वाशिंगटन | अमेरिका की सत्ता से जाते-जाते डोनाल्ड ट्रंप ने ड्रैगन को ऐसी चोट पहुंचाई जो उसको काफी समय तक याद रहेगी। दरअसल, सुरक्षा का हवाला देते हुए अमेरिका ने चीन के सबसे बड़े प्रोसेसर चिप निर्माता कंपनी एसएमआईसी और तेल की दिग्गज कंपनी सीएनओओसी समेत 4 चाइनीज कंपनियों को ब्लैकलिस्ट में डाल दिया है। इस बात की जानकारी डिपार्टमेंट ऑफ डिफेंस ने दी है। डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन का कहना है कि अमेरिका में चल रहीं ये वे चीनी कंपनियां हैं, जिनका संचालन चीनी सेना प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कर रही है या फिर ये उनके नियंत्रण में हैं।

रक्षा विभाग के मुताबिक, जिन चीनी कंपनियों पर ट्रंप प्रशासन का हथौड़ा चला है, वे हैं- चाइना कंस्ट्रक्शन टेक्नोलॉजी कंपनी , चाइना इंटरनेशनल इंजीनियरिंग कंसल्टिंग कॉर्प , चाइना नेशनल ऑफशोर ऑयल कॉर्पोरेशन और सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग इंटरनेशनल कॉर्पोरेशन । इस तरह से अमेरिका ने अब तक चीन की कुल 35 कंपनियों को ब्लैकलिस्ट कर रखा है। 

3 नवंबर को हुए अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में हार के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने चीन को पहली बार इतना बड़ा झटका दिया है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप यहीं नहीं रुकने वाले हैं,  20 जनवरी को जो बाइडन का कार्यकाल शुरू होने से पहले डोनाल्ड ट्रंप चीन को और भी जख्म (एक्शन ले सकते) दे सकते हैं। 

इससे पहले मई महीने में अमेरिका ने चीनी कंपनी हुआवेई (हुवेई) व उसकी सहयोगी कंपनियों को काली सूची में डाल दिया था। इसके बाद चीन ने जवाबी कार्रवाई करने की चेतावनी दी थी। चीनी कंपनी SMIC प्रोसेसर चिप्स और अन्य घटकों को बनाकर सत्ताधारी पार्टी के अमेरिका और अन्य विदेशी प्रौद्योगिकी पर निर्भरता को कम करने के प्रयास में अग्रणी भूमिका निभाता है।

दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव के बीच अमेरिकी इंटेलिजेंस के निदेशक जॉन रैटक्लिफ ने कहा है कि चीन द्वितीय विश्व युद्ध के अंत के बाद से लोकतंत्र और स्वतंत्रता के लिए सबसे बड़ा वैश्विक खतरा है। उन्होंने बीजिंग के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए द्विदलीय प्रतिक्रिया का आह्वान किया। वहीं, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि चीन का व्यापार और मानव अधिकारों को लेकर खराब रिकॉर्ड है, उसके ऊपर जिस तरह से जासूसी और प्रौद्योगिकी चोरी के आरोप लगते रहे हैं, ऐसे में जो बाइडेन के सत्ता में आने के बाद भी ट्रंप के इन फैसलों में बदलाव की संभावना बहुत कम दिखती है। 

गौरतलब है कि एक दिन पहले ही अमेरिका ने चीन को एक और झटका दिया था। अमेरिकी संसद ने एक विधेयक पारित किया है, जिसके तहत लगातार तीन सालों तक अपनी ऑडिट सूचनाएं बाजार नियामक को नहीं देने वाली कंपनियां अमेरिकी शेयर बाजार में सूचीबद्ध नहीं रह सकेंगी। इस कदम के बाद धोखेबाजी से सूचनाएं छिपाने वालीं चीनी कंपनियों को अमेरिकी शेयर बाजारों से डिलिस्ट होना पड़ेगा।
 इस कानून से अमेरिकी निवेशकों और उनकी सेवानिवृत्ति की बचत को विदेशी कंपनियों से बचाने में मदद मिलेगी, जो ओवर स्टॉकिंग करते हुए अमेरिकी शेयर बाजारों में कारोबार कर रही हैं। 

अमेरिकी संसद के निचले सदन हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव ने बुधवार को इस विधेयक को पारित किया। इससे पहले ऊपरी सदन सीनेट ने इसे 20 मई को पारित किया था। अब विधेयक राष्ट्रपति के पास हस्ताक्षर के लिए भेजा जाएगा। नए नियमों के तहत सार्वजनिक कंपनियों को यह बताना होगा कि क्या वे चीन की कम्युनिस्ट सरकार सहित किसी अन्य विदेशी सरकार के स्वामित्व या नियंत्रण में है। साथ ही यह सुनिश्चित किया जाएगा कि अमेरिका में कारोबार करने वाली विदेशी कंपनियों पर वही लेखा नियम लागू होंगे, जो अमेरिकी कंपनियों पर लागू होते हैं।

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