पदमपति शर्मा की पुस्तक का भव्य समारोह में लोकार्पण

लक्ष्मीकांत द्विवेदी

नयी दिल्ली। ‘अंतहीन यात्रा, खेल पत्रकारिता और मैं’ पुस्तक केवल लेखक की आत्मकथा ही नहीं, एक कालखंड में पत्रकारिता, विशेष रूप से हिन्दी खेल पत्रकारिता के विकास की पटकथा है, जो पत्रकारिता के छात्रों व खेलों में दिलचस्पी रखने वालों के अलावा अन्य सभी पाठक वर्ग के लिए भी उतना ही पठनीय है।

ये उद्गार माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल के पूर्व कुलपति व देश के ख्यातिनाम संपादक-पत्रकार श्री अच्युतानंद मिश्र ने 31 जनवरी को यहां इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के कान्फ्रेंस हाल में ‘अंतहीन यात्रा, खेल पत्रकारिता और मैं’ पुस्तक के लोकार्पण एवं परिचर्चा समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में अपने संबोधन के दौरान व्यक्त किये। उन्होंने पुस्तक के लेखक पदमपति शर्मा के साथ अपने दशकों पुराने संबंधों का उल्लेख करते हुए कहा कि, पहले हिन्दी अखबारों में खेल समाचारों की घोर उपेक्षा होती थी, लेकिन पदमपति शर्मा के आने के बाद उन्हें समुचित स्थान मिलने लगा।

वाराणसी के साड़ी व्यवसायी एवं समाज सेवी श्री मुकुन्द लाल टंडन ने विशिष्ट अतिथि के रूप में अपने संबोधन में पदमपति शर्मा के साथ अपने संबंधों की चर्चा करते हुए कहा कि, उन्हें इस बात का गर्व है कि, उनकी प्रेरणा से ही पदमपति जी ने अपने अमेरिका प्रवास के दौरान यह पुस्तक लिखी।

दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा, चेन्नई के कुलपति एवं कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि श्री राम मोहन पाठक ने भी पदमपति जी के साथ अपने बचपन से चले आ रहे संबंधों का जिक्र करते हुए उनकी अंतहीन यात्रा के अनंत काल तक जारी रहने और ऐसी ही अन्य कृतियां सामने आने की कामना की।

पुस्तक के लेखक एवं वरिष्ठ पत्रकार श्री पदमपति शर्मा ने अपनी किताब के प्रमुख अंशों का जिक्र करते हुए हुए वादा किया कि, वह जल्दी ही इसका दूसरा भाग भी लिखेंगे और यदि शरीर ने साथ दिया, तो कई अन्य पुस्तकें भी लिखेंगे।

इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के चेयरमैन व मूर्धन्य चिंतक-पत्रकार श्री राम बहादुर राय ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि, इसके पूर्व अनेक पुस्तकों में दिवंगत पत्रकार प्रभाष जोशी की पत्रकारिता पर लिखा गया है, लेकिन किसी ने भी उनके विशिष्ट खेल लेखन के बारे में कुछ नहीं लिखा। लेकिन पदमपति जी ने अपनी पुस्तक के 150वें पृष्ठ पर प्रभाष जी की पत्रकारिता के इस पहलू पर भी सम्यक प्रकाश डाला है। उन्होंने यह भी बताया कि, जब कुछ माह पूर्व वह पदमपति जी से मिले थे, उन्होंने श्री गोविंदाचार्य का एक पांच दशक पुराना संस्मरण सुनाया था कि, जब उन्हें एक विदेशी विश्वविद्यालय में अध्यापन का अत्यंत आकर्षक प्रस्ताव मिला था, तो तमाम आग्रह के बावजूद उन्होंने उसे यह कहकर ठुकरा दिया था कि, उन्हें पैसा नहीं कमाना, सिर्फ भारत माता की सेवा करनी है। यदि पैसे की चाह होती तो मेरे पिता डीन हैं पर मैं तो 30 रुपये मासिक पर संघ के प्रचारक का दायित्व वहन न कर रहा होता।

इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र की कला निधि के निदेशक श्री रमेशचन्द्र गौड़ ने बड़ी कुशलतापूर्वक कार्यक्रम का संचालन किया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में पदम जी के पुराने सहयोगियों, देश के जाने-माने संपादकों- पत्रकारों के साथ ही गणमान्य अतिथिगण उपस्थित थे।

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