कोरोना को घर नहीं बुलाना है तो भगवान के वास्ते न बनें भीड का हिस्सा

विशेष संवाददाता

भारत सरकार ओर से होने वाली प्रेस कॉन्फ्रेंस में हम रोज आंकड़ों को पेश करने की बाजीगरी देखते हैं। वो आंकड़े कुछ देर के बाद बदले दिखते हैं। हमें बताया जाता है कि हम दूसरे देशों से कम प्रभावित हैं, हमारी रिकवरी रेट ( recovery rate)अच्छी हो रही है। रोगियों के डबल होने के दिन बढ़ रहे हैं। पर मंगलवार को जो आंकड़ा आया, वो क्या कहता है ? लगभग चार हजार संक्रमित! अभी तो ढाई हजार देखकर कांप रहे थे। अब तो आफत सिर पर आ गई। मृतकों का आंकड़ा दो सौ को छू गया। ये सब पहली बार कोरोना काल में हुआ। क्या ये कोई संकेत है? समझें तो है और शराब के नशे में डूबे हैं तो आंकड़ा क्या, संख्या कैसी। लॉक डाउन ( lockdown)की परेशानी सबको है और इसी को सरल करने में सरकारें लगीं हैं।

ये भीड़ हमें कहाँ ले जायगी ?

हालात को देखकर थोड़ी छूट दी गई तो उसका तमाशा बना दिया। शराब के लिए ऐसी लाइन लगी और इतना उतावलापन दिखाया गया कि जैसे, वर्षों इसके बिना जीवन कटा है। वो लाइनें हमारे कैरेक्टर (character ) को भीतर तक नंगी कर गई। दुनिया के सामने हमारा आवरण उतर गया। देखिये, शराब के रसिया क्या कह गए दारू को सामने देखकर। दिल्ली के चंदन नगर में लगी लाइन पर फूल बरसाते एक शख्स बोला, आप हमारी अर्थव्यवस्था की जान हैं। 70 फीसदी टैक्स बढ़ाने पर लोग बोले, और बढ़ा दीजिये। हमें फर्क नहीं पड़ता। सरकार के पास पैसे नहीं, हम दान कर रहे हैं। लेकिन शराब चाहिए। कहीं दुकानों के खुलने के पहले नारियल और दीये से उसकी पूजा की गई। वाराणसी में सबसे पहले ग्राहक को माला पहना कर आभार जताया गया। दारू के आशिक़ ने बोतल को माशूक़ की तरह चूमते हुए कहा, बहुत दिनों के बाद मिली हो।

इसी तरह राशन ( ration )की दुकानों पर भी जुटी भीड़ ने सोशल डिस्टेनसिंग को तार तार कर दिया। जब दुकानों के खुलने का वक़्त तय हो गया और रोज खुलनी है तो भीड़ बढ़ाने की जरुरत क्या है। जान रहेगी तभी ये बोतल चूमने को मिलेगी और कुछ खाने को मन करेगा। ये सोचिए कि जो आंकड़े आ रहे हैं वो यूं ही हैं। सब इतना ही अच्छा है तो लॉकडाउन 3 की जरुरत क्यों पड़ी? क्या हमे लॉकडाउन 4 की ज़रुरत होगी? भारत में 10 लाख टेस्ट होने के बाद भी जानकार क्यों टेस्ट बढ़ाने की मांग कर रहे हैं? भगवान के वास्ते अगर कोरोना को घर नहीं बुलाना है तो न बनिए भीड का हिस्सा। ये जिन्दगी न मिलेगी दुबारा।

मानो अंगूर की बेटी बोल रही है- बहारों फूल बरसाओ मेरे महबूब आए हैं

नीति आयोग और कोविड19 एम्पावर्ड कमेटी ( empowerd commitee)के एक सदस्य का कहना था कि लॉकडाउन 3 को हमें लॉकडाउन 2 की निरंतरता में देखना चाहिए।अब तक हम संपूर्ण लॉकडाउन के दौर में थे। तीसरे चरण के लॉकडाउन में सरकार ने दो चीज़ों को जोड़ने की कोशिश की है। एक तरफ़ कुछ सामाजिक और आर्थिक ज़रूरतों को पूरा करने की एक कोशिश की गई है। ग्रीन ज़ोन और ऑरेंज ज़ोन में जहां बीमारी कंट्रोल में है वहां काम शुरू हो, फ़ैक्टरी शुरू की जाए। दूसरी तरफ़ रेड ज़ोन के कुछ इलाक़े में लॉकडाउन जारी भी है। इसलिए लॉकडाउन फेज 3 एक सोची समझी रणनीति के तहत किया है, जहां पूर्ण लॉकडाउन की बंदिशों को थोड़ा कम किया गया है, कुछ इलाक़ों में ढील दी गई है और कुछ में लॉकडाउन जारी है। वे कहते हैं कि लॉक डाउन चार को लागू करने के पहले थ्री का मूल्यांकन होगा।
उनके मुताबिक़ हमें टाइट रोप वॉकिंग करनी है. बहुत क्रिटिकल तरीक़े से काम करना है ताकि जान भी बचे और आर्थिक गतिविधियां भी चलाई जा सके. इसी के आधार पर तय होगा लॉकडाउन आगे बढ़ेगा या नहीं। उन्होंने कहा कि “पूर्ण लॉकडाउन हमेशा के लिए नहीं चल सकता। हमें बैलेंस बनाए रखने की जरुरत है। इसी पर हमारा भविष्य निर्भर करेगा।

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