नई दिल्ली (एजेंसी )। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि स्व-अर्जित संपत्ति का मालिक कोई हिंदू पुरुष अपनी पत्नी को एक सीमित संपत्ति देने वाली वसीयत करता है और अगर उसकी पत्नी की रखरखाव समेत सभी पहलुओं का ध्यान रखा जाता है तो वह हमेशा के लिए वसीयत की गई संपत्ति की पूर्ण मालिक नहीं बन सकती है। जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने 50 साल पुराने मामले में यह फैसला सुनाया।
साथ ही पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के फैसले को रद कर दिया। हरियाणा के जुंडला गांव निवासी तुलसी राम ने 15 अप्रैल, 1968 को वसीयत की थी। अगले साल 17 नवंबर, 1969 को उसकी मौत हो गई थी। तुलसी राम ने अपनी अचल संपत्ति को दो भागों में बांट दिया था। उसने वसीयत में अपनी पहली पत्नी से बेटे और दूसरी पत्नी के नाम आधी-आधी संपत्ति कर दी थी।
इस बंटवारे में भी अंतर था। उसने अपने बेटे को तो अपनी आधी संपत्ति का पूर्ण मालिक बनाया था, लेकिन पत्नी के नाम सीमित संपत्ति की थी, ताकि जीवन भर उसका भरण पोषण होता रहे। तुलसी राम ने यह भी कहा था कि उसकी दूसरी पत्नी के निधन के बाद पूरी संपत्ति पर उसके बेटे का हक होगा।
पीठ ने कहा कि इसलिए राम देवी से संपत्ति खरीदने वालों का भी संपत्ति पर कोई हक नहीं है। उनके पक्ष में बिक्री के दस्तावेज को कायम नहीं रखा जा सकता है। अदालत ने कहा कि वसीयत के मुताबिक राम देवी को सीमित वसीयत के रूप में मिली संपत्ति को बेचने या दूसरे के नाम हस्तांतरण करने का हक नहीं है।
वहीं वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध मानने के एक मामले में केंद्र सरकार पूर्व में दाखिल किए गए अपने हलफनामे पर पुनर्विचार करने को तैयार हो गई है। केंद्र सरकार की ओर से पेश एडिशनल सालिसिटर जनरल (एएसजी) ने मंगलवार को दिल्ली हाई कोर्ट को यह जानकारी दी। बता दें कि साल 2017 में केंद्र सरकार ने दाखिल अपने हलफनामे में कहा था कि वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध नहीं बनाया जा सकता है क्योंकि इसके दूरगामी प्रभाव हो सकते हैं।