75 साल में जो लाखों करोड़ से नहीं हो पाया, कोरोना वायरस ने तीन महीने में कर दिखाया
अमित पांडेय
भारत समेत पूरी दुनिया में कोरोना ने कोहराम मचा रखा है…लिहाजा लोग घरों में कैद है…लेकिन दोस्तो हम आपको जो कुछ बताने वाले हैं, जो कुछ भी अब आप पढ़ने वाले है, वो दिल को इतना सुकून देगा कि आप खुद ही कह उठेंगे कि इससे बढ़कर दुनिया के लिये राहत की बात क्या हो सकती है?
क्योंकि इस वक्त कोरोना के मरीजों को छोड़ दिया जाए तो भारत ही नहीं दुनिया के अस्पताल खाली पड़े हैं। मेडिकल जगत का सबसे बडा नेक्सस कमजोर पड़ा है। मरीजों की लंबी-लंबी लाइन अचानक गायब हो चुकी हैं। लंबा चौड़ा अस्पताल वाला बिल अब टेंशन पैदा नहीं कर रहा है, आप सोच रहे होंगे कि क्या अचानक बाकी बिमारियों से जूझ रहे सारे मरीज ठीक हो गए हैं? अचानक डॉक्टर्स ने वो कौन सा ट्रीटमेंट कर दिया की चमत्कार हो गया?
सामान्य बीमारियों की बात तो छोड़ दीजिए, इमरजेंसी बीमारियों के केस भी कैसे कम हो गए? आप देखिए खास तौर से भारत में कि बच्चों का जन्म नार्मल हो रहा है। माँ का पेट चीरने का औसत आश्चर्यजनक रूप से कम हो गया है।
बड़ी बात तो ये है कि कोरोना के चलते बाकी बीमारियों पर ही नहीं, बल्कि रोज होने वाले सड़क हादसों से होने वाली मौतों पर तो जैसे ब्रेक ही लग गया है।
दुनिया पहली बार वो धरती देख रही है जो कभी कल्पनातीत थी।
दोस्तो अब हम आपको कोरोना के वो कारनामे बताने वाले हैं जो पिछले 75 साल में लाखों-करोड़ो रुपये खर्च करने के बाद भी किसी देश की सरकार नहीं कर पाई। इस खबर को पूरा पढ़ने के बाद आप खुद ये सोचने पर मजबूर हो जाएंगे कि कोरोना बुरी न्यूज दे रहा है या सबसे बड़ी गुड न्यूज?
अस्पतालों से अचानक कम हुई लोगों की मौतें
कोरोना से इतर मौतों की संख्या में आई काफी कमी
हार्ट अटैक के मामलों में 70 फीसदी की गिरावट
लॉकडाउन में हमारी जीवनशैली बेहतर हुई है जिससे स्वास्थ्य पर पॉजिटिव असर हुआ है….डॉक्टरों का मानना है कि बहुत ज्यादा इलाज से भी अलग तरह के हेल्थ प्रॉब्लम्स होते हैं… देश के अस्पतालों में लॉकडाउन के बाद 70 फीसदी से ज्यादा मरीज घट गए हैं…. ये बीमारी है “हार्टअटैक”….वैसे भारत में अब हार्ट अटैक से मौतों का आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा था… जाने माने हार्ट स्पेशलिस्ट डॉ सीएन मंजूनाथ के मुताबिक भारत में हर एक मिनट में हार्ट अटैक से 4 मौतें होती हैं….. भारत में 25 फीसदी मौतों के लिये केवल हार्ट अटैक जिम्मेदार है….हालांकि दुनिया में ऐसा पहली बार हुआ है कि कोरोना महामारी के इस दौर में हार्ट अटैक के मामलों में 70 फीसदी की कमी आई है….अमेरिका, भारत, स्पेन और चीन समेत दुनिया के कई मुल्कों में हार्ट अटैक के मामलों में कमी आई है….. दुनिया में मौत के 10 कारणों में टीबी से होने वाली मौत सबसे ज्यादा है…भारत में हर साल 4 से 5 लाख लोगों की टीबी से मौत होती है। हालांकि इस वक्त हार्ट, टीबी, डाइबिटीज और हाइपरटेंशन जैसी बीमारियां ही नहीं बल्कि तमाम तरह की बीमारियों के मरीज अचानक से कम हो गए हैं। बड़ी बात तो ये है कि अचानक तबीयत बिगड़ जाने पर मरीजों को अस्पताल लाने और आपात परिस्थिति में मरीजों की मौत के मामले भी कम हो गए हैं। आंकड़े बताते हैं कि कोरोना काल में देश में हर्ट अटैक, स्ट्रोक और दूसरे कारणों से इमर्जेंसी में अस्पताल आने वाले मरीजों की संख्या 70 फीसदी से ज्यादा कम हो गई है। भारत ही नहीं ये हाल पूरी दुनिया का है। अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक अमेरिका में अस्पताल आने वाले हर्ट अटैक के मरीजों की तादात 40 से 60% कम हो गई है।
तो क्या ओवर ट्रीटमेंट से मरते हैं मरीज?
अस्पतालों से यकायक इमरजेंसी के मरीजों के भी गायब होने के पीछे कुछ डॉक्टर्स लॉकडाउन को सबसे बड़ी वजह बता रहे हैं। जिसके चलते लोगों की लाइफ स्टाइल में बदलाव आया है….लोग होटल-रेस्टोरेंट बंद होने के कारण घर का सात्विक खाना खा रहे हैं। लोगों को इस वक्त न तो व्यापार की चिंता है और ना ही नौकरी का लोड। घर पर बैठकर परिवार के साथ समय बिता रहे हैं और खूब आराम कर रहे हैं। प्रदूषण का स्तर भी तेजी से कम हुआ है। जिसके चलते मौतों के आंकड़े कम हुए हैं….हालांकि कुछ मेडिकल एक्सपर्ट इसके पीछे कुछ और बड़े कारणों को भी जिम्मेदार मान रहे हैं। मसलन इस वक्त फार्मा इंडस्ट्री का काला कोराबार मंद पड़ा है, डॉक्टर्स का ओवर ट्रीटमेंट बंद है। अमेरिका में हर साल दो लाख लोग इलाज में गलतियों के कारण मरते हैं। वहां मौतों का तीसरा सबसे बड़ा कारण यही है।
चूंकि भारत में तो अमेरिका के मुकाबले चिकित्सा सुविधाएं कमतर ही हैं। लिहाजा मौतों का आंकड़ा और भी ज्यादा है। वहीं इस वक्त लॉकडाउन है। लिहाजा लोग दवाएं कम खा रहे हैं। डॉक्टर्स मरीजों में बीमारियां कम ढूंढ पा रहे हैं। नतीजन इलाज कम हो रहा है। और मरीज ओवर ट्रीटमेंट से बच पा रहे हैं। तो मौतें भी कम हो रही हैं। दूसरे, इस वक्त इलेक्टिव प्रोसीजर या सर्जरी बिल्कुल ठप है। लिहाजा इसके चलते होने वाली मौतें भी बंद हैं। वैसे लॉकडाउन में केवल बीमारियों की वजह से ही मरने वालों के आकंड़ों में कमी नहीं आई है बल्कि सड़क हादसों में भी काफी कमी देखी गई है।
लॉकडाउन ने लगाया हादसों पर लॉक देश में सबसे ज्यादा मौतें सड़क और रेल दुर्घटनाओं से होती हैं…पिछले साल की तुलना में इस साल दूसरे कारणों से होने वाली मौतों का आंकड़ा कम है… आंकड़ें बताते हैं कि विश्व में सड़क दुर्घटनाओं के मामलों में भारत का स्थान सबसे ऊपर आता है… कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए देशभर में लगाए गए लॉकडाउन के दौरान रेल और सड़क दुर्घटनाओं में जान गंवाने वाले लोगों की संख्या में भारी गिरावट आई है….सेव लाइफ फाउंडेशन के अनुसार, देश में सड़क हादसे की वजह से हर दिन औसतन 415 लोगों की मौत होती है…और साल में करीब डेढ़ लाख से अधिक लोगों की मौत होती है। सड़क हादसों में काफी हद तक गिरावट आई है….सड़क हादसों के आंकड़ों पर गौर करें तो…. देश में हर साढ़े 3 मिनट में एक व्यक्ति की मौत सड़क दुर्घटना में हो जाती है… मतलब ये है कि भारत में हर साल डेढ़ लाख लोग सड़क हादसों के कारण काल के गाल में समा जाते हैं…साल 2017 में 1 लाख 48 हजार लोग सड़क हादसे में मारे गए थे… वहीं साल 2018 में 1 लाख 51 हजार लोग हादसे शिकार हुए… दरअसल लॉकडाउन की वजह से सड़क पर ट्रैफिक कम हुआ जिस वजह से पिछले एक महीने में सड़क दुर्घटनाओं में कमी आई… ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि 2020 में सड़क दुर्घटनाओं में 15 फीसदी की गिरावट देखी जा सकती है…. मुंबई की जनसंख्या 1.2 करोड़ के करीब है….मुंबई नगर पालिका के आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल की तुलना में इस साल मार्च महीने में होने वाली मौतों की संख्या में 21 फीसदी की गिरावट देखी गई है….केवल हादसों में ही इस लॉकडाउन के दौरान गिरावट नहीं देखी गई है…बल्कि आपराधिक मामलों में भी लॉकडाउन ने ब्रेक लगा दिया है।
कोरोना काल में अपराध पर लगी लगाम हत्या, लूट के मामलों में आई भारी गिरावट
50 फीसदी तक घटे हत्या और लूट के मामले कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए देश भर में लागू लॉकडाउन के बीच अपराध का ग्राफ गिरने की खबरें आ रही हैं….. हालांकि, नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूलरो ने इसको लेकर कोई आंकडा जारी नहीं किया है, लेकिन राज्यों के पुलिस विभाग से मिली जानकारी के आधार पर उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, कर्नाटक समेत देश के कई राज्यों में आपराधिक घटनाओं में काफी कमी आई है….पुलिस का कहना है कि अपराधियों में भी संक्रमण का खौफ है। इसलिए वो बाहर नहीं निकल रहे हैं. कुछ जगहों पर लॉकडाउन उल्लंघन के मामले दर्ज किए गए हैं. इसमें धारा-144 का उल्लंघन के साथ ही महामारी अधिनियम के मामले शामिल हैं. इस दौरान हत्या, अपहरण, चोरी-डकैती, लूटपाट, छीना-झपटी, आत्महत्या और रेप के मामलों में जबरदस्त कमी आई है…..देश में हर साल करीब 30 हजार लोगों की हत्या के मामले दर्ज किए जाते हैं….साल में करीब 1 लाख से ज्यादा आत्महत्याएं भी दर्ज की जाती हैं….फिलहाल फरवरी से लेकर अब तक इनमें 70 फीसदी से ज्यादा की कमी आई है….दिल्ली-एनसीआर में लॉकडाउन के दौरान आपराधिक वारदातों की संख्यात में जबरदस्त गिरावट दर्ज की गई है….. दिल्ली पुलिस के मुताबिक, इस दौरान घृणित अपराधों की श्रेणी में आने वाला एक भी मामला दर्ज नहीं हुआ है….सरकारी कामकाज में रुकावट डालने को लेकर कुछ मामले दर्ज किए गए हैं….. वहीं उत्तरप्रदेश में भी पाबंदियों का असर साफ दिख रहा है। लूट, रेप, हत्या और डकैती में 99 फीसदी तक गिरावट आई है। यानी दोस्तों लॉकडाउन में जो पॉजिटिव ट्रैंड चला रहा है। उसने कई लोगों की जान बचा ली है….हालांकि कोरोना की वजह से करीब हमने बहुत से लोगों को काल के गाल में समाते देखा है।
प्रदूषण के घटे स्तर ने दी गुड न्यूज दुनिया में जैसे जैसे प्रदुषण बढ़ता है वैसे वैसे मौतों का आंकड़ा भी बढ़ता है। ‘स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर-2019’ रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक भारत में वायु प्रदूषण के कारण साल 2017 में 12 लाख लोगों की मौत हुई थी। वहीं ग्लोबल आलियांस ऑन हेल्थ एंड पॉल्यूशन की रिसर्च रिपोर्टे के मुताबिक वायु प्रदूषण से दुनियाभर में होने वाली मौतों में भारत की हिस्सेदारी 28 फीसदी है। बड़ी बात ये है कि साल 2017 में दुनिया के 49 लाख लोगों ने प्रदूषण के चलते अपनी जान गंवा दी। तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि कि पॉल्यूशन कितना खतरनाक है।
एक रिसर्च के मुताबिक लंदन में स्मॉग बढने के कारण मौत के मामलों में बड़ी उछाल देखने को मिली थी। और करीब 4 हजार लोग ज्यादा मरे थे। भारत के दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, बेंगलुरू और हैदराबाद जैसे शहरों का प्रदुषण लेवल हमेशा ही हाई रहता है। जिसके चलते यहां भी पॉल्यूशन से होने वाली मौतों का आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है। लेकिन दुनिया में जो काम कोई सरकार नहीं कर पायी, वो कोरोना ने कर डाला। और लॉकडाउन के कारण 60 फीसदी से ज्यादा हवा, पानी और जमीन साफ हो चुके हैं। लिहाजा डॉक्टर्स के मुताबिक प्रदूषण घटने से मौतें कम हो रही हैं। न्यूमोनिया, उससे संबंधित समस्याएं और मौतें नहीं हो रही हैं।
कोरोना संक्रमण की वजह से जो हमारी पृथ्वी पर पॉजिटिव इंपैक्ट पड़ा है! खासकर लॉक डाउन के कारण ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन न्यूनतम हो गया है इसके कारण ओजोन की परत में सुधार हो रहा है, नदियों का पानी स्वच्छ हुआ है, वायु प्रदूषण ध्वनि प्रदूषण न्यूनतम हो गया है, बताइए बिहार के किसी गांव से हिमालय की चोटियां दिखाई पड़ रही है! अब तो वैश्विक नेतृत्व को एक होकर अब यह नियम बना देना चाहिए कि हर वर्ष 2-3 महीने (अप्रैल से मई/जून) तक विश्व लॉक डाउन रहेगा! सब घर पर रहे, सारे उद्योग बंद रहेंगे! सिर्फ आवश्यक वस्तुओं के व्यापार, उत्पादन की छूट रहेगी! सभी 2-3 महीने तक अपने घरों से ऑफिस का काम करेंगे! 2-3 महीने तक सभी अंतरराष्ट्रीय उड़ानों रद रहेंगी, सभी राज्यों की सीमाएं सील रहेंगी, किसी भी प्रकार का कोई परिवहन नहीं होगा! सभी प्रकार के क्रियाकलाप 2-3 महीनों के लिए हर वर्ष बंद रहेंगे! इमरजेंसी और आवश्यक क्रियाकलापों को छोड़कर!
इससे हमारा पर्यावरण और हमारी पृथ्वी रहने लायक बनी रहेगी! वैसे कोरोना ने लगभग पूरी दुनिया के लोगों को उनकी क्षमता दिखा दी है! हम केवल आवश्यक क्रियाकलाप करते हुए 2-3 महीने घरों में रह कर अच्छा समय बिता सकते है! बैकग्राउंड में सारे आवश्यक क्रियाकलाप चलते रहेंगे जैसे सरकारें, खेती-किसानी, आवश्यक इंफ्रस्ट्रक्चर डेवलपमेंट, वर्क फ्रॉम होम आदि आदि! अगर हम पहले से ही ऐसी नीतियां बना कर चलेंगे तो यह सबके लिए बड़ा आसान होगा और हमारे ग्रह व पर्यावरण के लिए काफी मंगलकारी होगा!