पिछले महीने फ़िनलैंड से अहमदाबाद आई सुमिति सिंह को तब अंदाजा नहीं था कि भारत में आते वह कोरोना की चपेट में आ जाएंगी। लेकिन वह संक्रमित हुईं और आखिर इस महामारी को मात देने वाली गुजरात की पहली महिला बनी। अब उन्हें श्रेय मिल गया है कि प्लाज़्मा थेरेपी ( plazma therepy)के लिए कोरोना पीड़ित को 500 एमएल प्लाज़्मा दान करने का।

अहमदाबाद के एसवीपी हॉस्पिटल में भर्ती सुमिति सिंह अपना प्लाज्मा देकर आनंदित है। उन्होंने कहा कि यह मेरा छोटा-सा अंशदान है, इससे कई जिंदगियां बच जाती हैं, तो मैं अपना सौभाग्य मानूंगी।

मुझे गर्व है कि मैं कुछ कर पायी

कोविड-19 के खिलाफ आज हर कोई जंग लड़ रहा है। ऐसे में मेरा प्लाज्मा लिया गया, इससे मुझे आनंद की अनुभूति हो रही है। मुझे इस बात की खुशी है कि मैं प्लाज्मा डोनेट करने के लिए फिट (fit ) थी। इस तरह का यह मेरा पहला अनुभव था। शुरुआत में थोड़ा डर लगा। दूसरी ओर रोमांचित भी थी। एसवीपी के डॉक्टर्स (doctors ) ने मुझे अच्छी तरह से समझाया। तब मैं इसके लिए तैयार हो पाई।

पहले तो ठीक थी, बाद में कुछ परेशानी हुई

प्लाज्मा निकालने में करीब 30-40 मिनट लगते हैं। इस दौरान शुरू में तो मैं बिलकुल ही ठीक थी। परंतु प्रोसेस(process ) के दौरान 3-4 मिनट के लिए मुझे उल्टी और चक्कर आने लगे। इसके बाद रेडक्रॉस के डॉक्टर्स से बात की, तो उन्होंने मुझे सांत्वना देकर मेरा मूड बदला। सुमिति फिनलैंड (finland )से आने के बाद ही कोरोना से ग्रस्त हो गई थी। 17 मार्च को उन्हें एसवीपी में दाखिल किया गया था।

क्या है प्रोसीजर

प्लाज्मा भी ब्लड डोनेशन की प्रोसिजर की तरह ही डोनेट ( donate) किया जा सकता है। एक सुई द्वारा शरीर में खून निकाला जाता है। इसके बाद ट्यूब का खून मशीन में डाला जाता है। यह मशीन खून से प्लाज्मा को अलग करती है। उसके बाद प्लाज्मा को लेकर एक बैग में रख लिया जाता है। फिर खून को वापस आपके शरीर में डाल दिया जाता है। यह एक कूल प्रक्रिया है। जब तक आपका पूरा प्लाज्मा नहीं ले लिया जाता, तब तक आपके शरीर से खून निकाला जाता रहता है। यह सब व्यक्ति की डोनेट क्षमता पर निर्भर है।

प्लाज्मा फिर बन पाता है या नहीं?

एक बार हमारे खून से प्लाज्मा निकालने के बाद क्या शरीर में फिर से प्लाज्मा बनने लगता है? इस पर डॉक्टर्स का कहना है कि 24 से 48 घंटे के बीच शरीर में प्लाज्मा बन जाता है। उसकी पूर्ति हो जाती है। हमारा शरीर एक बार फिर एंटीबॉडीज बन जाता है। इससे आपको या आपके परिवार के किसी सदस्य को फिर से कोविड़ होगा या नहीं, इसके लिए संवेदनशील होने की जरुरत नहीं है। डॉक्टर्स ने बताया कि उसने अपने शरीर का एक छोटा-सा हिस्सा ही दिया है। शरीर में काफी मात्रा में एंटीबॉडीज बनते रहेंगे।

क्या यह थेरेपी कामयाब है?

प्लाज्मा देने वाले के सारे सवालों का जवाब देने के लिए डॉक्टर्स तैयार हैं। इस थेरेपी पर अभी ट्रायल चल रहा है। अभी इसकी सफलता पर कुछ कहा नहीं जा सकता। फिर भी इसे आशा की किरण माना जा सकता है। एसवीपी हॉस्पिटल में 50 वर्षीय महिला को सुमिति का प्लाज्मा दिया गया था। वह अभी ऑक्सीजन (oxygen ) पर है। उसकी तबीयत स्थिर है। प्लाज्मा ने उसके शरीर में क्या बदलाव किए, इसे अभी कुछ नहीं कहा जा सकता। वह डॉक्टर्स की निगरानी में है।

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