सी के मिश्रा

कुछ लेखन ऐसा होता है जो आपके दिमाग़ मे घर कर जाता है, कुछ मनमोहक होता हैं लेकिन कुछ आपकी आत्मा तक को झकझोरता है।
अंजनी पांडेय लिखित पुस्तक ‘इलाहबाद ब्लूज’ कुछ ऐसी ही है जो आपके मर्म को छूती है। लोग हो सकता है कि उसे एक साहित्य या पुस्तक की नज़र से देखें और समीक्षा करें किंतु जिस अन्दाज़ मे लेखक ने अपनी जीवन यात्रा को रखा है, ऐसा ही लग रहा है कि मानो आप और वो दोनो बैठकर संगम किनारे बात ही कर रहे हों।

अपने प्रथम पृष्ठ से ही पुस्तक इस बात का अहसास कराती है कि भले ही लेखक ने इलाहबाद की पृष्ठभूमि को ज़रिया बनाया है लेकिन यह कहानी हर उस छोटे शहर के मध्यमवर्गीय परिवार के लड़के की है जिसने स्कूल हो या कालेज, अपने सपने देखे और उन सपनो को जी तोड़ मेहनत करके साकार भी किया।

लेखक ने कई अन्य सामाजिक प्रथाओं यथा दहेज प्रथा पर भी अपने ही अनुभवों के माध्यम से विचार रखे हैं जो आपको भी इस दिशा में सोचने पर मजबूर करते हैं । साथ ही वैवाहिक जीवन में “बुद्ध” हो जाने पर लेखक ने एक अभिनव विचार रखा है। हालाँकि यदि हल्के मज़ाक़िया अन्दाज़ में इसे कहा जाये तो ऐसा विचार प्रकट कर लेखक ने घर में काफ़ी बड़ा ‘रिस्क’ लिया है।

पुस्तक में सबसे प्रमुखता से निखर कर आने वाली बात मिडिल क्लास के लड़कों के संघर्ष की कहानी है किंतु जब तक यह संघर्ष ख़त्म होता है तब तक जीवन का एक महत्वपूर्ण समय निकल चुका होता है। लेखक के शब्दों में “मिडिल क्लास के युवा संघर्ष ही करते रह जाते हैं और वक़्त हाथ से निकल जाता है। हम लोग माँ-बाप के संघर्ष से अनजान ही रहते हैं क्योंकि जब माँ-बाप संघर्ष कर रहे होते हैं तब हम खुद ही अबोध होते हैं। जब जानने की उम्र आती है तब हमारे अपने ही संघर्ष शुरू हो जाते हैं। ऐसे ही चलता है जीवन।” संघर्ष के इस चक्र में सफल होकर भी माँ- बाप के साथ किसी भी कारणवश समय नहीं बिता पाना, आज मिडिल क्लास के ऐसे युवा वर्ग को सर्वाधिक सालता होगा।कुल मिलाकर कहें तो बचपन, सपने, संघर्ष , प्रेम , त्याग और परिश्रम की कहानी है ‘इलाहबाद ब्लूज’।

छोटे शहर के एक बालक के बड़े सपनों के सच होने की कहानी है ‘इलाहबाद ब्लूज’।

आपकी और मेरी यादों की कहानी है ‘इलाहबाद ब्लूज’ और जैसा लेखक ने कहा – ‘कुछ यादें लाल स्याही से लिखो या नीली से, मगर वो हमेशा हरी ही रहती हैं’….

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