अनिता चौधरी
राजनीति सम्पादक
नागरिकता संसोधन एक्ट को पूरे देश में मचा बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है । विरोध के स्वर हर तरफ सुनाई दे रहे है । खास कर दिल्ली के शाहीन बाग और लखनऊ के घंटाघर की बात करें तो इस कानून के विरोध में पिछले एक महीने से ज्यादा समय से औरतें और बच्चे सड़क पर धरना दे कर इस कानून का विरोध कर रहे हैं । इस कानून को वापस लेने की मांग कर रहे हैं । मगर नागरिकता कानून पर क्या कहता है संविधान ? संविधान के अनुच्छेद 11 में ये साफ किया हुआ है कि नागरिकता देने का अधिकार सिर्फ और सिर्फ संसद को है , यही नहीं संविधान की 7वीं सूची के संघसूची के 17वें भाग में इसका विस्तृत विवरण भी दिया हुआ है कि नागरिकता देने का अधिकार सिर्फ यूनियन को है क्यों है , नेशन टुडे से बात चीत करते हुए ये जानकारी दी है भारत के संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप जी ने ।
संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप का कहना है कि जो भी राज्य रेजोल्यूशन पास कर रहे हैं कि नागरिकता संसोधन कानून को वो अपने राज्य में लागू नहीं करेंगे ये उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता। ये कानून तीन देशों के उन अल्पसंख्यकों के लिए है जो धार्मिक रूप से प्रताड़ित रहे हैं और पहले से ही भारत में रह रहे हैं। इसलिए इस मुद्दे को धर्म से ऊपर उठ कर देखने की जरूरत है । हालांकि सुभाष कश्यप ने ये भी बताया कि इस कानून बनाने को लेकर जब पार्लियामेंट्री कमिटी बनी थी तो सलाह कर लिए उन्हें भी बुलाया गया था । सलाह के तौर पर कमिटी को सुभाष कश्यप ने ये कहा था कि अगर जातिगत विवरण न देकर धार्मिक तौर पर प्रताड़ित अल्पसंख्यक देने से भी बात वही रहेगी । मगर कानून मयंत्रालय को विवरण देना ज्यादा तर्कसंगत लगा ।
लेकिन इससे कानून पर ज्यादा फर्क नही। पड़ता । यैसे में मुस्लिम समुदाय जो सड़कों पर उतरी हुई है वो संवैधानिक कम और राजनीतिक ज्यादा है । मगर इसकी संवैधानिक स्थिति पर प्रश्नचिन्ह बेबुनियाद है। सुभाष कश्यप ने आगे बताया कि कानून के जरिये भले ही एक धार्मिक उन्माद खड़ा कर के विपक्ष राजनीतिक ज़मीन तलाश रही है मगर इस कानून को धर्म से ऊपर उठ कर देखने की जरूरत है । क्योंकि मामला नागरिकता देने का जो यूनियन ऑफ इंडिया के अधिकार क्षेत्र में आता है और इस कानून से किसी भी भारतिय पर कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है । बात अगर एनआरसी की है तो संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप का कहना है कि शरणार्थी और घुसपैठिये को एक नज़र से नहीं देख सकते , विश्व के हर देश में नेशनल रजिस्ट्रेशन का प्रावधान है मगर भारत के लिए ये दुर्भाग्य की बात है कि अभी तक ये लागू नहीं हुआ है । सभी मायनों से एनआरसी का प्रावधान जरूरी है । यैसे में सिर्फ धर्म मि राजनीति कर के एनआरसी को एक बार फिर रोकना देश की संप्रभुता के साथ ज्यादती होगी ।
संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप आगे बताते हैं कि मामला सर्वोच्च न्यायालय में है और कोर्ट ने स्टे देने से मना कर दिया है यूनियन ऑफ इंडिया को 4 हफ़्तों। में जवाब देना है । लेकिन किसी भी नए कानून को चैलेंज किया जा सकता है और उसमें विचार विमर्श के बाद कुछ बदलाव की भी सम्भावना है मगर ये बदलाव सिर्फ संसद के जरिये ही मुमकिन है । क्योंकि जनता के लिए कानून बनाने का प्रावधान संविधान ने जनता के चुने हुए प्रतिनिधि को दिया है जो संसद में बैठे हुए है। जो लोग सड़क पर बैठ का हिंसा फैला रहे हैं और देश का माहौल खराब कर रहे है वो जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि नही है । कोई भी नया कानून बनाना उसमें बदलाव लाने का अधिकार संविधान ने उन्हें नहीं दिया है । संविधान ने ये अधिकार विपक्ष को भी नहीं दिया है । विपक्ष की भूमिका सिर्फ सहयोग या में विरोध में है । यैसे में सरकार ही इस पर कोई फैसला ले सकती है । मगर क्योंकि ये मामला सुप्रीम कोर्ट में है इसलिए इस मसले ओर सुप्रीम कोर्ट की तरफ से अब सबको फैसले का इंतज़ार करना होगा ।