भारत और चीन के बीच चर्चाओं के और दौर चलेंगे लेकिन ये भी तय है कि एलएसी पर दोनों ही ओर के सैनिकों की तैनाती पर कोई असर नहीं पड़ेगा। पिछले एक महीने से लद्दाख के गलवान घाटी और पेंगांग झील के किनारे तैनात हज़ारों सैनिक अभी एक-दूसरे के सामने ही तैनात रहेंगे। चीन ने पिछले 70 सालों से हिमालय के ऊपरी इलाकों में सड़कें और रेल मार्गों पर बहुत जोर दिया। 50 के दशक में ही उसने भारत के अक्साई चिन इलाके से सड़कें बनाकर तिब्बत को जिनजियांग प्रांत से जोड़ना शुरू कर दिया था।

इतने सालों में चीन ने पूरी एलएसी के पास तक बहुत अच्छी सड़कों का जाल तैयार कर लिया है। उसकी फीडर सड़कें तो एलएसी के बहुत ज्यादा करीब तक पहुंचती हैं। दूसरी तरफ भारत ने एनडीए सरकार के दौरान ही कुछ साल पहले एलएसी पर इंफ्रास्ट्रक्चर पर काम करना शुरू किया है लेकिन इस पर भी चीन को आपत्ति है क्योंकि इसका अर्थ एलएसी पर उसके सबसे ताकतवर हथियार के कुंद हो जाने का खतरा है। इस साल अप्रैल में लद्दाख में चीनी सैनिकों के अचानक आक्रामक हो जाने का मुख्य कारण चीन का यही डर है।

भारत ने चीन को पेश कर दी एक नई चुनौती

भारत ने अपनी पहली माउंटेन स्ट्राइक कोर तैयार करने की घोषणा कर चीन को एक नई चुनौती पेश कर दी है। अभी की जानकारी के मुताबिक, इस कोर में ब्रिगेड से थोड़े बड़े इंटीग्रेटेड बैटल ग्रुप्स होंगे जो बहुत तेजी से कार्रवाई करने के लिए तैयार किए जाएंगे। इनके पास जबरदस्त गोलाबारी की क्षमता के साथ बहुत कम समय में किसी तैनाती के लिए ज़रूरी एयर सपोर्ट होगा। साथ ही इनमें बख्तरबंद गाड़ियां, सिग्नल, कम्यूनिकेशन के लिए ज़रूरी सारे साजो-सामान होंगे. ऐसे 11 आईबीजी अरुणाचल प्रदेश के लिए होंगे यानि चीनी सीमा पर तैनाती के लिए।

चीन इसलिए बॉर्डर पर बढ़ा रहा तनाव

भारतीय सेना ने पिछले साल सितंबर में लद्दाख में एक बड़ा सैनिक अभ्यास किया था जिसका नाम था चांगथांग प्रहार. इसमें भारतीय सेना ने टैंकों, तोपखाने, पैराट्रुपर्स और बख्तरबंद गाड़ियों के साथ इस इलाक़े में भी दिन और रात में लड़ने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया था। चांगथांग उत्तर पश्चिमी तिब्बत का एक बड़ा पठार है जो लद्दाख तक आता है यानि नाम से संदेश स्पष्ट था. भारतीय सेना की तैयारी और तेवर दोनों ही हिमालय में किसी भी आपातकाल के लिए पर्याप्त हो चुके हैं। चीन की खीझ की यही वजह है. चीन के अभी के रुख से यह साफ हो गया है कि कूटनीतिक स्तर पर चर्चाएं अभी लंबी चलेंगी लेकिन जमीन पर सेनाओं के बीच तनाव कम नहीं होगा।

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