सारी दुनिया चीन को कोरोना फैलाने का जिम्मेदार ठहरा रही है। लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ( trump)पर चीन फोबिया कुछ ज्यादा ही है। वह लगातार चीन को कोरोना ( corona)को फैलाने का कुसूरवार ठहरा रहे हैं। कल उन्होंने कहा कि उनके प्रशासन ने कोरोना वायरस पर चीन की प्रतिक्रिया को लेकर ‘बेहद गंभीर जांच’ शुरू कर दी है। जब भी मीडिया कोरोना पर उनके लेट रिएक्शन(late reaction ) की याद उन्हें दिलाता है तो उखड़ जा रहे हैं। वो लगातार यह दोहराने में लगे हैं कि चीन ने कोरोना पर दुनिया को गुमराह कर दिया।
ट्रम्प प्रशासन ने अवसर खो दिया
उन्होंने प्रेस ब्रीफिंग में कहा, “हम चीन से ख़ुश नहीं हैं, हम पूरी परिस्थिति से ख़ुश नहीं हैं क्योंकि हमारा मानना है कि कोरोना को वहीं रोका जा सकता था जहां से यह शुरू हुआ।” वैसे कुछ स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरीका के पास तैयारियों का वक़्त था लेकिन ट्रंप प्रशासन ने अवसर खो दिया। वह मध्य मार्च (march ) तक कोरोना को एक सामान्य फ्लू कहते रहे और अपनी आर्थिक प्रगति को सर्वोपरि बताते रहे। अपनी आलोचना को वह जितना खुद से दूर धकेल रहे, वह उतनी तेज़ी से वापस आ जा रही है। जनता का मूड यही है कि ट्रम्प ने उन्हें परेशानी में डाल दिया। अब तो वे लॉक डाउन ( lockdown)का विरोध करने लगे हैं।
सभी बडे देश चीन पर ठीकरा फोड रहे हैं
केवल ट्रम्प ही नहीं, सारे बड़े देश कोरोना के फैलने का चीन पर ठीकरा फोड़ रहे हैं। जर्मनी ने तो हर्जाना मांगा है और अरबों का बिल भेज दिया है। फ्रांस, स्पेन, इंग्लैंड ने सुर में सुर मिलाना शुरू कर दिया है। अब यहां सबको अपने देश में सवालों का सामना करना पड़ रहा है कि जब दिसंबर 19 में महामारी की खबर फैल गयी तो मार्च में अलर्ट होने की वजह क्या थी। जाहिर है चूक सबने की। इसी मुगालते में रहे कि चीन में है, हमसे क्या मतलब। तीसरी दुनिया में ऐसी बीमारी होती ही है। हम उन्नतशील देश हैं और ये बीमारी हमें नहीं होगी। एक सवाल पूछा जा रहा है कि दिसंबर में सरकारों ने चीन स्थित अपने दूतावासों से कोरोना पर चर्चा की या नहीं।अगर की तो जनता को बताए और नहीं तो ऐसा कैसे हो सकता है। दूतावास रोज ही अपनी रिपोर्ट अपने देश के विदेश मंत्रालय भेजते हैं। क्या कोरोना को लेकर किसी भी देश और दूतावास ने अलर्ट (alert ) जारी नहीं किया? क्या ये संभव है कि कोरोना के खतरे पर चर्चा नहीं हुई? क्या चीन ने उन देशों के सतर्क होने पर पाबंदी लगाई थी। अपनी लापरवाही चीन पर थोपकर दुनिया अपने कर्तव्यच्युत होने के दोष से बच जाएगी। ट्रम्प ने डब्ल्यूएचओ का फण्ड रोककर अपने खिसियाने का संदेश दे दिया है।
द्वितीय महायुद्ध के लिए सिर्फ हिटलर को जिम्मेदार ठहराया था
याद कीजिये, दूसरे विश्व युद्ध के वक़्त का नजारा। जर्मनी(germany ) जैसे ही हारा, अलाइड फोर्सेज ने उसे हर तरह से दोषी ठहराते हुए उसका सब कुछ छीन लिया। आज भी यही प्रचारित किया जाता है कि अकेला जिम्मेदार वही था। जर्मनी आज भी उस नाइंसाफी को भूला नहीं है। क्योंकि युद्ध तो सबने किया था, पर अकेला अपराधी वही करार दिया गया। अमेरिका को इस आरोप का जवाब देना है कि क्या वह वुहान (wuhan )के करीब लैब में चमगादड़ पर हो रहे रासायनिक परीक्षण के लिए पैसा दे रहा था या नहीं। वैसे रासायनिक हथियार बनाने का इतिहास नया नहीं है और इस बाबत उंगलियां पश्चिमी दुनिया पर अरसे से उठतीं रहीं हैं।
चुनाव की तारीख नहीं बदली जाएगी
अब वापस ट्रम्प पर आते हैं। कहते हैं “कोई नहीं स्वीकार करेगा कि जो भी कुछ हुआ उसके लिए एक देश को ज़िम्मेदार ठहराया जाए। “कोई भी यहां किसी को ज़िम्मेदार नहीं ठहरा रहा है, हम उन लोगों के समूह को देख रहे हैं जो इसको उसके पैदा होने वाली जगह पर ही रोक सकते थे।” राष्ट्रपति ने कहा कि अमेरिका उन्हें कभी नहीं भूलेगा जिन्होंने ‘अयोग्यता की वजह से बलिदान दिया या अयोग्यता के अलावा किसी और वजह के लिए। चीन की ओर इशारा करते हुए ट्रंप ने कहा, “वे सिर्फ़ हमें नहीं बल्कि पूरी दुनिया को बचा सकते थे। प्रेस कॉन्फ़्रेंस के दौरान अमरीकी राष्ट्रपति से पूछा गया कि क्या वो नवंबर में होने वाले राष्ट्रपति चुनावों को स्थगित करने पर विचार कर रहे हैं? ट्रंप ने कहा, “मैंने चुनाव की तारीख़ बदलने के बार में कभी नहीं सोचा. मैं ऐसा क्यों करूंगा? तीन नवंबर. यह एक अच्छा नंबर है।” यही तारीख ट्रम्प को परेशान कर रही है। कोरोना पर काबू रखने के वक़्त वो यूरोप और एशिया का दौरा करने में लगे थे। उनके सलाहकारों के नोट्स और ब्रीफिंग के सच के सामने आने का इंतजार कीजिये।