राज्यसभा चुनाव इस बार दिलचस्प होने वाला है क्योंकि बीजेपी और कांग्रेस ने क्रॉस वोटिंग की उम्मीद से कांटे वाली सीट पर उम्मीदवार को चुनावी मैदान में उतारा है।
राजस्थान, मध्यप्रदेश और हरियाणा में बीजेपी ने उम्मीदवार उतारे है तो झारखंड में कांग्रेस ने उम्मीदवार उतराकर मुकाबला रोचक बना दिया है। राज्यसभा चुनाव के लिए 16 मार्च को नामांकन पत्रों की जांच की जाएगी। 18 मार्च को नामांकन वापस लेने की अंतिम तिथि है। 26 को वोट डाले जाएंगे।
जहां तक झारखंड का सवाल है तो कांग्रेस के उम्मीदवार उतारने के बाद समीकरण रोचक हो गया है। यहां दो सीटों का फैसला होना है।
एक सीट पर जेएमएम प्रत्याशी शिबू सोरेन यानी गुरुजी की जीत पक्की है। दूसरी सीट के लिए बीजेपी के दीपक प्रकाश और कांग्रेस के शहजादा अनवर में मुकाबला होगा। हालांकि आंकड़ें फिलहाल दीपक प्रकाश के पक्ष में दिख रहे हैं। बीजेपी ने राज्यसभा की इसी सीट के लिए आजसू से हाथ मिलाया है। बाबूलाल मरांडी की वापसी इसी रणनीति के तहत कराई गई थी।
आजसू के समर्थन से बीजेपी के दीपक प्रकाश को 28 वोट मिलता दिख रहे है, जबकि जीत के लिए प्रथम वरीयता के केवल 27 वोटों की जरूरत है। वहीं कांग्रेस प्रत्याशी को पार्टी के 16 विधायक, जेवीएम छोड़कर आए दो विधायक, आरजेडी के एक, एनसीपी के एक, माले के एक और दो निर्दलीय विधायकों का समर्थन मिल सकता है। यानी अनवर को अतिरिक्त वोटों के लिए विपक्षी खेमे में सेंध लगानी पड़ेगी।
राज्यसभा चुनाव में भारतीय जनता के उम्मीदवार दीपक प्रकाश को निर्दलीय अमित यादव का भी साथ मिला है। अमित यादव, दीपक प्रकाश के नामांकन पत्र के तीसरे सेट में प्रस्तावक बने हैं।
हरियाणा में चुनाव काफी दिलचस्प होगा। राज्यसभा की दो सीटों के लिए नियमित और एक सीट पर उपचुनाव होगा। सियासी उलटफेर नहीं हुआ तो एनडीए गठबंधन को दो सीटें मिलना तय है। एक सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार की जीत होगी। हरियाणा में विधायकों की संख्या 90 है। बीजेपी के पास 40 और कांग्रेस के पास 31 विधायक हैं। 10 जेजेपी और सात में से छह निर्दलीय विधायकों का समर्थन बीजेपी के साथ है। निर्दलीय विधायक बलराज कुंडू, इनेलो विधायक अभय चौटाला और विधायक गोपाल कांडा के वोट पर सबकी निगाह रहेगी। रामकुमार कश्यप के समय से पहले इस्तीफा देने और कुमारी शैलजा का कार्यकाल पूरा होने के कारण इन दोनों सीटों पर नियमित चुनाव हो रहा है।
जीतने वाले उम्मीदवार को 46 चाहिए। चूंकि भाजपा के 40 विधायक हैं और उसे 10 जेजेपी और छह निर्दलीय उम्मीदवारों का समर्थन प्राप्त है। कांग्रेस के पास 31 विधायक हैं, इसलिए उपचुनाव वाली सीट के लिए उसे 15 और विधायक जुटाने पड़ेंगे, जो मुश्किल दिखाई देता है। इसलिए इस एक सीट के लिए केवल बीजेपी-जेजेपी गठबंधन का उम्मीदवार ही नामांकन करेगा।
राज्यसभा की दो नियमित सीटों की अगर बात करें तो मौजूदा कानूनी प्रावधानों के अनुसार, ऐसी परिस्थितियों में चुनाव जीतने के लिए न्यूनतम कोटा निर्धारित करने का फार्मूला अलग है। इसके लिए हरियाणा विधानसभा की कुल सदस्य संख्या को 100 से गुणा कर उसे चुनावी सीटों में एक जोड़कर उससे विभाजित किया जाता है और उसमें एक और जोड़ दिया जाता है। उदाहरण के लिए 90 विधायक गुणा 100 अर्थात 9000, उसे दो चुनावी सीट जमा एक करने पर तीन से विभाजित करने पर यह संख्या तीन हजार हो जाएगी, जिसमें एक जुड़ेगा अर्थात संख्या 3001 बन गई। नियमित सीट जीतने के लिए न्यूनतम 3001 मूल्य के वोट चाहिए। इस फार्मूला में हर विधायक के एक वोट का मूल्य 100 होता है यानी न्यूनतम 31 विधायकों के साथ एक राज्यसभा सीट जीती जा सकती है। इस प्रकार कांग्रेस के पास 31 विधायक हैं। वह भी राज्यसभा की दूसरी सीट जीत सकती है, बशर्ते कि विधायक क्रास वोटिंग न करें और अपनी पार्टी के उम्मीदवार को ही पहली वरीयता (पसंद) के रूप में अपना वोट दें।
राजस्थान में बीजेपी और कांग्रेस के दो-दो प्रत्याशी मैदान में
राजस्थान से राज्यसभा की तीन सीटों पर होने वाले चुनाव में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के दो-दो प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं। कांग्रेस के के सी़ वेणुगोपाल एवं नीरज डांगी तथा बीजेपी के राजेन्द्र गहलोत एवं औंकार सिंह लखावत ने नामांकन दाखिल किया है। विधानसभा में संख्या बल के आधार पर दो सीटों पर कांग्रेस और एक पर बीजेपी उम्मीदवार के चुनाव जीतने की संभावना है। लेकिन बीजेपी ने सचिन पायलट और मुख्यमंत्री अशोक गहलौत के बीच मतभेद की टोह लेने की खातिर दूसरा प्रत्याशी उतारा है।
मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार को ज्योतिरादित्य सिंधिया के रूप में बड़ा झटका देने के बाद अब बीजेपी राजस्थान में एक लिटमस टेस्ट कर लेना चाहती है। दरअसल, बीजेपी को लगता है कि यही मौका है कि जब यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से कितने विधायक नाराज हैं और क्या सचिन पायलट गुट कांग्रेस के उम्मीदवार का विरोध करने के लिए हमारे साथ जा सकते हैं ?
कांग्रेस में हुआ था डांगी का विरोध
कांग्रेस ने गुरुवार रात राज्यसभा के लिए 2 उम्मीदवारों की घोषणा की थी. कांग्रेस की ओर से एक उम्मीदवार केसी वेणुगोपाल हैं जो कांग्रेस के संगठन महासचिव हैं तो दूसरे नीरज डांगी हैं। नीरज डांगी के नाम को लेकर उपमुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष सचिन पायलट की भी आपत्ति थी।
पायलट गुट के विधायक वेद प्रकाश सोलंकी ने तो खुलेआम इसका विरोध भी किया था। लेकिन अंत में सीएम गहलोत की ही चली और नीरज डांगी को राज्यसभा का उम्मीदवार बना दिया गया।
तीन बार विधानसभा हार चुके हैं डांगी
गौरतलब है कि नीरज डांगी तीन बार से विधानसभा चुनाव बड़े अंतर से हार रहे हैं। लेकिन अशोक गहलोत के करीबी होने की वजह से उन्हें हर बार टिकट मिल जाता है। अब तीसरी बार हारने के बाद डांगी को राज्यसभा का टिकट मिलने पर पायलट गुट नाराज है।
इसी झगड़े का अंदाजा लगाने के लिए बीजेपी ने ओंकार सिंह लखावत के रूप में उम्मीदवार उतार दिया. इससे पहले बीजेपी ने अपने एक ही उम्मीदवार राजेंद्र गहलोत को राज्यसभा का पर्चा भरवाया था।
राज्य की 200 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के 107 विधायक और बीजेपी के 72 विधायक हैं। राज्य के 13 में से 12 निर्दलीय विधायकों ने कांग्रेस को समर्थन देने का ऐलान किया है।