विशेष संवाददाता

सुप्रीम कोर्ट के आरक्षण के मामले में एक फैसले से सियासी माहौल गरमा गया है। कांग्रेस ने कहा कि वह नियुक्तियों और पदोन्नति में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से असहमत है। पार्टी ने भाजपा से सरकारी नौकरियों और पदोन्नति में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षण पर अपना रुख साफ करने के लिए कहा और आरोप लगाया कि भाजपा शासन के दौरान एससी और एसटी का अधिकार खतरे में है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से कांग्रेस असहमत

रविवार को पार्टी मुख्यालय में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कांग्रेस महासचिव मुकुल वासनिक ने कहा कि पार्टी संसद के अंदर और बाहर इस मुद्दे को उठाएगी। उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस का मानना है कि सरकारी पदों पर एससी, एसटी समुदाय की नियुक्ति सरकारों के विवेक पर नहीं है, बल्कि यह संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार है।’

कांग्रेस के प्रवक्ता उदित राज ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि उत्तराखंड सरकार ने स्टैंड लिया है कि राज्य सरकारें पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं हैं। केंद्र पहले दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट गया था, जिसमें कहा गया था कि पदोन्नति पर आरक्षण लागू नहीं होना चाहिए। केंद्र सरकार अब भी उच्चतम न्यायालय में उस मामले की पैरवी कर रही है।

कांग्रेस के एक अन्य वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने मांग की कि केंद्र सरकार या तो सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करे या आरक्षण को मौलिक अधिकार बनाने के लिए संविधान में संशोधन करे। खड़गे ने बेंगलुरु में पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है कि नौकरियों और प्रोन्नति में आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है। इस फैसले ने हाशिए के समुदायों को चिंतित किया है। हम इसके खिलाफ संसद के भीतर और बाहर विरोध करेंगे।

लोजपा ने भी फैसले पर उठाया सवाल

सरकार में भाजपा की सहयोगी लोजपा ने भी आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर सवाल उठाया है। पार्टी ने केंद्र सरकार से कहा कि वह यह सुनिश्चित करने के लिए तत्काल कदम उठाए कि पिछड़ी जातियों के अलावा अनुसूचित जातियों और जनजातियों को आरक्षण का लाभ उसी तरह से मिलता रहे, जैसे दशकों से मिल रहा है। लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से अपनी पार्टी की असहमति व्यक्त की कि राज्य सरकारें इन समुदायों को सरकारी नौकरी या पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं हैं।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि राज्य सरकारें नियुक्तियों में आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं हैं तथा पदोन्नति में आरक्षण का दावा करने का कोई मूल अधिकार नहीं है। न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और हेमंत गुप्ता की पीठ ने हाल में दिए गए फैसले में कहा कि इस न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून के मद्देनजर इसमें कोई शक नहीं है कि राज्य सरकारें आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं हैं। ऐसा कोई मूल अधिकार नहीं है, जिसके तहत कोई व्यक्ति पदोन्नति में आरक्षण का दावा करे। पीठ ने अपने फैसले में कहा, ‘न्यायालय राज्य सरकार को आरक्षण उपलब्ध कराने का निर्देश देने के लिए कोई परमादेश नहीं जारी कर सकता है।’ उत्तराखंड सरकार के पांच सितंबर, 2012 के फैसले को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए शीर्ष न्यायालय ने यह टिप्पणी की थी।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here