पटना। बिहार के बगीचों में आने वाली है बहार। उनमे फलों के साथ मसालों की भी कुछ ऐसी फसलों की खेती होगी, जिन्हें धूप की बहुत जरूरत नहीं होती है। बगीचों में पेड़ लगाने के बाद खाली बची जमीन के उपयोग के लिए सरकार ने नया फंडा अपनाया है। इन बगीचों में ओल, अदरख और हल्दी की खेती को प्राथमिकता दी जाएगी।
कृषि विभाग ने इस योजना पर काम शुरू कर दिया है। योजना के तहत बगीचे में मसाला की खेती करने वाले किसानों को तकनीकी सहायता तो सरकार देगी ही बीज और खाद की कीमत का आधा पैसा भी देगी। इंटीग्रटेड फार्मिंग योजना के तहत किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए कृषि विभाग ने इस पर काम शुरू किया है। बागीचे में उपलब्ध खाली जमीन के वास्तविक रकबे के आधार पर जरूरत का आकलन होगा।
राज्य में किसान औसतन दो फसल की खेती ही सालभर में करते हैं। सरकार ने उसे तीन फसल तक बढ़ाने की योजना पर राज्यभर में काम शुरू कर दिया है। इसी के साथ सालाना फसलों की खेती में भी समेकित कृषि योजना पर जोर दिया जा रहा हैं। नई योजना इसी प्रयास की एक कड़ी है। केला जैसे फल के बगीचों को छोड दें तो आम और लीची के बगीचों में 40 प्रतिशत भूमि का उपयोग ही पेड़ लगाने में होता है। शेष 60 प्रतिशत जमीन पर ऐसी फसलों की खेती की जा सकती है, जिनमें धूप कम रहने पर भी उत्पादन पर असर नहीं पड़ता है। इसी के तहत ओल, अदरक और हल्दी का चयन किया गया है। प्रयोग सफल हुआ तो वैज्ञानिकों की सलाह पर कुछ और फसलें जोड़ी जा सकती हैं।
बिहार में खेती योग्य रकबा देश में औसत से काफी अधिक है। राज्य में कुल भूभाग के 60 प्रतिशत रकबे का उपयोग खेती के लिए किया जाता है। देश में यह औसत 42 प्रतिशत है। राज्य सरकार फसल सघनता बढ़ाकर उत्पादन बढ़ाना चाहती है। किसानों की आमदनी बढ़ाने का भी यह बड़ा फंडा है।
राज्य में बगीचे का रकबा
1.57 लाख हेक्टेयर में है आम का बगीचा
33269 हेक्टेयर में लीची की खेती
27613 हेक्टेयर में अमरूद की खेती
75 हजार हेक्टेयर में इन बगीचों में हो सकती है मसाले की खेती