कोरोना संकट में करोड़ों ऐसे हैं, जिनके पास खाने को कुछ नहीं है। ये कड़वा सच है, लेकिन इस कुछ नहीं पर बहुत से हैं जो यकीन नहीं करते। करें तो कैसे, उन्होंने जाना ही नहीं कि संसार में कई स्थान हैं जहां कुछ होता ही नहीं। और लोग वहां उम्मीदों के साथ आशियाना बनाये रखते हैं कि कभी बहार यहां भी आएगी। ये इंतज़ार चल रहा था कि कोरोना (corona )ने सब पर पानी फेर दिया। हालात बिगड़े और फांकाकशी होने लगी क्योंकि कोई काम ही नहीं बचा। ये कहानी आज बहुतेरों की है। आज खास जिक्र है कीनिया (kenya )की एक महिला का। मुफलिसी की इंतहा देखिये कि अपने बच्चों को बहलाने लिए पत्थर पकाने का नाटक करना पड़ता था।
बर्तन में उबलते पत्थरों की कड़बड़- कड़बड़ की आवाज़ आठ बच्चों का भ्रम ज्यादा देर नही कायम रख सकी। वो सब समझ कर भूखे ही सो गए। इनकी जननी पेनिना बहाती कित्साओ को समझ आ गया कि जिसे ये कायनात समझ चुका है, उसे जीते जागते बच्चे कैसे नहीं समझ पाते। माँ भी यही चाहती थी कि पत्थर इतना उबलें कि बच्चे थक हार कर सो जाएं। कोरोना ( corona)ने उसका कपड़ा धोने और बर्तन मांजने का काम खत्म कर दिया था। अगर जिंदगी एक नाटक है तो ऐसा नजारा उसका ड्राप सीन ( drop scene) ही तो है। लेकिन इस परिवार की पटकथा में ट्विस्ट था। महिला की एक पड़ोसन प्रिस्का मोमानी ( priska momani) ने इस पूरे वाक़ये का वीडियो बना लिया और मीडिया (media )को इस बारे में बता दिया। प्रिस्का उनके बच्चों के रोने की आवाज़ सुनकर वहां ये देखने पहुंची थी कि उन्हें कोई परेशानी तो नहीं है। पेनिना की कहानी सुनकर लोगों ने उनके लिए पैसे इकट्ठा किए और उन्हें पूरे कीनिया से फ़ोन (phone ) आने लगे। लोगों ने उन्हें मोबाइल ऐप के ज़रिए पैसे भेजे। एक पड़ोसी ने उनका बैंक अकाउंट खुलवाया जिससे उन्हें पैसे मिले।
कीनिया के रेडक्रॉस (red cross )ने भी उनकी काफ़ी मदद की है। पेनिना कहती हैं कि उन्हें अंदाज़ा नहीं था कि कीनिया के लोग इतने दरियादिल हैं। वो इन सबको ‘एक चमत्कार’ मानती हैं। वैसे कीनिया में कोरोना संक्रमण के 395 मामले सामने आए हैं और 19 लोगों की मौत हो चुकी है।