राजन तिवारी

हिन्दुओं के हितों में होने वाले किसी भी कार्य का सबसे पहला विरोध कांग्रेसी संत स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की तरफ से ही होता है। यह अनुमान लगाया जा रहा था कि, श्रीरामजन्मभूमि पर भव्य मन्दिर के निर्माण के लिए नवगठित न्यास का विरोध भी सबसे पहले इसी खेमे की तरफ से ही होगा और इसी पूर्वानुमान को सत्य साबित करते हुए स्वामी स्वरूपानंद खेमे ने श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास को अदालती लड़ाई में उलझाने की मुहिम शुरू कर दी है।

वैटिकन सिटी के इशारे पर हिन्दू धर्माचार्यों को एकजुट नहीं होने दिया

हिन्दुओं की धार्मिक सत्ता की एकजुटता में सबसे बड़े बाधक स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती ही हैं, जिन्होंने बदरिकाश्रम की ज्योतिष पीठ पर गैरकानूनी तरीके से क़ब्ज़ा करने की कोशिश की। शंकराचार्य पीठों को अदालती लड़ाई में घसीटा, जिसके कारण आज तक सभी पीठों के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के द्वारिका के शंकराचार्य बनने के बाद कभी भी एकजुट नहीं हो पाये। अगर सभी पीठों के शंकराचार्य धर्म से सम्बन्धित किसी भी प्रश्न पर एकमत से कोई निर्णय दे दें, तो कोई भी राजनीतिक सत्ता उस निर्णय के ख़िलाफ़ जाने की हिम्मत तक नहीं कर सकती। किन्तु हिन्दुओं की धार्मिक सत्ता राजनीति की पिछलग्गू बनी रहे, यह षड्यंत्र वैटिकन सिटी के इशारे पर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती प्रारंभ से ही करते रहे हैं।

सम्पूर्ण देश मानता है कि श्रीराम जन्मभूमि के प्रश्न को जनआन्दोलन विश्व हिंदू परिषद और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने बनाया और इस कारण से कांग्रेस ने संघ पर प्रतिबंध लगाया था। भारतीय जनता पार्टी की कई राज्यों की सरकारें बर्खास्त कर दी गयीं और ये सारे असंवैधानिक कार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के आशीर्वाद से हुए

राम जन्म भूमि आंदोलन में फूट डालने को बनाया रामालय ट्रस्ट

श्रीराम जन्मभूमि के आंदोलन को फूट डालकर कमज़ोर करने के लिए कांग्रेस के इशारे पर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने अलग से रामालय ट्रस्ट बनाया और आज बेशर्मी से कह रहे हैं कि उसी रामालय ट्रस्ट को मंदिर बनाने का अधिकार दे दिया जाए। वह कहते हैं कि रामालय न्यास में सभी पीठों के शंकराचार्य शामिल हैं, जबकि पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी सार्वजनिक तौर पर इसका विरोध कर चुके हैं। पुरी के पूज्य शंकराचार्य जी ने ही यह रहस्योद्घाटन किया था कि, में स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती श्रीराम जन्मभूमि के स्थान पर मस्जिद बनवाना चाहते थे।

आरएसएस से सबसे ज्यादा तकलीफ़

स्वरूपानंद गुट को सर्वाधिक परेशानी हिन्दू हितों की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से है। इसलिए यह गुट प्रत्येक अवसर पर संघ को गाली देता है। संघ के ही एक स्वयंसेवक को देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर हिन्दुओं ने बैठाया है। वह प्रधानमंत्री हिन्दू हितों की रक्षा कर रहा है और चर्च के नापाक इरादों के रास्ते का सबसे बड़ा रोड़ा बन गया है। इसलिए वैटिकन की एजेंट सोनिया गांधी के इशारे पर स्वामी स्वरूपानंद खेमा रात दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को नीचा दिखाने की कोशिश करता रहता है।

हिन्दुओं पर अत्याचार के खिलाफ कभी जुबान नहीं खोली

ये स्वयं को हिन्दुओं का शीर्ष धर्माचार्य कहते हैं, लेकिन हिंदुओं के ऊपर हो रहे अत्याचारों और धर्म के लिए लड़ने वाले संतों की हत्याओं पर इन्होंने कभी अपनी ज़ुबान नहीं खोली। कांग्रेस के कार्यकाल में जब कश्मीर में हिन्दुओं का नरसंहार हुआ, तब ये चुप रहे। यूगांडा में जब हिन्दुओं का नरसंहार हुआ, उनकी संपत्तियों को लूटकर उन्हें वहां से भगाया गया। वो सारे हिन्दू भागकर भारत आ, लेकिन कांग्रेस की सरकार ने उन्हें भारत के अन्दर घुसने नहीं दिया, तब ये चुप रहे। पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिंदुओं की जनसंख्या वहां की कुल जनसंख्या का लगभग चौथाई हिस्सा थी। धार्मिक आधार पर उनका नरसंहार हुआ। उन पर अमानवीय अत्याचार हुए। सैकड़ों मंदिरों को ध्वस्त कर दिया गया, तब भी ये चुप रहे। उड़ीसा में ईसाई मिशनरियों द्वारा कराये जा रहे धर्मांतरण को रोक देने वाले संत स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती जी की कंधमाल में हत्या कर दी गयी, तब ये चुप रहे। दक्षिण भारत में धर्मांतरण का धन्धा बंद करा देने वाले काँची शंकराचार्य स्वामी जयेन्द्र सरस्वती जी की सोनिया गाँधी के इशारे पर गिरफ़्तारी हुई, तब ये चुप रहे। उस समय ये केवल चुप ही नहीं रहे, बल्कि इन्होंने काँची के पूज्य शंकराचार्य जी को सार्वजनिक रूप से कुत्ता कहा। ईसाई बहुल राज्य मिज़ोरम में ब्रू जनजाति के हिन्दुओं पर अत्याचार होते रहे। चर्च ने उन्हें कहा कि या तो ईसाई बन जाओ या फिर मिज़ोरम छोड़ दो। ब्रू लोग दर-दर की ठोकरें खाते रहे, लेकिन हिन्दू धर्म को छोड़कर ईसाई नहीं बने, आप तब भी चुप रहे लेकिन शिरडी के साईं बाबा के करोड़ों भक्तों को हिंदू धर्म से काट देने के लिए साईं बाबा का निराधार विरोध इन्होंने अवश्य खड़ा किया। और आज जब मोदी जी ये सब ठीक कर रहे हैं तो ये मोदी जी को गालियाँ दे रहे हैं, लेकिन साथ ही यह भी चाहते हैं कि इन्हें न्यास में शामिल भी किया जाए।

आज भी शाहीन बाग वालों के साथ सीएए का विरोध कर रहे

स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने सदैव हिन्दू हितों का विरोध किया है। आज भी ये शाहीनबाग वालों के साथ सुर में सुर मिलाकर सीएए का विरोध कर रहे हैं। सीएए के पारित होने के बाद दुनिया भर के हिन्दुओं को लगता है कि अब भारत हमारा घर है। दुनिया के किसी भी देश में अब यदि हम पर अत्याचार होगा, तो हमें भारत में शरण मिल ही जाएगी। लेकिन ये कैसे हिन्दू धर्माचार्य हैं जो कि आज तक के इतिहास में भारत की संसद में हिंदुओं के पक्ष में लिये गये सबसे बड़े निर्णय का विरोध कर रहे हैं?

ये उस दिन कहाँ थे जब यूपीए के शासन में ‘साम्प्रदायिक हिंसा निवारण अधिनियम’ पारित करवाया जा रहा था, जिसे सोनिया गाँधी ने ड्राफ़्ट किया था। यदि ये कानून पारित हो जाता तो हिन्दू अपने ही देश में मुसलमानों के द्वारा क़ानूनी रूप से प्रताड़ित होता। उस समय तो ये सोनिया गाँधी के हाथों से सोने का मुकुट पहनकर उन्हें कुंभ में स्नान करवा रहे थे, ताकि इस नाटक से भोलीभाली हिन्दू जनता को ठगा जा सके।

(ये लेखक के अपने विचार हैं। वेबसाइट इसकी जिम्मेदारी नहीं लेता)

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