भारत में आम बोलचाल में अंग्रेजी के कई शब्द ऐसे प्रयुक्त होते हैं, जैसे हिंदी के हैं, जैसे, रोड, मोबाइल( mobile), लाइट, बल्ब ( bulb) इत्यादि। अब इसमें आये नाम जुड़ने जा रहे हैं। जैसे, कोरोनावायरस, कोविड़-19, लॉकडाउन ( lockdown), क्वरैंटाइन, आइसोलेशन, हॉट स्पॉट( hot spot), सेनेटाइजेशन आदि।

ये अंग्रेजी के शब्द हैं, पर पिछले एक माह से भी कम समय में पूरे भारत के लिए स्मरणीय से हो गये। हमारी दिनचर्या का अंग बन गये हैं। इतना ही नहीं, सारी दुनिया की जुबान पर फिक्स( fix) हो गये हैं। कोरोना का प्रकोप जब खत्म होगा तब भी ये अल्फ़ाज़ इस दुनिया के अफसाने में दर्ज हो जाएंगे। हक़ीक़त में तो रहेंगे ही। ये चंद शब्द ही हैं, चंद दिनों पहले ही चर्चा में आए भी थे। लेकिन असर देखिये, कितना गहरा है। हमारी जिंदगी में ऐसे घुले जैसे, पानी में ऑक्सीजन।

अमेरिका के साथ सब देख रहे दुर्दिन

कोरोना की चपेट में दुनिया के 185 देश हैं। चार अरब से अधिक आबादी लॉकडाउन है। तकरीबन एक करोड़ से ज्यादा लोग होम क्वरैंटाइन हैं। 22 लाख से ज्यादा आबादी आइसोलेशन ( isolation ) में है। 1000 से ज्यादा छोटे-बड़े शहर हॉट स्पॉट बन चुके हैं। दुनिया की सुपर पावर अमेरिका (america )से लेकर सबसे गरीब देश कांगो ( congo) और मोजांबिक( mozambique) तक हर कोई बस कोरोना पर काबू पाने के जद्दोजहद में जुटे हैं। कोरोना को आए 118 दिन से ज्यादा का वक्त गुजर चुका है, लेकिन डर का वायरस अभी भी आसमान पर छाया हुआ है। यह गरज भी रहा है और बरस भी रहा है। इस कोरोना सुनामी के बीच कहीं मृतकों को दफनाने के लिए कब्रें खोदी जा रही हैं, तो कहीं हेल्थ वर्कर्स की हौसलाअफजाई के लिए तालियां बज रही हैं, तो कहीं खाने के लिए रोटी भी तलाशी जा रही है। इस सबके बीच जिंदगी के तौर-तरीकों में बदलावों की बयार भी बह रही है।

लॉकडाउन के बीच दुनिया कैसे दिख रही है, ये देखने और समझने की बात है। दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका में हाल ये है कि वो भूल गया है कि दरोगाई किस चिड़िया का नाम है। वह भी मिन्नतें करता है। कोरोना की बात करता है, सोशल डिस्टेंनसिंग की चर्चा करता है। आइसोलेशन पर जोर देता है, लॉक डाउन उसकी जुबान है।

कोविड 19 के अमेरिका में अब तक सात लाख से ज्यादा केस आ चुके हैं। 37 हजार से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। 2 करोड़ से ज्यादा लोग बेरोजगार हो चुके हैं। युवा, बुजुर्गों से ज्यादा चिंतित हैं। अस्पतालों में मरीजों को भर्ती करने की जगह नहीं है। कब्रिस्तानों में मृतकों को दफनाने के लिए जगह नहीं है। इस सबके बीच कुछ बची है तो वो हैं उम्मीदें। सम्भव है कि दुनिया फिर पटरी पर आ जाय, लेकिन कोरोना का नक्श उसकी आत्मा पर तीर की तरह खुभ गया है। जो निकल तो जाएगा, पर अपनी याद अमिट कर जाएगा।

मौत का सामान बांटने वाला चीन राहत बेच रहा

अब देखिए, कोरोनावायरस का वाहक देश चीन कैसे दुनिया को कोरोना से बचाने के लिए जरूरी उपकरण और सामान बेंच रहा है। वहां लॉकडाउन भी हट गया है। इस सबके बीच उसकी इकोनॉमी 40 साल की सबसे बड़ी गिरावट भी दर्ज की गई है। ऐसे में वह इकोनॉमी (economy )के साथ कोरोना मृतकों के आंकड़ों का गियर भी शिफ्ट करने में जुटा है। मौत बांटने वाला चीन दुनिया को रोग से लड़ने वाले उपकरण बेच रहा है। लेकिन वुहान से कैसे तबाह हुआ है जहान, ये पिक्चर देखना बाकी है।

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