वाराणसी। बीएचयू के एक शोध छात्र ने ‘वाराणसी’ नाम के दो आधारों में एक असि नदी का संपूर्ण प्रवाह पथ खोज निकाला है। भूगोल के शोध छात्र मल्लिकार्जुन मिश्र को इस शोध को पूरा करने में पांच वर्ष लगे हैं। उनका दावा है कि प्रयागराज में गंगा-यमुना संगम के पास दुर्वासा ऋषि के आश्रम के पास असि का उद्गम स्थल रहा है, यह वहाँ से निकली थी। इस नदी का प्रवाहपथ 188 किमी लंबा था जो अब आठ किमी की दूरी में सिमट गया है। इस शोध में सुदूर संवेदन आंकड़ों, गूगल अर्थ, भुवन, वायुवीय छायाचित्रों, लैण्डसैट, सेटेलाइट इमेजरी, फील्ड सर्वे, डीजीपीएस यंत्र के पुराने मानचित्र मददगार बने हैं।
मल्लिकार्जुन इन दिनों स्थलीय परीक्षण में मिले प्रमाणों का गहन विश्लेषण कर रहे हैं। इन विश्लेषणों के पूर्ण होने पर असि नदी से संबंधित कई दूसरे महत्वपूर्ण तथ्य सामने आएंगे। उन्होंने बताया कि यूएस नेवी की ओर से वर्ष 1978-79 में लिए गए कुछ सेटेलाइट चित्र उन्हें मिले थे जिनमें असि नदी के अंश भी दिखे थे। वे चित्र मिलने के बाद मल्लिकार्जुन ने हैदराबाद स्थित इसरो के नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर से संपर्क किया। उन्होंने प्रख्यात वैज्ञानिक वाईवीएम कृष्णामूर्ति को उन चित्रों के हवाले से असि नदी के बारे में बताया तो उन्होंने वैज्ञानिक पीवी राजू नाम को उनकी मदद में भेजा।
मल्लिकार्जुन और राजू ने मिल कर असि नदी के संपूर्ण प्रवाह पथ की खोज आरंभ की। दोनों ने वाराणसी से प्रयागराज के बीच एक हजार गांवों में पदयात्रा करते हुए एक-एक बिंदु पर परीक्षण किया। इन गांवों में करीब ढाई हजार ऐसे कूप मिले जिनका जलस्तर सामान्य कूपों की तुलना में अधिक था। मानचित्र में असि नदी के पुराने मार्ग के पूरब व पश्चिम में पांच सौ मीटर की चौड़ाई में भूगर्भ जल स्तर अत्यधिक ऊपर है। जबकि इस मार्ग के उत्तर और दक्षिण में पांच सौ मीटर चौड़ाई के दोनों ओर भूगर्भ जल का स्तर काफी नीचे है। हर साल बारिश के मौसम में पुराने प्रवाह पथ पर जल भराव होता है। जल भराव के कारण वहां केवल एक फसल की खेती हो पाती है। जल का बहाव अब भी छोटे-छोटे नालों के रूप में प्रयागराज से पूर्व वाराणसी की ओर कई स्थानों पर हो रहा है। गांवों की बसावट इस पांच सौ मीटर के प्रवाह पथ के दोनों ओर है। इस प्रवाह पथ पर 52 बीघे से लेकर एक हजार बीघे तक के ताल मिले।
मल्लिकार्जुन ने शोध यात्रा के दौरान गांवों के बुजुर्गों से साक्षात्कार लिए। बुजुर्गों ने दादा-परदादा से सुनी कहानियों के आधार पर बताया कि इन गांवों के पास से कोई नदी बहा करती थी। कुछ लोगों ने तो यह भी बताया कि पशुओं का खूंटा गाड़ते ही पानी छलक कर बाहर आ जाता था।
बारह फीट के बाद मिला पानी
परीक्षणों और साक्षात्कारों के बाद उन्होंने दस स्थानों पर जेसीबी से खुदाई करवाई। अधिकतम 12 फीट खोदने पर ही आठ फीट की गहराई तक पानी मिला। प्रवाह पथ के तालों में कई स्थानों पर तीस फीट पर ही पक्की बोरिंग कराई गई है। करीब तीन वर्ष के अथक प्रयास के बाद यूएस नेवी के सेटेलाइट चित्र में दिखे सूत्रों को जोड़ते हुए वह असि नदि के उद्गम स्थल तक पहुंच गए।
बीते फरवरी में शोध प्रबंध हुआ प्रकाशित
उनके शोध प्रबंध का प्रकाशन करेंट साइंस नामक पत्रिका के फरवरी के अंक में (25 फरवरी 2020) में भी हुआ। शोध कार्य को पुष्ट बनाने के लिए वह अब भी भूगर्भीय व भू-भौतिकी साक्ष्य जुटा रहे हैं। लॉकडाउन के कारण उन साक्ष्यों का विश्लेषण फिलहाल स्थगित है। मल्लिकार्जुन का कहना है कि यह विश्लेषण पूरा होने के बाद असि नदी की पूर्ण भौगोलिक स्थिति की जानकारी मिल जाएगी।
शुरुआत में आठ किमी की थी जानकारी
मल्लिकार्जुन बताते हैं कि असि नदी पर जनवरी-2016 में जब शोध शुरू किया था तब वर्तमान में दिखने वाले आठ किलोमीटर के प्रवाह पथ की ही जानकारी थी। शुरुआती दो साल में उन्होंने आठ किलोमीटर के बीच 22 वर्ग किमी के कैचमेंट एरिया पर काम किया। इस दूरी में उन्होंने एक लाख 85 हजार घरों से निकलने वाले मलजल का आंकड़ा जुटाया। इस दूरी में साढ़े नौ से दस लाख की आबादी रहती है। इसी दौरान अपने विभागाध्यक्ष की प्रेरणा से उन्होंने शास्त्रों और पुराणों में असि नदी का अस्तित्व तलाशना शुरू किया। उन्हें कुछ ऐसे श्लोक मिले जिसमें असि नदी का उल्लेख शुष्का और नासी के रूप में है। शुष्का का अर्थ मानसूनी नदी है जबकि नासी का अर्थ पापों का नाश करने वाली।
साभार अरविन्द मिश्र