शहर-ए-बनारस को स्वच्छ बनाने और इसे चमकाने की कवायद इन दिनों पूरे ज़ोर शोर से चल रही है। ऐसे में सूबे की योगी सरकार लगातार काशी के विकास के लिए प्रयास कर रखी है। इस विकास में काशी के मूल-भूत सुविधाओं के साथ ही पर्यावरण भी शामिल है। आपको यह जानकर सुखद आश्चर्य होगा की वाराणसी में पर्यावरण को शुद्ध रखने के एक अनोखा बैंक बना है, जहाँ रुपयों को लेन-देन नही बल्कि प्लास्टिक के कचरे का लेन-देन होता है । ये बैंक काशी के विकास में सहायक साबित हो रहा हैं ।

अपने आप में अनोखा है ये बैंक

बैंक का नाम सुन कर आपके मन में रुपयों के लेन-देन की बात सामने आती होगी,लेकिन वाराणसी में मलदहिया स्थित ये बैंक अपने आप में अनोखा बैंक है । इस बैंक का नाम प्लास्टिक वेस्ट बैंक है। इस बैंक में प्लास्टिक के कचरे से लेन-देन होता है। ये प्लास्टिक शहर के लोग,प्लास्टिक वेस्ट बैंक के वालिंटियर , उपभोक्ता यहाँ लाकर जमा करते हैं। अगर प्लास्टिक कम है तो उसे उस प्लास्टिक के कचरे के बदले कपड़ें का झोला या फेस मास्क दिया जाता है। अगर प्लास्टिक अधिक मात्रा में किसी ने लाया है तो उसके वजन के अनुसार उसे पैसे दिए जाते हैं यानी कि यहाँ आपको रुपये के बदले में रुपये नही बल्कि प्लास्टिक के कचरे के बदले रुपये प्राप्त होंगे।

नगर निगम की अनूठी पहल

नगर आयुक्त गौरांग राठी ने बताया की पीपीई मॉडल पर केजीएन व यूएनडीपी काम कर रही है। 10 मीट्रिक टन का प्लांट आशापुर में लगा है। करीब 150 सफाई मित्र इस काम में लगे है। नगर आयुक्त ने बताया की पॉलीथिन पर प्रतिबन्ध है फिर भी टेट्रा पैक और पानी पीने की बोतले चलन में है, जिसका निस्तारण रिसाईकिल करके किया जाता है।

केजीएन कंपनी कर रही कार्य

केजीएन कंपनी के निदेशक साबिर अली ने बताया की वे एक किलो पॉलीथिन के बदले 6 रूपया देते है, जो आठ से दस रुपये किलो में बिकता है। पूरे शहर से रोजाना करीब दो टन पॉलीथिन कचरा इकट्ठा हो जाता है। इसके अलावा 25 रुपया किलो पीईटी यानी इस्तेमाल की हुई पीने के पानी की बोतल खरीदी जाती है, जो प्रोसेसिंग के बाद करीब 32 -38 रुपये किलो बिकता है। किचन में इस्तमाल होने वाला प्लास्टिक बाल्टी, डिब्बे, मग आदि जिसे पीपी, एलडीपी बोलते है 10 रुपया किलो खरीदा जाता है, जो 4 से 5 रुपये की बचत करके बिक जाता है।

आशापुर में बना है प्लांट

इसके अलावा साबीर अली ने बताया कि कार्ड बोर्ड आदि सभी रीसाइकिल होने वाले कचरे को ये बैंक लेता है। इस बैंक में जमा प्लास्टिक के कचरे को वाराणसी के आशापुर स्थित प्लांट पर जमा किया जाता है।

प्लास्टिक के कचरे को प्रेशर मशीने से दबाया जाता है। प्लास्टिक को अलग किया जाता जिनमे पीईटी बोतल को हैड्रोलिक बैलिंग मशीन से दबाकर बण्डल बनाकर आगे के प्रोसेस के लिए भेजा जाता है और अन्य प्लास्टिक कचड़े को अलग करके उनको भी रीसाईकल करने भेज दिया जाता है और फिर इसे कानपूर समेत दूसरी जगहों पर भेजा जाता है, जहाँ मशीन द्वारा प्लास्टिक के कचरे से प्लास्टिक की पाइप, पॉलिस्टर के धागे, जूते के फीते और अन्य सामग्री बनाई जाएगी। नगर निगम द्वारा शुरू किए गए इस पहल में प्लास्टिक के कचरे को निस्तारण के लिए इस बैंक का निर्माण हुआ है ।

पर्यावरणविद भी हैं खुश

पर्यावरणविद भी इस पॉलीथिन को बेहद खतरनाक और पर्यावरण का शत्रु मानते है। उनका कहना है कि प्लास्टिक के बैग और पॉलीथिन से शहर में कई तरह के प्रदूषण पैदा होते है। ये पॉलीथिन पर्यावरण के लिए बेहद खतरनाक है। गंगा में लोगों द्वारा पॉलीथिन फेक दिया जाता है, जिससे गंगा में गंदगी होती है साथ ही जलीय जन्तुओं को नुकसान होता है। पॉलीथिन से सीवर ज़ाम होता है। नालियाँ चोक हो जाती है साथ ही पॉलीथिन जलाने से भी जहरीले धुंए से वातारवरण खराब होता है और हवा जहरीली हो जाती है।

काशी के विकास में निभाएगा अहम भूमिका

बनारस को प्लास्टिक मुक्त करने के लिए पहले से ही यहाँ प्लास्टिक पर प्रतिबन्ध है लेकिन अभी भी कई ऐसे प्लास्टिक के सामग्री हैं जो उपयोग में हैं, जिसके निस्तारण के लिए ये उपाय काफी कारगार साबित हो रहा है और उपयोग का सामान भी बनाया जा रहा है । ऐसे में ये प्लास्टिक बैंक जहाँ वाराणसी को प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण के रोकथाम में कारगर साबित होगा तो वहीं काशी के विकास में भी मुख्य भूमिका निभाएगा ।

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