाता है।

डोभाल-पत्रुशेव की बैठक के दौरान जहां मध्य एशियाई देशों की सुरक्षा को लेकर चर्चा हुई, वहीं रूसी पक्ष की ओर से यह जानकारी दी गई है कि फिलहाल इन देशों में सुरक्षा स्थिति नियंत्रित है, लेकिन खतरा तब बढ़ जाएगा जब पाकिस्तान की अगुवाई में तालिबान अपने पैर पसारने की कोशिश करेगा।

इस दौरान रूस और भारत ने मध्य एशियाई देशों के साथ मोदी सरकार की वार्ता को बढ़ाने पर भी विचार किया ताकि द्विपक्षीय संबंधों को आगे ले जाया जा सके। भारत का पहले ही ताजिकिस्तान से रक्षा और सुरक्षा क्षेत्र में गहरा संबंध है।

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