आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि इस्लाम के 5 अरकान हैं यानी 5 स्तंभ हैं जो बुनियादी हैं। उन 5 में कहीं दूर-दूर तक भी ‘हिजाब’ शब्द का इस्तेमाल महिलाओं की वेशभूषा के संदर्भ में नहीं हुआ है। एक जगह हुआ भी है तो वह पर्दे के पीछे महिला का किसी अजनबी से बात करने को लेकर ही है। अपनी बात को समझाते हुए उन्होने कहा कि असल भी उस समय अरब के घरों में दरवाजे नहीं हुआ करते थे। पर्दे टंगे होते थे। महिलाएं पर पुरुष के साथ इसी की ओट में बात करती थीं। आंखे नीची रखने का पर्दा जरूर कहा गया है।।

उन्होंने आगे कहा कि अगर हम बात मान भी लें कि मुसलमान होने के लिए हिजाब जरूरी है तो इसका नुकसान किसे होगा? जो आज मुस्लिम महिला आईपीएस अफसर है, जिसने एयरफोर्स ज्वाइन की है या जो हमारी सिक्योरिटी सर्विस में है क्या वो अपनी नौकरी हिजाब पहनकर करेगी ?

आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि ये एक साजिश है जिसका मकसद है। आजादी के बाद मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जैसी संस्थाएं, पहले तो वो अंग्रेजी शिक्षा के खिलाफ थीं और पिछले 50 साल में उन्होंने ताकत लगा दी थी कि मुस्लिम महिलाएं घर से बाहर ना निकलें। आज उनके फतवे यही हैं। लेकिन पिछले 15-20 साल से उनकी बात सुनने के लिए कोई तैयार नहीं है।

उन्होंने कहा कि हिजाब का ये विवाद जो शुरू किया गया है एक साजिश है ताकि मुस्लिम महिलाओं की शिक्षा को बंद किया जा सक । चूंकि उनकी मर्जी के खिलाफ तीन तलाक का कानून बन गया है। अब महिलाएं शिक्षित हो रही हैं बड़ी तादाद में तो वो परेशान हैं। वो चाहते हैं कि मुस्लिम महिलाओं को शिक्षा से वंचित कर दिया जाए।

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