सैन्य कमांडरों की बैठक में एक तरफ चीन तनाव कम करने और पीछे हटने पर सहमति व्यक्त करता रहा है, तो दूसरी तरफ उसकी सेना एलएसी (वास्तविक नियंत्रण रेखा) के निकट अपने निर्माण कार्य को तेज करती रही है। लेकिन उपग्रह की तस्वीरों ने उसकी पोल खोल दी है। इन तस्वीरों से यह बात भी साफ होती है कि छह जून को बनी सहमति के बाद भी वह एलएसी पर निर्माण करता रहा है।

सैटेलाइट कंपनी मैक्सर टेक्नोलॉजी द्वारा हाल में जारी तस्वीरों से यह भी स्पष्ट होता है कि चीन द्वारा गलवान घाटी के निकट उस क्षेत्र में लगातार निर्माण किए जा रहे हैं जिस पर भारत का दावा है। यह निर्माण 22 मई के बाद तेजी से किए गए। इस बीच छह जून को दोनों देशों के बीच पूर्व की स्थिति में लौटने पर सहमति बनी, लेकिन इसके बावजूद गलवान घाटी में चीन का निर्माण जारी रहा।

मैक्सर टेक्नोलॉजीज की तरफ से 23 जून तक की जो तस्वीरें जारी की गई हैं, उनमें गलवान नदी के तट पर बड़े पैमाने पर निर्माण को दिखाया गया है, जबकि 22 मई की तस्वीरों से निर्माण शुरू होने के संकेत मिलते हैं। लेकिन 23 जून की तस्वीरों से साफ है कि बातचीत की प्रक्रिया जारी रहने के बावजूद निर्माण जारी रखे गए। 15 जून को गलवान घाटी में दोनों देशों की सेनाओं के बीच खूनी संघर्ष के बावजूद चीन का निर्माण जारी रहा और तस्वीर में चीनी द्वारा बड़े पैमाने पर किए गए निर्माण साफ नजर आते हैं।

मैक्सर टेक्नोलॉजीज के वाइस प्रेसीडेंट स्टीव वुड की तरफ से भी दावा किया गया है कि कई निर्माण 15 जून की खूनी झड़प के पास हुए हैं। चीन ने जहां सैन्य बेस बनाया है, वहां से निकलने वाली एक सड़क के आखिर में एलएसी की तरफ एक आउटपोस्ट हाल में बनाई गई है। सैन्य सूत्रों की तरफ से भी इस बात की पुष्टि की गई है। साथ ही यह भी आशंका प्रकट की गई है कि चीन की ये गतिविधियां जारी हैं।

इस बीच यह भी दावा किया गया है कि एक स्थान से चीन के वाहन और निर्माण वाले उपकरण हटे हैं, लेकिन यह संभव है कि वह किसी दूसरे स्थान पर निर्माण के लिए भेजे गए हों। चीन की तरफ से जो निर्माण हो रहे हैं, वह भारतीय दावे वाले क्षेत्र में भी हो रहे हैं तथा चीन अपनी सीमा में भी कर रहा है। दावे वाले क्षेत्र में निर्माण तो गलत है ही पूर्व के समझौतों के तहत एलएसी के निकट स्थाई निर्माण और ज्यादा सैनिकों की तैनाती की भी मनाही है।

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